/young-bharat-news/media/media_files/2025/09/13/547186661_1207932348043061_5535596765304622542_n-2025-09-13-08-08-36.jpg)
रामपुर रजा लाइब्रेरी में संरक्षित किताब दिखाते निदेशक डा. पुष्कर मिश्र। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
रामपुर, वाईबीएन संवाददाता। रामपुर रज़ा पुस्तकालय की संरक्षण प्रयोगशाला ने एंग्लो-उर्दू फर्स्ट बुक (1867) दुर्लभ उर्दू मुद्रित पुस्तक का संरक्षण सफलतापूर्वक कर लिया है, जिससे यह आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रह सकेगी।
यह पुस्तक इलाहाबाद मिशन प्रेस से मुद्रित तथा नॉर्थ इंडिया ब्रांच ऑफ द क्रिश्चियन वर्नाक्युलर एजुकेशन सोसाइटी द्वारा 1867 में प्रकाशित की गई थी। यह एक द्विभाषी (अंग्रेज़ी–उर्दू) प्रारंभिक पुस्तक थी, जिसे भारतीय विद्यार्थियों को अंग्रेज़ी और उर्दू वर्णमाला सिखाने के लिए तैयार किया गया था। 38 पृष्ठों में वर्णमाला, पाठ और चित्रों सहित यह 19वीं सदी के भारत की शैक्षिक और सांस्कृतिक अदला-बदली का प्रतीक है।
यह संरक्षण प्रयास रजा लाइब्रेरी द्वारा धरोहर को सुरक्षित रखने और भारत में शिक्षा व मुद्रण के इतिहास को सहेजने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। निदेशक डॉ. पुष्कर मिश्र के मार्गदर्शन में इस सराहनीय कार्य को सफलतापूर्वक संपन्न किया गया तथा भविष्य में भी कला संरक्षण को और ऊँचाइयों तक पहुंचाया जाएगा।
/filters:format(webp)/young-bharat-news/media/media_files/2025/09/13/547288218_1207932041376425_2076376257347975039_n-2025-09-13-08-24-57.jpg)
158 साल पहले इसी पुस्तक से भारतीय बच्चे सीखते थे "अलिफ़ बे ते पे" और ब्रिटिश बच्चे "एबीसीडी"
आपको बता दें कि 158 साल पहले देश में अंग्रेजी शासन था। मुगलों के जाने के बाद अंग्रेजों ने देश पर कब्जा कर लिया था। इसलिए उर्दू ज्यादातर चलती थी। अंग्रेजों की वजह से अंग्रेजी का प्रभाव था। इसीलिए यह अंग्रेजी-उर्दू बुक प्रकाशित कराई गई थी। इस बुक से उर्दू सीखना आसान था। तो अंग्रेजी जानने वाले उर्दू और उर्दू जानने वाले अंग्रेजी भी सीख सकते थे। अलिफ़ बे ते पे और ए बी सी डी सीखने के लिए सबसे बेहतर यह बुक हुआ करती थी।
यह भी पढ़ेंः-
Rampur News: सामंती सुल्तानों का' जनाधार सिमटता जा रहा है पर अंहकार सिर चढ़कर बोल रहा हैः नकवी