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फाइल फोटो Photograph: (वाईबीएन)
प्रयागराज, वाईबीएन संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म पीड़िता के बच्चे के पितृत्व का पता लगाने के लिए डी एन ए जांच रूटीन तरीके से नहीं कराई जा सकती। कोर्ट ने जांच का आदेश देने से इंकार करने के अधीनस्थ अदालत के आदेश को सही माना और हस्तक्षेप से इंकार कर दिया। कोर्ट ने कहा पीड़िता और उसके बच्चे के डीएनए परीक्षण के गंभीर सामाजिक परिणाम हो सकते हैं। रूटीन में ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। विशेष स्थिति में ही जांच कराई जा सकती है। न्यायालय तभी ऐसे निर्देश दे सकता है जब रिकॉर्ड में बाध्यकारी और अपरिहार्य परिस्थितियां हों और ठोस आधार प्रदान करें।
नाबालिग से किया गया था दुष्कर्म
न्यायमूर्ति राजीव मिश्र की एकलपीठ ने गाजीपुर निवासी रामचंद्र राम की याचिका खारिज करते हुए यह आदेश दिया है। नाबालिग से दुष्कर्म मामले में याची ने दो नवंबर 2023 को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो) कोर्ट द्वारा पारित आदेश रद करने की मांग की थी। यह प्रकरण जमानिया थाने में दर्ज है। घटना 29 मार्च 2021 को हुई थी। अभियुक्त के खिलाफ आईपीसी की धारा 376, 452, 342, 506 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 5/6 के तहत आरोप पत्र दायर किया गया है। याची ने निचली अदालत में आरोपों से इन्कार कर दिया है। अब तक अभियोजन पक्ष पांच गवाहों को परीक्षित करा चुका है।
याची की तरफ से कहा गया कि पीड़िता व उसके बच्चे का डीएनए परीक्षण कराया जाए ताकि अदालत के समक्ष सही तथ्य उपलब्ध हो सकें। यह मांग इस आधार पर की गई कि बच्चे का जन्म समय से पहले हुआ था, लेकिन वह पूरी तरह से विकसित था। कोर्ट ने कहा, सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार यह टिप्पणी की है। कि न्यायालयों को पीड़िता और उसके बच्चे के डीएनए परीक्षण के लिए प्रार्थना वाले आवेदन पर विचार करते समय सावधानी, सतर्कता और सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि इसके गंभीर सामाजिक परिणाम हो सकते हैं।
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