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श्रीमद् भागवत कथा सुनने के बाद कोई और कथा सुनने की जरुरत नहीं: कथा व्यास

प्राचीनतम बाबा त्रिवटीनाथ मंदिर के श्री रामालय में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस परम पूज्य कथा व्यास पंडित देवेंद्र उपाध्याय ने कहा कि वेदव्यास जी की अति अद्भुत तथा दुर्लभ अंतिम कृति श्रीमद्भागवत महापुराण है।

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Sudhakar Shukla
katha bareilly

बरेली, वाईबीएन संवाददाता

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बरेली। प्राचीनतम बाबा त्रिवटीनाथ मंदिर के श्री रामालय में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस परम पूज्य कथा व्यास पंडित देवेंद्र उपाध्याय ने कहा कि वेदव्यास जी की अति अद्भुत तथा दुर्लभ अंतिम कृति श्रीमद्भागवत महापुराण है । महर्षि वेदव्यास को भागवत की रचना करने के बाद और कुछ लिखने की आवश्यकता नहीं पड़ी । इसका अभिप्राय बताते हुए कथा व्यास ने कहा कि ठीक इसी तरह भागवत कथा सुनने के बाद और कुछ भी सुनने की आवश्यकता नहीं रहती।

श्रीमद्भागवत: सत्य का निरूपण और वेदों का सार

कथा व्यास ने कहा कि जब व्यास जी भागवत का सबसे पहला श्लोक लिख रहे थे। तब उन्होंने किसी देवी देवता का स्पष्ट रूप से नाम नहीं लिया। क्योंकि जिस देवता का नाम लिख दे, तो उनके  उपासक उस ग्रंथ पर अपना ही अधिकार बताते। इसलिए परम सत्य की वंदना उन्होंने की क्योंकि सत्य को तो सभी स्वीकार करते हैं। भागवत कपट से रहित ग्रंथ है। वेद पुराणों और उपनिषदों का सार हैं। इसलिए परमात्मा की इस अनुपम कृति का बार-बार इसका श्रवण करना चाहिए।

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कथा व्यास ने बताया कि श्रीमद् भागवत की रचना द्वापर युग में महर्षि वेदव्यास द्वारा  देव ऋषि नारद की प्रेरणा से की गई थी। उसमें विष्णु भगवान के 24 अवतारों का भी वर्णन है। जो व्यक्ति 24 अवतारों का स्मरण  नित्य करता है। उसके सारे दुख समाप्त हो जाते हैं।

परीक्षित का वैराग्य और श्रीमद्भागवत का उपदेश

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कथा व्यास ने बताया कि महाभारत के अंतिम युद्ध के बाद विष्णु रात नामक बालक का जन्म हुआ। वही बाद में परीक्षित कहलाए और उन्होंने बहुत अच्छे से राज्य का संचालन किया। लेकिन एक ऋषि कुमार के श्राप के कारण उन्होंने सर्वस्व त्याग दिया और गंगा तट आकर  करके भगवान का ध्यान करने लगे। बड़े उच्च कोटि के संत उनके यहां बगैर निमंत्रण के आए और उनको समझाया फिर महामुनी सुखदेव जी भी प्रकट हो गए। उन्होंने भागवत धर्म का उपदेश दिया।

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कथा व्यास ने गंगापुत्र भीष्म की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनका वास्तविक नाम देवव्रत नाम था। उन्होंने आजीवन ब्रम्हचर्य का पालन किया। इनको इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था। जब तक ये नहीं चाहेंगे । तब तक इनके प्राण शरीर को नहीं छोड़ेंगे। अंत समय में भगवान श्री कृष्ण के समक्ष अपने प्राणों का त्याग किया।

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श्रीमद्भागवत कथा: सत्य और कर्तव्य पालन की प्रेरणा

कथा व्यास कहते हैं कि श्रीमद्भागवत कथा मनुष्य को सत्य के मार्ग पर चलते हुए अपने सत्य से परिपूर्ण कर्म को करने की प्रेरणा देती है। हम अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर पायें। बाबा त्रिवटीनाथ मंदिर सेवा समिति के मीडिया प्रभारी कि संजीव औतार अग्रवाल ने बताया कि यह कथा 28 फरवरी से  6  मार्च तक समय  सांयकाल 4 से 6 बजे तक अनवरत चलेगी। मीडिया प्रभारी ने बरेली की भक्तिपरायण सनातन प्रेमियों से कथा श्रवण कर लाभ लेने का आवाहन किया है।

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कथा के उपरांत काफी संख्या में उपस्थित भक्तों ने श्रीमद्भागवत की आरती की तथा प्रसाद वितरण हुआ । आज की कथा में मंदिर कमेटी के  प्रताप चंद्र सेठ, मीडिया प्रभारी संजीव औतार अग्रवाल , हरिओम अग्रवाल का मुख्य सहयोग रहा।

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