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समस्या : बच्चों में बढ़ती मोबाइल की लत, कैसे पाएं छुटकारा

आजकल बच्चे मोबाइल की लत में जकड चुके हैं। जिससे उनमें डिप्रेशन, मूड स्विंग, अनिद्रा, दृष्टि दोष के साथ ही मानसिक रोग भी बढ़ रहे हैं। इस समस्या को लेकर वाईबीएन संवाददाता ने समाज के बुद्धिजीवी वर्ग से इसके बारे में राय जानी

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Dr. Swapanil Yadav
MOBILE

बच्चे में मोबाइल की लत Photograph: (INTERNET MEDIA)

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शाहजहांपुर वाईबीएन संवाददाता

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पिछले दो दशकों में मोबाइल जीवन का हिस्सा बन चुका है।  हम पल भर भी मोबाइल से दूर नहीं रह पा रहे हैं। हमारी तमाम गतिविधियां मोबाइल के माध्यम  से ही नियंत्रित हो रही हों।  एक दूसरे से बातें करने के अलावा सभी जरूरी काम जैसे बैंकिंग, मेल, होटल बुकिंग, सभी टिकट, शेयर बाजार और यहाँ तक कि खाने का आर्डर भी आप मोबाइल से दे रहे हैं।  बड़ों की तो ठीक है लेकिन बच्चे मोबाइल पर गेम खेलने के साथ साथ इसके इतने आदी हो चुके हैं कि खाना भी तभी खा रहे हैं जब सामने मोबाइल चल रहा हो । उनका स्क्रीन टाइम बड़ों से भी ज्यादा है। मोबाईल के निरंतर प्रयोग से बच्चों में गंभीर शारीरिक एवं मानसिक समस्याएं उभर रही हैं। ऐसे में जब पढ़ाई और होमवर्क भी मोबाइल के माध्यम से हो रहा हो तो उनका स्क्रीन टाइम कम करना सबसे बड़ी चुनौती है।  शहर के बुद्धिजीवियों से हमने उनकी इस मुद्दे पर राय जानी

बच्चों को मोबाइल की लत से दूर रखने के लिए माता-पिता को कुछ सरल और प्रभावी उपाय अपनाने चाहिए। सबसे पहले, बच्चों के मोबाइल उपयोग के लिए एक निश्चित समय सीमा तय करें और उसका पालन करवाएं। उन्हें शारीरिक गतिविधियों जैसे खेलकूद, डांस, या योग में व्यस्त रखें, ताकि उनका ध्यान मोबाइल से हट सके। परिवार के साथ समय बिताने के लिए बोर्ड गेम्स खेलें या साथ में बातचीत करें। बच्चों को रचनात्मक कार्यों जैसे पेंटिंग, ड्राइंग, या क्राफ्ट में लगाएं, जिससे उनकी रुचि मोबाइल से हटकर अन्य गतिविधियों में बढ़े। उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करें और रोचक किताबें उपलब्ध कराएं। घर के कुछ हिस्सों को टेक्नोलॉजी-फ्री जोन बनाएं, जहाँ मोबाइल का उपयोग न हो। साथ ही, बच्चों के सामने खुद भी मोबाइल का कम उपयोग करें, क्योंकि बच्चे अक्सर बड़ों का अनुसरण करते हैं। इन उपायों से बच्चों को मोबाइल की लत से दूर रखा जा सकता है

डॉ. आदर्श पांडेय, विभागाध्यक्ष, बॉटनी डिपार्टमेंट, स्वामी शुकदेवानंद महाविद्यालय 

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डॉ. आदर्श पाण्डेय, एसएस कॉलेज Photograph: (Self)

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आजकल लोगों में किताबें पढ़ने की आदत समाप्त हो चुकी है। पहले लोगों के घरों में पत्रिकाएं आया करती थीं। बच्चे भी कॉमिक्स के साथ साथ चम्पक और नंदन जैसी पत्रिकाएं पढ़ा करते थे।  आज भी बाजार में बाल साहित्य भरा पड़ा है बस जरूरत है बच्चों के हाथों तक पहुँचाने की। अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा किताबें दें वो पढ़ने लगेंगे और मोबाइल की आदत छूट जाएगी। स्कूलों को भी चाहिए कि मोबाईल पर होमवर्क या पीडीफ भेजना सीमित करें। 

सैय्यद अनीस अहमद, पुस्तकालयाध्यक्ष, जी एफ कॉलेज 

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सैयद अनीस अहमद, जीएफ कॉलेज Photograph: (Self)
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मोबाइल से सबसे अधिक नुकसान बच्चों को ही हुआ है। सच तो यह है कि मोबाइल ने उनसे उनका बचपन छीन लिया है। उनकी शारीरिक गतिविधियां बिल्कुल समाप्त हो चुकी हैं। वह खेल जिससे शरीर को ताकत व फुर्ती आती थी, अब बच्चे नहीं खेलते और दिन भर मोबाइल में ही बिजी हैं। मोबाइल से उनकी पढ़ाई भी प्रभावित होती है और आंखों को भी नुकसान होता है। मां-बाप को यह समझना होगा की मोबाइल की स्क्रीन से आने वाला रेडिएशन उनके बच्चों की आंखों के साथ-साथ उनके मस्तिष्क के विकास के लिए बेहद हानिकारक है।

डॉ. मंसूर अहमद सिद्दीकी, प्रवक्ता इतिहास विभाग, जीएफ कॉलेज, शाहजहांपुर 

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डॉ. मंसूर अहमद सिद्दीकी, जीएफ कॉलेज Photograph: (Self)

 

बच्चे अनुकरण से प्रभावित होते हैं, इसलिए स्वयं बड़ों को मोबाइल से दूरी बनानी चाहिए। खाली समय में जब हम किताबें पढ़ेंगे तो बच्चे भी पढ़ेंगे। एक किताब स्वयं के लिए खरीदिये तो एक बच्चों के लिए। पढ़ाई के लिए मोबाइल का सीमित प्रयोग करें। मोबाइल के नकारात्मक प्रभावों की चर्चा भी बच्च्चों के साथ आराम से बैठकर करें। सकारात्मक सोच से सभी रास्ते निकल  सकते हैं।  

प्रदीप तोमर, वरिष्ठ शिक्षक, बेसिक शिक्षा

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प्रदीप तोमर Photograph: (Self)

 

 

बच्चों को मोबाइल का इस्तेमाल करने का समय तय करें, खाना खाने के समय मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करने दें। बहुत सी आउटडोर एक्टिविटी होती है उसमें बच्चों को शामिल करें ,जैसे कि फुटबॉल, क्रिकेट, बैडमिंटन, साइकिल चलाना। बच्चों को गार्डनिंग करना सीखना चाहिए, ताकि बच्चे पेड़ पौधों के साथ अपना समय बिता सकें। बच्चों के साथ अधिक से अधिक समय बिताएं। बच्चों को पार्क में बाहर खेलने के लिए प्रेरित करना चाहिए। जितना ध्यान खेलने में लगेगा उतना ही कम मोबाइल में होगा। बच्चे की हेल्थ भी अच्छी होगी। स्विमिंग, पार्क में खेलने के लिए मोटिवेट करें। अब एकदम से तो ये हो नहीं सकता कि बच्चे पूरी तरह गैजेट्स या स्मार्ट टीवी को छोड़ दें इसलिए बीच का रास्ता निकालना जरूरी है।आप बच्चे को गैजेट्स देने या स्मार्ट टीवी देखने के लिए एक टाइमिंग तय करें। बच्चा कितने बजे से और कब तक इन्हें यूज करता है उसे इसका टाइम बताएं।

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तराना जमाल, प्रधानाचार्या, लीड कान्वेंट 

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तराना जमाल Photograph: (Self)

 

मोबाइल की लत को रोकने के लिए माता-पिता को अनुशासन, प्रेम और सही मार्गदर्शन का संतुलन बनाना होगा। बच्चों को डिजिटल दुनिया से जोड़ने के साथ-साथ वास्तविक जीवन के अनुभवों से भी अवगत कराना जरूरी है। बच्चों के लिए मोबाइल उपयोग का एक निश्चित समय तय करें। पढ़ाई, खेल और परिवार के साथ समय बिताने के बाद ही मोबाइल उपयोग की अनुमति दें। माता-पिता स्वयं मोबाइल का सीमित उपयोग करें, क्योंकि बच्चे बड़ों का अनुसरण करते हैं। परिवार के साथ भोजन और बातचीत के दौरान मोबाइल से दूरी बनाए रखें। बच्चों से नियमित रूप से बातचीत करें और उनके जीवन में क्या चल रहा है, इसमें रुचि लें। इससे वे अपने विचार साझा करेंगे और मोबाइल पर निर्भर नहीं रहेंगे।

डा. रूपक श्रीवास्तव, असिस्टेंट प्रोफेसर, वाणिज्य विभाग, स्वामी शुकदेवानंद महाविद्यालय

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डॉ. रूपक श्रीवास्तव Photograph: (Self)

 

कागज़ की कश्ति अब कहा मिलती है देखने को ...........पहले की माताओं के पास बच्चों को आज की तरह मोबाइल स्क्रीन से दूर रखने के लिए रचनात्मक और आकर्षक तरीके थे। वे अक्सर कहानी सुनाने का इस्तेमाल करती थीं, हॉपस्कॉच, मार्बल और लुका-छिपी जैसे आउटडोर गेम हुआ करते थे कि बच्चे सक्रिय बने रहें। शिल्पकला और हाथ का काम, जैसे कि कागज़ की नाव, मिट्टी के खिलौने या साधारण कढ़ाई बनाना, बच्चों को व्यस्त रखते थे और उनकी रचनात्मकता को बढ़ाते थे। घरेलू भागीदारी एक और तरकीब थी-माँ बच्चों को अनाज छाँटने, चपाती बेलने या बागवानी जैसे छोटे-मोटे कामों में मदद करने के लिए प्रोत्साहित करती थीं, जिससे उन्हें ज़िम्मेदार और जुड़ा हुआ महसूस होता था। त्यौहार और सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं, जिसमें बच्चे घरों को सजाने, रंगोली बनाने या मिठाइयाँ तैयार करने में सक्रिय रूप से भाग लेते थे। कठपुतली शो और छाया नाटक रात के समय का आम मनोरंजन था, जो स्क्रीन के बिना कल्पना को जगाता था। इन सभी चीजों ने न केवल बच्चों को व्यस्त रखा बल्कि मजबूत पारिवारिक बंधन और जीवन कौशल भी बनाए ।


काजल यादव, यूथ आइकॉन एवं समाजसेवी 

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काजल यादव Photograph: (Self)

 


बच्चों को मोबाइल का उपयोग सीमित समय के लिए करने दें।  घर में मोबाइल-मुक्त ज़ोन बनाएं, जैसे कि डाइनिंग टेबल या लिविंग रूम। बच्चों को आउटडोर गेम्स और शारीरिक गतिविधियों में शामिल करें। बच्चों को किताबें पढ़ने और शैक्षिक खेलों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करें। बच्चों के लिए मोबाइल फ़ोन के उपयोग के नियम बनाएं, जैसे कि मोबाइल का उपयोग रात में न करना।

आँचल शर्मा, शिक्षिका, द मसूरी इंटरनेशनल

 

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आंचल शर्मा Photograph: (Self)

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सत्य तो यह है कि आज केवल बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े हों या बूढ़े कोई भी मोबाइल की लत से अछूता नहीं है। परन्तु हम बच्चों के दिनचर्या में कुछ बदलाव करके इससे निजात पा सकते हैं जैसे - पढ़ाई के बाद उनको इनडोर - आउटडोर गेम्स के लिए प्रोत्साहित करना, डांस, पेंटिंग, क्राफ्टिंग , बुक रीडिंग आदि की ओर ले जाना ताकि वह खाली समय में केवल एक जगह पर बैठकर फोन ही ना चलाएं, कुछ शारीरिक गतिविधियां करें। साथ ही उनको केवल निश्चित समय के लिए ही फोन दें। और बच्चों के सामने फोन चलाने से बचें।

अमिता राज, शिक्षिका

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अमिता राज Photograph: (Self)

 

बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम निर्धारित करें और उसका पालन करवाएं। अलग-अलग गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें। बच्चे आपस में मिलना सीखें ना कि सोशल साइट पर मिलें। मनोरंजन के लिए मोबाइल की जगह कुछ और चुनें। मां-बाप भी घर में मोबाइल का कम इस्तेमाल करें और मोबाइल की जगह बच्चों को किताबें पढ़ने की आदत डालें।

अनन्या मिश्रा शोधार्थी

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अनन्या मिश्रा Photograph: (Self)

 

बच्चों में मोबाइल की लत मौजूदा समय की बेहद गंभीर समस्या बन चुकी है। देखने में आया है कि मोबाइल पर अध्ययन सामग्री की अपेक्षा बच्चे उन सोशल साइट्स का अधिक उपयोग कर रहे हैं जिनमें अश्लीलता अथवा फूहड़ किस्म की मनोरंजक सामग्री भरी पड़ी है।इस गंभीर समस्या का हल यही है कि उन्हें अच्छा मनोरंजन और बाल साहित्य उपलब्ध कराया जाए।दूर होती जा रही किताब संस्कृति की ओर उन्हें मोड़ा जाए।दादी,नानी वाले किस्से पेरेंट्स स्वयं सुने,पढ़ें और बच्चों को सुनाएं।अच्छे और मनोरंजक बाल साहित्य का सृजन और प्रसारण किया जाना चाहिए।बच्चों के हाथ में किताब हो न कि मोबाइल।पेरेंट्स बच्चों के साथ बतियाएं,साथ में कुछ पल बिताएं तभी कुछ हद तक हम उन्हें मोबाइल की लत से बचा सकेंगे।

आदर्श कुशवाह, शोधार्थी

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आदर्श कुशवाह Photograph: (Self)

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