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Rampur News: कश्मीर के चिनार पुस्तक महोत्सव में रामपुर रजा लाइब्रेरी की पुस्तकों को खूब मिली सराहना, 63 हजार की बिक्री

रामपुर रज़ा लाइब्रेरी ने श्रीनगर (कश्मीर) में आयोजित चिनार पुस्तक महोत्सव में सक्रिय रूप से भाग लिया। यहां पुस्तकों को पाठकों ने खूब सराहा। लगभग 63,000 रुपये की पुस्तकों बिकीं।

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Akhilesh Sharma
रामपुर

जम्मू कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा को रामपुर रजा लाइब्रेरी की वाल्मीकि रामायण भेंट करते निदेशक डा. पुष्कर मिश्र। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

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रामपुर, वाईबीएन नेटवर्क। रामपुर रज़ा लाइब्रेरी ने श्रीनगर (कश्मीर) में आयोजित चिनार पुस्तक महोत्सव में सक्रिय रूप से भाग लिया। इस पुस्तक महोत्सव से लौटे पुस्तकालय के कर्मचारियों ने बताया कि वहां पुस्तकालय की पुस्तकों को पाठकों द्वारा अत्यधिक सराहा गया तथा लगभग 63,000 रुपये की पुस्तकों की बिक्री हुई।

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कश्मीर के पुस्तक मेला में एमजे अकबर की पुस्तक का विमोचन करते अतिथि। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

इस अवसर पर पुस्तकालय के निदेशक डॉ. पुष्कर मिश्र भी श्रीनगर पहुंचे थे और उन्होंने “रिलीजियन, कल्चर और मॉडरनिटी” विषय पर आयोजित एक महत्त्वपूर्ण विमर्श एवं परिचर्चा में अपना सारगर्भित वक्तव्य प्रस्तुत किया था। इस अवसर पर पुस्तकालय के निदेशक डॉक्टर पुष्कर मिश्र ने कश्मीर की जनता को संबोधित करते हुए कहा कि मेरी शिक्षा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पूर्ण हुई है और आज के इस कार्यक्रम में जेएनयू के प्रोफेसर, शोधकर्ता और विद्यार्थी उपस्थित हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय केवल विचार नहीं है, बल्कि भावना भी है। वहां के एक कुलपति ने एक बार कहा था- “जो जेएनयू आज सोचता है, वह भारत कल करता है।” जेएनयू के लिए यह मायने रखता है कि आप क्या सोचते हैं और इस सोच को पूरी दुनिया में आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। जेएनयू केवल उत्तर नहीं प्रश्न करना भी सिखाता है।

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अतिथियों को रामपुर रजा लाइब्रेरी की हामिद मंजिल की पेटिंग भेंट करते निदेशक डा. पुष्कर मिश्र। Photograph: (वाईबीएन ने़टवर्क)

युद्ध के संकट से गुजर रही पृथ्वीः मिश्र

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जिस प्रकार के संकट से आज पूरी पृथ्वी गुजर रही है, उससे निपटने का उपाय ढूंढना अत्यंत आवश्यक है। 21वीं शताब्दी के 25 वर्ष बीत चुके हैं और हम अब भी युद्ध का अंत नहीं देख पा रहे हैं। दुनिया के कई हिस्सों में युद्ध चल रहा है, कई देश युद्ध की तैयारी कर रहे हैं और हथियारों की बिक्री कई गुना बढ़ गई है। यह इस बात का संकेत है कि अब तक जिन श्रेणियों या जिन विश्व-दृष्टियों से हम सोचते आए हैं, वे असफल रही हैं।

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अतिथियों को स्मृति चिन्ह देते निदेशक डा. पुष्कर मिश्र। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

पूरी दुनिया के लिए महिला नेतृत्व ज्यादा सुरक्षित

सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि हम आने वाले समय में अपनी संतानों को कैसा भविष्य देना चाहते हैं। मुझे हर्ष है कि यहां युवाओं की संख्या बहुत अधिक है, इसका अर्थ है कि वे जानना और समझना चाहते हैं कि दूसरों के विचार क्या हैं, और उसके आधार पर अपनी विश्लेषणात्मक क्षमता विकसित कर आने वाले भविष्य का निर्माण करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि जब महिलाएं नेतृत्व संभालेंगी तो दुनिया अधिक सुरक्षित, संरक्षित और शांतिपूर्ण होगी। एक महिला में मां होती है और मां पोषण करती है। अतः वह केवल अपनी संतानों को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को पोषित करने का गुण अपने डीएनए में लिए होती है- आज हमें इसी की आवश्यकता है। पुरुषों ने हमें युद्ध, अहंकार और संघर्ष दिए हैं, जबकि महिलाओं ने हमें शांति व सुरक्षा दी है। क्योंकि वे नहीं चाहतीं कि उनके बच्चे मरें; वे चाहती हैं कि उनके बच्चे जीवित रहें; वे चाहती हैं कि उनके बच्चों के हाथों में किताबें हों, न कि बंदूकें। बंदूक किसी संस्कृति या मज़हब को नहीं जानती, नैतिकता नहीं समझती, भाषा नहीं जानती, लिंग नहीं जानती। केवल एक चीज़ जानती है—मारना। एक महिला कभी नहीं चाहेगी कि किसी अन्य महिला का बच्चा मारा जाए। यही कारण है कि पूरी मानवता की आशा महिला-नेतृत्व में निहित है, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ शांति, समृद्धि और सुरक्षा में रह सकें।

तर्कशीलता के विज्ञान को आत्मसात करने की जरूरत

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यदि हम तर्कशीलता के विज्ञान को अपने चिंतन और दृष्टिकोण का उपकरण बना लें, तो संघर्ष से संबंधित 99 प्रतिशत समस्याएँ समाप्त हो जाएंगी। समाजशास्त्री अलग ढंग से सोचता है। समाजशास्त्री प्रक्रियाओं, जटिलताओं और उन मूलभूत पहलुओं पर विचार करता है, जिनसे समाज आकार लेता है। वे मूलभूत क्या हैं? पहला है—स्वयं, यानी व्यक्ति। जिसे मज़हब बहुत कम ही स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में रहने देता है, क्योंकि मज़हब में ‘स्व’ या ‘व्यक्ति’ की अवधारणा प्रायः अनुपस्थित होती है। मज़हब दुनिया को कुछ निश्चित सिद्धांतों पर सामूहिक, मतान्ध दृष्टिकोण से देखता है—भले ही वह कोई भी मज़हब हो। इस प्रकार समाज की पहली इकाई ‘व्यक्ति’ और ‘स्व’ को मज़हब द्वारा समाप्त (annihilate) कर दिया जाता है। मैं जानबूझकर बहुत कठोर शब्द का प्रयोग कर रहा हूं क्योंकि इतिहास में मज़हब ने बार-बार ऐसा किया है। यह अरब दुनिया की ओर भी हुआ और पश्चिमी समाज की ओर भी—मज़हब के नाम पर करोड़ों-करोड़ों लोगों का वध किया गया, सिर्फ़ इसीलिए कि अपनी मज़हब-सुपरिमेसी स्थापित की जा सके। यह तथ्य इतिहास में दर्ज है, यह मेरा कोई व्यक्तिगत मत नहीं है।

मजहबवाद लोहे का पिंजरा तो विचारधारा सुनहरा पिंजरा

मानवतावाद (Humanism) कई प्रकार की विचारधाराओं में परिवर्तित हुआ—जैसे पूंजीवाद, साम्यवाद, राष्ट्रवाद आदि। विचारधाराओं का यह जाल आज भी मंडरा रहा है और उनके बीच लगातार संघर्ष चलता है। मैं अपने जे.एन.यू. के दिनों से ही कहा करता था कि यदि थियोलॉजी (मजहबवाद) लोहे का पिंजरा है, तो आइडियोलॉजी (विचारधारा) सुनहरा पिंजरा है। क्योंकि कोई भी आज़ादी तब तक नहीं हो सकती, जब तक व्यक्ति किसी और के दृष्टिकोण, विश्व-दृष्टि और सोच से बंधा हुआ है। समाज को सामूहिक रूप से नियंत्रित करने वाली तीन प्रमुख संस्थाएँ हैं—मज़हब, राज्य और कॉर्पोरेशन। मज़हब अपने अनुयायियों की संख्या बढ़ाना चाहता है, और रास्ते में जो भी आए उसे नष्ट कर देता है। राज्य अपनी शक्ति बढ़ाना चाहता है, और इसके लिए दूसरे राज्य को मिटा देता है, युद्ध करता है। और कॉर्पोरेट जगत, हम सब जानते हैं, लोगों से विभिन्न तरीक़ों से लाभ कमाता रहता है। तो वास्तविक आज़ादी कहाँ है? वह आज़ादी स्व (Swa) में है जिसे प्राचीन मनीषियों ने ‘स्वराज’ (Swaraj) के रूप में प्रतिपादित किया।

स्वराज का अर्थ क्या है?

स्वराज का अर्थ है स्वयं पर नियंत्रण। स्वयं को जीत लेना ही पूरे जगत को जीत लेना है। जब कोई स्वयं को जीत लेता है, तो कोई भी संघर्ष नहीं रह जाता—चाहे वह भाषा के नाम पर हो, मज़हब के नाम पर हो, क्षेत्र के नाम पर हो। हर व्यक्ति स्वयं को मुक्त करता है और समस्त ज्ञात-अज्ञात अस्तित्व को अपने ‘स्व’ के रूप में देखता है। और दूसरे के ‘स्व’ में भी वही ब्रह्मांड देखता है। इस प्रकार राजनीतिक विज्ञान की भाषा में कहा जा सकता है कि दो व्यक्तियों का मिलन, दो संप्रभुताओं (sovereignties) का मिलन होता है। ‘स्व’ (Self) को जब संप्रभुता (Sovereign) का दर्जा मिल जाता है, तभी वास्तविकता में आज़ादी, स्वराज और स्वतंत्रता की प्राप्ति होती है — चाहे इसे किसी भी नाम से पुकारा जाए। जैसा कि भाई हाफ़िज़ुर रहमान ने कहा, आश्रम परम्परा उसी दिशा में कार्य कर रही है। यहाँ कई युवा विद्वान उपस्थित हैं और मैं हर समय उपलब्ध हूँ इस दृष्टि (Vision) को आगे बढ़ाने के लिए। इस दृष्टि के मूलभूत सिद्धांत यही हैं कि — जाति, पंथ, मज़हब, भाषा, लिंग, क्षेत्र किसी भी आधार पर भेदभाव किए बिना हर मनुष्य को आत्म-साक्षात्कार का अधिकार है। तब हम बंधी बंधाई सोच से आज़ाद हो जाते हैं। आश्रम परम्परा उसी दिशा में कार्य कर रही है, जहाँ किसी भी स्थान पर जन्मा कोई भी व्यक्ति उस स्वराज को अनुभव कर सके, जिसका मैंने उल्लेख किया। और यह कार्य किसी मत या डॉग्मा (Dogma) के रूप में नहीं, बल्कि एक-दूसरे के अनुभव साझा करते हुए भविष्य के निर्माण के लिए होना चाहिए — ऐसा भविष्य जो सुरक्षित हो, समृद्ध हो, जिसमें हमारे बच्चों के हाथों में न पत्थर हों, न रायफलें, न बंदूकें और न बम, बल्कि उनके हाथों में किताबें हों, उनके मस्तिष्क में इल्म (ज्ञान) हो, ताकि वे उस संसार को रोशन कर सकें, जिसमें हम जीते हैं।ॉ

उपस्थित सभी युवा विद्यार्थियों से मेरा विनम्र आग्रह 

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“बँधी-बँधाई सोच से मुक्त हो जाओ। अपने बारे में सोचो। दुनिया को किस नज़र से देखते हो, इस पर विचार करो। और फिर उसी दृष्टिकोण से उसका विश्लेषण करो। वही तुम्हारा अपना चिंतन होगा, वही तुम्हारे ‘स्व’ की अनुभूति होगी और वही तुम्हें इतनी शक्ति देगा कि तुम कह सको कि सारा अस्तित्व और अनस्तित्व, समस्त संसार, कुछ और नहीं बल्कि ‘मैं’ ही हूँ।”

एमजे अकबर की पुस्तक का विमोचन

कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ लेखक एवं राजनेता  एमजे. अकबर की पुस्तक “The Shade of Swords” का विमोचन भी किया गया, जिसने इस आयोजन को और अधिक विशिष्ट बना दिया। यह विचारगोष्ठी चिनार पुस्तक महोत्सव 2025 के बौद्धिक सत्रों की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण पड़ाव सिद्ध हुई और स्मरणीय बन गई।

राज्यपाल मनोज सिन्हा को भेंट की वाल्मीकि रामायण

रामपुर रज़ा पुस्तकालय के निदेशक डॉ. पुष्कर मिश्र ने अपनी कश्मीर यात्रा के दौरान राजभवन, श्रीनगर में माननीय उपराज्यपाल जम्मू-कश्मीर  मनोज सिन्हा से भेंट कर उन्हें पुस्तकालय की दुर्लभ पांडुलिपि “वाल्मीकि रामायण” की प्रकाशित प्रति सप्रेम भेंट की। इस अवसर पर उन्होंने कश्मीर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफ़ेसर निलोफ़र ख़ान तथा कश्मीर के विद्वानों, युवाओं और विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों से भी शैक्षिक एवं सांस्कृतिक सहयोग तथा अकादमिक संवर्धन पर सार्थक चर्चा की।

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