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Prayagraj News: गंगानाथ झा परिसर के शोधार्थी पांडुलिपि पुस्तकालय पहुंचे, ऋग्वेद से आईने अकबरी तक किया अध्ययन

विश्व धरोहर सप्ताह (19 से 25 नवम्बर 2025) के अंतर्गत शुक्रवार को केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, गंगानाथ झा परिसर के शोध छात्र-छात्राओं ने राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय, प्रयागराज का शैक्षिक भ्रमण किया।

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Abhishek Panday
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गंगानाथ झा परिसर के शोधार्थी पांडुलिपि पुस्तकालय पहुंचे, ऋग्वेद से आईने अकबरी तक किया अध्ययन Photograph: (वाईबीएन)

प्रयागराज, वाईबीएन संवाददाता। विश्व धरोहर सप्ताह (19 से 25 नवम्बर 2025) के अंतर्गत शुक्रवार को केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, गंगानाथ झा परिसर के शोध छात्र-छात्राओं ने राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय, प्रयागराज का शैक्षिक भ्रमण किया। पांडुलिपि अधिकारी गुलाम सरवर के निर्देशन में हुए इस कार्यक्रम ने छात्रों को भारतीय ज्ञान परंपरा, प्राचीन साहित्य और लिपि-विकास की अनमोल विरासत से रूबरू कराया।

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मूल पांडुलिपियों का किया अवलोकन

डॉ. यशवंत त्रिवेदी के नेतृत्व में पहुंचे शोधार्थियों ने सर्वप्रथम मूल पांडुलिपियों का अवलोकन किया। इस दौरान छात्रों ने पांडुलिपियों की प्राचीनता, संरक्षण तकनीकों और संग्रहालय में अपनाई जा रही वैज्ञानिक विधियों के बारे में उत्सुकता से प्रश्न पूछे। पुस्तकालय के प्राविधिक सहायक हरिश्चंद्र दुबे और डॉ. शाकिरा तलत ने पांडुलिपि संरक्षण, उनकी ऐतिहासिक महत्ता तथा अक्षरांकन की पारंपरिक पद्धतियों पर विस्तृत जानकारी दी।

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प्रमुख लिपियों पर शोध छात्रों को दी महत्वपूर्ण जानकारी

कार्यक्रम में पांडुलिपि अधिकारी गुलाम सरवर द्वारा भारत की लिपियों के विकास ब्राह्मी, खरोष्ठी से लेकर उत्तर और दक्षिण भारत की प्रमुख लिपियों पर शोध छात्रों को महत्वपूर्ण जानकारी दी गई। इसके अलावा कार्यालय में संरक्षित असित कुमार हलदर की पेंटिंग्स, सचित्र रामचरितमानस, फारसी में लिखित रामायण-महाभारत, ताड़पत्र पर लिखी पांडुलिपियाँ भी शोधार्थियों के आकर्षण का केंद्र रहीं।

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वेद से लेकर अल-कुरान तक का अध्यन

छात्रों को ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, विष्णु पुराण, रामचरितमानस, सम्पूर्ण महाभारत, भगवद्गीता, वाल्मीकि रामायण, चरक संहिता, हरिवंश पुराण, कुमार संभव, नल-दमन, मुगलकालीन फरमान, आईने अकबरी, तोगरा, अल-कुरान, रामायण मसीही आदि मूल पांडुलिपियों के अवलोकन का अवसर मिला। इन ग्रंथों की लेखन शैली, कालखंड, प्रयुक्त सामग्री, चित्रांकन और संरक्षण पद्धतियों पर छात्रों ने रोचक चर्चा की। कार्यक्रम के अंत में प्रतिभागियों को कार्यालय द्वारा प्रकाशित कैटलॉग का वितरण किया गया। पांडुलिपि अधिकारी गुलाम सरवर ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे शैक्षणिक भ्रमण शोधार्थियों में भारतीय पांडुलिपि परंपरा के प्रति गहरी समझ और शोध रुचि विकसित करते हैं।

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