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धर्मः ऋृंगी ऋृषि की तपस्थली ढाई घाट में चैत्र पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं ने किया स्नान

शाहजहांपुर से सटे ढाईघाट में शनिवार को हजारों श्रद्धालुओं ने चैत्र पूर्णिमा पर गंगा स्नान कर दान पुण्य किया। ढाई घाट ऋृंगी ऋृषि की तपस्थली होने की वजह से यहां के गंगा स्नान का विशेष महत्व माना जाता है।

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Narendra Yadav
शाहजहांपुर न्यूज

ढाई घाट में गंगा स्नान करते श्रद्धालु। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क )

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शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाता

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जनपद के सीमावर्ती इलाके से सटकर बह रही भागीरथी गंगा मैया में शनिवार को हजारों श्रद्धालुओं ने स्नान करके दान पुण्य किया। मौका था चैत्र पूर्णिमा का। ढाईघाट में गंगा किनारे सुबह ब्रह्म मुहूर्त शुरू होते ही घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ गई। ऋृंगी ऋृषि की तपस्थली होने की वजह से लोग यहां गंगा स्नान का अधिक महत्व मानते हैं। 

 शनिवार को सुबह पूर्णिमा तिथि आते ही श्रद्धालु गंगा घाट पर पहुंचने लगे। सुबह भोर से ही स्नान का सिलसिला शुरू हो गया। जोकि दोपहर तक चलता रहा। आज का दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण रहा क्योंकि कल से वैशाख मास का स्नान शुरू हो रहा है। मान्यता है कि पूरे वैशाख में स्नान और दान पुण्य करने से पापों से मुक्ति मिलती है। ढाई घाट के अलावा बहुत से श्रद्धालु फर्रूखाबाद के घटिया घाट पर भी गंगा स्नान करने पहुंचे। तो कुछ लोगों ने खन्नौत और देवहा नदियों में भी स्नान करके पुण्य लाभ कमाया। 

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ऋृंगी ऋृषि ने यहीं की थी ढाई साल तक घोर तपस्या

जिला मुख्यालय से 50 किमी दूर स्थित ढाईघाट गंगा तट ध्यान साधना के लिए जाना जाता है। समूचे प्रदेश में प्रसिद्ध इस प्राचीन मेले के बारे में यूं तो अनेक अनुश्रुतियां प्रचलित हैं, किंतु तपोनिष्ठ श्रंगी ऋषि से संबंधित अनुश्रुतियां ज्यादा प्रमाणित मानी जाती हैं। बतातें हैं कि श्रंगी ऋषी एवं महर्षि वशिष्ठ द्वारा पुत्रेष्ठि यज्ञ से महाराज दशरथ को पुत्र रत्‍‌न की प्राप्ति हुई थी। पुनीत यज्ञ में आचार्य के लिए आमंत्रित करने के लिए गुरु वशिष्ठ के साथ महाराज दशरथ गंगा तट स्थित ढाईघाट पर ही महर्षि श्रंगी को आमंत्रित करने आए थे। महर्षि मंडक अपने पुत्र श्रंगी ऋषि को अहंकार रूपी श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए गंगातट पर नैमिषारण्य से आए 88000 ऋषियों का सत्संग कराया। ऋषियों के मध्य बैठकर सौनकादि ऋषि से श्रंगी ऋषि ने ढाई वर्ष तक कथा इसी स्थान पर सुनीं। प्रतिदिन गंगा स्नान कर घोर तप भी किया था। कथा के साथ ही गंगा स्नान से श्रंगी ऋषि को धर्म तत्व ज्ञान का बोध हुआ। ढाई वर्ष के गंगा स्नान और सत्संग के कारण भी इस स्थान का नाम ढाईघाट पड़ा। दूसरी किवदंती है कि इस पवित्र स्थान पर ऋषियों ने ढाई हजार वर्ष तक गंगा तट पर तप किया गया था। इस स्थान का नाम ढाईघाट पड़ने का यह भी कारण है। सनद सनंदन सनतकुमार नामक ऋषि इसी स्थान पर प्रकट हुए थे। जो ब्रम्हा जी के पुत्र थे। लाक्षागृह से बचने के बाद पांडव छदम भेष में इसी स्थान के समीप रहे थे। इसे अब सनाय कहते हैं। यहीं से पांडव आखेट करने हिरण्य खेरे पर गये थे जो वर्तमान में हर्रई खेडे के नाम से जाना है। आज भी दूरदराज क्षेत्रों से आने वाले भक्त यहां पूजा अर्चना, मुंडन संस्कार, यज्ञोपवीत समेत तमाम धार्मिक अनुष्ठान कर पुण्य अर्जित करने आते हैं।

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