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धर्म कर्म : भागवत की रसधार में डूबे श्रद्धालु, कृष्ण जन्म और अम्बरीष की भक्ति का प्रसंग सुनाया

शाहजहांपुर में श्रीमद्भागवत कथा के दौरान राजा अम्बरीष की भक्ति और दुर्वासा ऋषि के क्रोध का वर्णन हुआ, जिसमें भगवान विष्णु ने अपने भक्त की रक्षा की। दशम स्कंध में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की कथा सुनाई गई।

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Anurag Mishra
धर्म कर्म

श्रीमद् भागवत कथा में कृष्ण जन्म का संजीव चित्रांकन करते कथा व्यास Photograph: (ybn network )

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शाहजहांपुर वाईबीएन संवाददाता 

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श्रीमद्भागवत महापुराण कथा में नवम स्कंध के अंतर्गत राजा अम्बरीष की भक्तिभावना और महर्षि दुर्वासा के क्रोध का प्रसंग सुनाया गया। राजा अम्बरीष, वैवस्वत मनु के प्रपौत्र और राजर्षि नाभाग के पुत्र थे। सात द्वीपों की विशाल पृथ्वी के स्वामी होने के बावजूद वे सांसारिक सुखों से विरक्त रहकर ईश्वर भक्ति में लीन रहते थे। उन्होंने पत्नी सहित एकादशी व्रत का पालन किया, लेकिन जब द्वादशी के दिन व्रत का पारण करने लगे, तभी महर्षि दुर्वासा उनके अतिथि बने और भोजन के लिए स्वीकृति देकर यमुना स्नान करने चले गए। द्वादशी समाप्त होने से पूर्व राजा ने नियम अनुसार भगवान विष्णु के चरणामृत से व्रत खोल लिया। जब दुर्वासा ऋषि को यह ज्ञात हुआ तो वे क्रोधित हो उठे और अपने एक बाल से कृत्या नामक राक्षसी उत्पन्न कर राजा अम्बरीष पर हमला करवा दिया। भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र ने कृत्या का संहार कर दिया और दुर्वासा ऋषि को दंड देने दौड़ा। भयभीत होकर दुर्वासा जी ब्रह्मा, शिव और इंद्रलोक की शरण में गए, लेकिन किसी ने उनकी रक्षा नहीं की। अंततः वे राजा अम्बरीष के पास आए और क्षमा याचना की, जिसके बाद भगवान विष्णु ने उन्हें मुक्त किया।

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श्रीकृष्ण का जन्म और कंस का आतंक

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दशम स्कंध में चंद्रवंश की कथा के साथ वासुदेव और देवकी के विवाह प्रसंग का वर्णन किया गया। विवाह के बाद जब राजा कंस अपनी बहन देवकी को ससुराल छोड़ने जा रहा था, तभी आकाशवाणी हुई कि देवकी की आठवीं संतान उसका काल बनेगी। यह सुनते ही कंस भयभीत हो उठा और देवकी की हत्या करने लगा, लेकिन वासुदेव जी ने उसे आश्वस्त किया कि वे उसकी सभी संतानों को उसे सौंप देंगे। कंस ने दोनों को कारागार में डाल दिया और एक-एक कर छह संतानों की हत्या कर दी। नारद मुनि के कहने पर उसने यह निर्णय लिया कि वह देवकी की हर संतान का वध करेगा। सातवीं संतान संकर्षण को योगमाया के प्रभाव से रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया गया, जिससे बलराम का जन्म हुआ। अष्टम संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए और वासुदेव जी ने उन्हें गोकुल में नंदबाबा के घर पहुँचा दिया। बदले में वे यशोदा की नवजात कन्या को कारागार में ले आए। जब कंस ने उसे मारने का प्रयास किया, तो वह देवी रूप में प्रकट होकर बोली कि उसका काल वृजमंडल में जन्म ले चुका है।

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नंदभवन में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव और पूतना वध

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गोकुल में श्रीकृष्ण के जन्म पर छठे दिन नंदभवन में भव्य उत्सव मनाया गया। नंदबाबा ने ब्रजवासियों के बीच अन्न, वस्त्र और उपहारों का वितरण किया। इसी बीच कंस ने पूतना नामक राक्षसी को गोकुल भेजा, जिसने सुंदर स्त्री का रूप धारण कर लिया और भगवान श्रीकृष्ण को मारने की योजना बनाई। पूतना उत्सव में सम्मिलित हो गई और उपहार भेंट करने के बहाने यशोदा जी के पास पहुँची। यशोदा जी अन्य कार्यों में व्यस्त थीं, तब पूतना बालकृष्ण को गोद में लेकर उन्हें विषैले स्तनपान कराने लगी। भगवान ने दूध के बहाने उसके प्राण भी खींच लिए। पीड़ा से छटपटाते हुए वह अपने असली राक्षसी रूप में आ गई और विशाल आकार में धरती पर गिरकर प्राण त्याग दिए। भगवान श्रीकृष्ण ने उसे उद्धार कर मोक्ष प्रदान किया।

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भक्ति संकीर्तन और श्रद्धालुओं की सहभागिता

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कथा आयोजन में श्रद्धालुओं ने बड़ी संख्या में भाग लिया और भक्ति संकीर्तन के माध्यम से माहौल को भक्तिमय बना दिया। सर्वप्रथम खन्ना परिवार के पुरोहित जी ने देव पूजन कराया, जिसके बाद कार्यक्रम का शुभारंभ रमेश त्रिपाठी, प्रसून त्रिपाठी और रामवाली द्वारा हनुमान चालीसा और भजन प्रस्तुति से हुआ। रामदुलारे त्रिगुनायत ने अयोध्या कांड में राम-केवट संवाद सुनाकर श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। पीलीभीत से पधारे शिवकुमार सुमन ने किष्किंदा कांड की कथा सुनाई। कथा संचालन आचार्य रामानंद दीक्षित ने किया, जिन्होंने भक्ति और मुक्ति की व्याख्या प्रस्तुत की। कार्यक्रम के मुख्य यजमान कमलेश कुमार खन्ना ने व्यासपीठ का पूजन कर सभी विद्वानों का माल्यार्पण कर स्वागत किया। आयोजन में चंद्रशेखर खन्ना (धीरू खन्ना), रागिनी खन्ना, सरला खन्ना, ओम खन्ना, डॉ. राम मेहरोत्रा, सोमनाथ कपूर, सरिता कपूर, ध्रुवनारायण मेहरा, सुधा मेहरा समेत अनेक श्रद्धालुओं का विशेष योगदान रहा।

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