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फाइल फोटो Photograph: (google)
प्रयागराज, वाईबीएन विधि संवाददाता।इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) की भूमि अधिग्रहण योजना से संबंधित याचिकाओं पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कुछ श्रेणी की याचिकाएं खारिज कर दी तो तमाम याचिकाओं को निर्देश के साथ निस्तारित कर दिया। न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने गाजियाबाद के मोहिउद्दीनपुर कनवानी गाँव की लगभग 367 बीघा भूमि के अधिग्रहण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह आदेश दिया।
जीडीए को आदेश की तारीख से तीन माह के भीतर यह विकल्प चुनना होगा
यह अधिग्रहण जीडीए द्वारा एक 'नियोजित विकास योजना के तहत आवासीय कॉलोनी के निर्माण' के लिए अर्जेंसी क्लाज में प्रस्तावित किया गया था। याचिकाकर्ताओं ने मुख्य रूप से दो अधिग्रहण अधिसूचनाओं—16 अक्टूबर 2004 (धारा 4) और 28 नवंबर 2005 (धारा 6)—की वैधता पर सवाल उठाया था, जिसमें भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 17को लागू करके धारा 5-ए के तहत अनिवार्य जांच (आपत्तियां सुनने की प्रक्रिया) को खत्म कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि जांच को समाप्त करने के लिए आपातकाल प्रावधानों का आह्वान करना "मनमाना और अवैध" था। किसानों को आपत्ति देने व सुनवाई का अवसर दिए जाने का अधिकार है। कोर्ट ने जीडीए को यह अधिकार दिया है कि वह भूमि के अधिग्रहण को रद्द होने से बचा सकती है, लेकिन इसके लिए प्राधिकरण को निम्न शर्तों का पालन करना होगा। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण को आदेश की तारीख से तीन माह के भीतर यह विकल्प चुनना होगा कि वह याचिकाकर्ताओं की भूमि को बनाए रखना चाहता है या नहीं। यदि जीडीए भूमि को बनाए रखने का फैसला करता है, तो उसे उन याचिकाकर्ताओं को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के तहत मुआवजा देना होगा।
यदि जीडीए भूमि को बनाए रखने का विकल्प नहीं चुनता है, तो उस भूमि का अधिग्रहण रद्द माना जाएगा और वह भूमि संबंधित भूस्वामियों को सभी भारों से मुक्त होकर वापस मिल जाएगी। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि इस आदेश का लाभ केवल उन्हीं भूस्वामियों को मिलेगा जिन्होंने कोर्ट की शरण ली है । यह लाभ उन लोगों पर लागू नहीं होगा जिन्होंने पहले ही 'करार नियमावली' या पूर्व में दिए गए अवार्ड के तहत मुआवजा स्वीकार कर लिया है,या जिन्होंने धारा 4 की अधिसूचना के बाद अपनी भूमि हस्तांतरित कर दी थी। ऐसे लोगों की याचिका खारिज कर दी है।
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