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भद्रशीला नदी के निरीक्षण को भद्रशीला यात्रा दर्शन के रूप में निकले जिलाधिकारी धर्मेंद्र प्रताप सिंह। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाता। स्कंद पुराण में वर्णित भद्रशीला नदी को पुराने स्वरूप में लौटाने के लिए जिलाधिकारी धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने गुरुवार को चार घंटे में 40 किलोमीटर की दूरी तय कर नदी को सदानीरा बनाने का रोडमैप तैयार किया। अब पौराणिक कथाओं में उल्लेखित उलकामुख नाम के राजा द्वारा की गई श्री सत्यनारायण व्रत कथा की साक्षी भद्रशीला पुनः अपने स्वरूप में लौटेगी। यही नहीं यह धार्मिक पर्यटन के साथ ही पूरी दुनिया में सनातन धर्म प्रेमियों की आस्था का प्रतीक बनेगी।
हम यहां बात कर रहे उस भद्रशीला नदी की जिसका जिक्र स्कंद पुराण के रेवा खंड में होता है। यह कथा भगवान विष्णु और नारद मुनि के संवाद के रूप में है। जिसमें विष्णु भगवान नारद मुनि को कथा में, उल्कामुख राजा को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर बता रहे हैं कि उलकामुख नाम के राजा ने यह कथा भद्रशीला नदी के किनारे की थी। कथा के प्रभाव से वह कैसे सत्यनिष्ठा और दानशीलता से भगवान की कृपा प्राप्त होता है और अगले जन्म में राजा दशरथ के रूप में जन्म लेकर भगवान राम के पिता के रूप में स्थान पाता है। जिस स्थान पर उलकामुख ने कथा की थी वह स्थान भद्रशीला नदी का नारायणपुर गांव है। जोकि कांट से मदनापुर जाने वाले मार्ग पर आता है।
जानिये कहां से शुरू हुई जिलाधिकारी की भद्रशीला दर्शन यात्रा
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जिलाधिकारी धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने गुरुवार को भद्रशीला नदी को पौराणिक काल के स्वरूप में लाने के लिए भद्रशीला दर्शन यात्रा सुबह 11 बजे शुरू की। सबसे पहले कटरा-कुर्रियाकला रजवाहा से निकले मदनापुर क्षेत्र के रहदेवा गौटिया वाली झाल पहुंचे। यहां अंग्रेजी शासनकाल में नहर का निर्माण किए जाने से भद्रशीला नदी दो भागों में बंटने के स्थान को देखा और इसका समाधान खोजने के लिए सिंचाई विभाग के साथ ही जिला विकास अधिकारी को लगाया। यहां कैसे दो भागों में बंटी भद्रशीला को जोड़कर अविरल धारा बहाई जा सकेगी। इसके बाद यह यात्रा कांट के गुलौलाखेड़ा गांव पहुंची। यहां भद्रशीला किनारे बने नौ कूपों को देखा। साथ में पुरातन वट वृक्ष के दर्शन किए। यहां प्राचीन कुआं का विकास कराने और इस स्थान को धार्मिक पर्यटन के रूप में बनाने पर विचार करने का निर्देश दिया।
नारायणपुर पट्टी करमु पहुंचकर श्री सत्यनारायण भगवान की कथा में शामिल हुए
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कांट के नारायणपुर पट्टी करमू पहुंचे, यह नारायणपुर वही स्थान है जहां उलकामुख नाम के राजा ने सत्यनारायण भगवान की कथा की थी, भद्रशीला नदी यहां बहती है। जिलाधिकारी को गांव वालों ने बताया कि खोदाई में यहां नाव की कीलें और कई पौराणिक वस्तुएं निकलती हैं, जिससे इस स्थान का महत्व समझ में आता है। लेकिन आज तक किसी ने इस धार्मिक महत्व के स्थान के विकास पर ध्यान नहीं दिया। पहली बार कोई जिलाधिकारी यहां आकर इस धार्मिक महत्व के पौराणिक स्थान पर आकर इसके विकास के बारे में सोचने आया है। जिलाधिकारी ने दर्शन यात्रा के अंतर्गत वे महत्वपूर्ण स्थल चिन्हित किए हैं, जहां नदी को पुनर्जीवित करने की संभावनाएं अत्यंत प्रबल हैं। इस दौरान जिलाधिकारी ने भद्राशिला तट पर सत्यनारायण भगवान की कथा, आरती में भी सहभागिता की। लोकभारती के प्रांत प्रमुख डॉ विजय पाठक, संयोजक संजय उपाध्याय, अखिलेश पाठक, संजय त्रिपाठी समेत डीडीओ ऋषिपाल सिंह आदि ने भी आरती की।
भद्रशीला नदी के इन प्रमुख स्थलों पर पहुंचे डीएम धर्मेंद्र प्रताप सिंह
- राहदेव गौटिया बाली झाल - मदनापुर
-गुलौलाखेड़ा कांट
- नारायणपुर पट्टी करमु -कांट
- सरैया मोड़ मंदिर - कांट
- मोहनपुर पुलिया - कांट
- मदरौली - प्रतापपुर के बीच की पुलिया - मदनापुर
- चंदयोरा बहादुरपुर एवं खाईखेड़ा - मदनापुर क्षेत्र
- रूपापुर - जलालाबाद क्षेत्र
- कोलाघाट रोड स्थित त्रिवेणी संगम( बहगुल, रामगंगा और भद्रशिला नदियां संगम स्थल)
गुलौलाखेड़ा गुरुकुल स्थल पर भद्रशीला को तलाशते रहे जिलाधिकारी
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गुलौलाखेड़ा कांट विकास खंड क्षेत्र का वह स्थान है जहां भगवान परशुराम का गुरुकुल था। यहां भीष्म पितामाह नेव कर्ण ने भी शिक्षा प्राप्त की थी। इस स्थान को देखकर जिलाधिकारी काफी अचंभित थे। उन्होंने यहां भद्रशीला नदी को तलाश किया। यहां उन्होंने पुरातन स्थल मंदिर व वटवृक्ष भी देखे।
नदी के संरक्षण के लिए तकनीकी विशेषज्ञों से गहन विचार विमर्श
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जिलाधिकारी ने निरीक्षण के उपरांत बताया कि यह नदी लगभग 100 से 120 किलोमीटर की लंबाई में फैली है। आज इसके अंतिम छोर तक भ्रमण किया गया है। उन्होंने कहा कि नदी के संरक्षण और पुनर्जीवन को लेकर विभागीय एवं तकनीकी विशेषज्ञों के साथ गहन विचार-विमर्श किया जाएगा, जिससे इस प्राकृतिक धरोहर को पुनः उसकी पुरातन गरिमा में लाया जा सके। जिलाधिकारी ने कहा कि यदि इन चिन्हित बिंदुओं पर योजनाबद्ध कार्यवाही की जाए तो भद्रशिला नदी का पुनर्जीवन संभव है और यह क्षेत्र पर्यटन, धार्मिक एवं जैविक दृष्टिकोण से अत्यंत समृद्ध बन सकता है। उन्होंने संबंधित विभागों को निर्देशित किया है कि यात्रा से पूर्व सभी स्थलों की भौगोलिक, तकनीकी और पर्यावरणीय रिपोर्ट तैयार कर प्रस्तुत की जाए, ताकि यथासंभव शीघ्र कार्यवाही प्रारंभ की जा सके।
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