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High Court News: संदिग्ध लेन-देन पर बैंक खाता फ्रीज करा सकती है पुलिसः हाई कोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता के तहत संदिग्ध लेनदेन की विवेचना के दौरान पुलिस को अभियुक्त की संपत्ति जब्त करने का अधिकार है। उसे केवल इसकी रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को करनी होगी।

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Abhishek Panday
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फाइल फोटो Photograph: (google)

प्रयागराज, वाईबीएन विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता के तहत संदिग्ध लेनदेन की विवेचना के दौरान पुलिस को अभियुक्त की संपत्ति जब्त करने का अधिकार है। उसे केवल इसकी रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को करनी होगी। संपत्ति जब्ती आदेश देने के लिए जरूरी नहीं है कि पुलिस मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति ले, केवल सूचित करना जरूरी है। वह बैंक खाता जब्त करा सकती है संबंधित खातेदार यदि खाता डीफ्रीज कराना चाहता है तो उसे विवेचना अधिकारी या संबंधित मजिस्ट्रेट से संपर्क करना चाहिए। यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार और न्यायमूर्ति स्वरूपमा चतुर्वेदी की खंडपीठ ने कौशांबी निवासी मारुफा बेगम की याचिका की सुनवाई करते हुए की है।

साइबर क्राइम से संबंधित है मामला

याची शिक्षामित्र है और उसका बैंक खाता कौशांबी के मूरतगंज में इमामगंज स्थित बैंक ऑफ बड़ौदा में है। संदिग्ध लेन देने पर क्राइम ब्रांच के अनुरोध पर खाता बैंक की ओर से फ्रीज कर दिया गया। याची को बैंक अधिकारियों ने बताया कि गुजरात पुलिस की साइबर क्राइम ब्रांच आणंद के निर्देश पर 35 हजार रुपये के संदिग्ध लेनदेन में खाता फ्रीज किया गया है। यह राशि कथित तौर पर मुश्ताक अली नामक व्यक्ति ने ट्रांसफर की थी। याची ने बैंक को पत्र लिखकर खाता चालू करने की प्रार्थना की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई तो हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि याची का लेनदेन या आरोपित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। ऐसे में उनके खाते को पुनः चालू किया जाए। प्रतिवादी बैंक की ओर से कोर्ट को बताया गया कि खाता साइबर क्राइम जांच के अधीन है और जांच पूरी होने या सक्षम न्यायालय के आदेश के बिना इसे खोला नहीं जा सकता। कोर्ट ने कहा, भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता-2023 की धारा-106 के तहत पुलिस को ऐसा खाता फ्रीज करने का अधिकार है जिसके अपराध से जुड़ा होने का संदेह हो। सुप्रीम कोर्ट के तीस्ता सीतलवाड बनाम स्टेट ऑफ गुजरात (2018) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसा कदम वैध है। याची को जांच अधिकारी या मजिस्ट्रेट से राहत पाने का निर्देश खंडपीठ ने दिया है।

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