शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाता
शहर के चित्रा टाकीज में श्रद्धा और भक्ति का दिव्य संगम देखने को मिल रहा है। यहां श्रीमद्भागवत कथा का शुभारंभ विधि-विधान से हुआ, जिसमें भक्तों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। कथा के प्रथम दिवस पर वृंदावन से पधारे आचार्य डॉ. दामोदर दीक्षित ने श्रीमद्भागवत के मंगलाचरण की व्याख्या की। उन्होंने बताया कि यह ग्रंथ केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि ईश्वर का साक्षात स्वरूप है, जिसे सुनने और समझने से जीवन में आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति होती है।
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व्यास-नारद संवाद और श्रीमद्भागवत की उत्पत्ति
कथा के दौरान आचार्य दीक्षित ने वेदव्यास और नारद के बीच हुए संवाद को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि कैसे वेदों को चार भागों में विभाजित करने के बाद भी वेदव्यास के हृदय में अधूरापन बना रहा। तब नारद जी ने उन्हें भगवान की लीलाओं का वर्णन करने की प्रेरणा दी, जिससे श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना हुई। इस ग्रंथ का श्रवण करने से भक्तों को आत्मिक शांति और मोक्ष की ओर अग्रसर होने का मार्ग मिलता है।
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विराट स्वरूप की उपासना और मोक्ष का संदेश
आचार्य जी ने भगवान के विराट स्वरूप का सुंदर वर्णन करते हुए बताया कि इस रूप की उपासना से सभी प्रकार की नकारात्मकता समाप्त हो जाती है। उन्होंने राजा खटकाग की कथा सुनाई, जिन्होंने साधु संगति के माध्यम से मुक्ति प्राप्त की। इस प्रसंग से यह सीख मिलती है कि यदि व्यक्ति सद्गुणों और सत्संगति को अपनाए, तो जीवन के सभी दुख दूर हो सकते हैं।
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संगीत की स्वर लहरियों संग बही भक्ति गंगा
कथा के पहले दिन खन्ना परिवार के सदस्यों ने व्यास गद्दी का पूजन कर कथा की शुरुआत की। पुरोहित पंडित अनंतराम जी ने धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराए, जबकि पंडित रामदुलारे त्रिगुनायत ने भरत चरित्र पर व्याख्यान दिया। मंच संचालन आचार्य रामानंद दीक्षित ने किया, जिन्होंने भक्ति और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग को विस्तार से समझाया। वहीं, रमेश त्रिपाठी और प्रसून त्रिपाठी ने हनुमान चालीसा व भजन प्रस्तुत कर भक्तों को भक्ति रस में सराबोर कर दिया। इस सात दिवसीय कथा का समापन 25 मार्च को भव्य भंडारे और प्रसाद वितरण के साथ होगा।
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