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भैंसी नदी खुदाई के बाद कलकल बहता पानी। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाता। ऋृषि-मुनियों के समय उलकामुख नाम के राजा की ओर से की गई श्री सत्यनारायण व्रत कथा की साक्षी भद्रशीला नदी इठला उठी है। एक तो चतुर्मास की बेला में इंद्र देव प्रसन्न होकर बरस रहे हैं तो दूसरी ओर जिलाधिकारी रूपी कोई भागीरथ आया है जो भद्रशीला की प्यास बुझाने को सदैव के लिए अविरल और सदानीरा बनाने वाला है। दूसरी तरफ सहयोगी नदी भैंसी को सरस सलिला बनाने के लिए काम चल रहा है। भैंसी जीर्णोद्धार के लिए उत्कंठ है। जिलाधिकारी धर्मेंद्र प्रताप सिंह गुरुवार को करीब 30 किलोमीटर लंबी भद्रशीला नदी में कल-कल नीर बहाने को निरीक्षण भी करेंगे।
पौराणिक कथाओं की गवाह भद्रशीला नदी को बचाने के लिए दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र यादव ने अपने सात सराकारों में एक जलसरंक्षण के तहत ध्यान आकर्षित कराया था। 15 जून 2020 के अंक में 'नीर बिना मैं नदी अभागन' शीर्षक से खबर भी छापी थी। इसके बाद लोकभारती संस्था ने नदी के पुनर्जीवन का संकल्प लिया था। तटवर्ती इलाके में रहने वाले गांवों के लोग श्रमदान करने पहुंचे। तब भी अधिकारी आए थे। लेकिन किसी कारणवश अभियान नदी की प्यास नहीं बुझा पाई थी, लेकिन आज इसी अभियान के फलस्वरूप प्रदेश सरकार ने सदानीरा बनाकर अविरल बहाने का संकल्प लिया है। इसकी मुझ भद्रशीला नदी को बहुत खुशी हो रही है।
स्कंद पुराण में है भद्रशीला नदी का उल्लेख
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स्कंद पुराण में मेरा उल्लेख है। सत्यनरायण व्रत की कथा की मैं साक्षी हूं। लीलावती, कलावती ने मेरी गोद में बैठकर सत्यनारायण व्रत की कथा सुनी थी। जमदग्नि आश्रम और भगवान परशुराम का गुरुकुल भी हमारे आंचल में था। अब इस स्थान को गुलौलाखेड़ा के नाम से जाना जाता है। वैसे तो साल में दो बार यहां विशाल मेला लगता है। लेकिन मैं सूख चुकी अभागिन भद्रशीला की वजह से लोग मेरे निर्मल जल में आचमन तक नहीं कर पाते हैं। मुझे बड़ी खुशी हो रही है। जिलाधिकारी रूपी भागीरथ मुझे फिर अजर अमर करने आया है।
उद्भव स्थल से करीब 100 किमी की यात्रा कर मैं मां भागीरथी में विलीन होती हूं
मेरा उछ्वव बरेली की सीमा से हैं। करीब सौ किमी की यात्रा से मैं ब्लाक जलालाबाद में रामगंगा में समाहित होकर आगे मैं गंगा में विलीन हो जाती हूं। लेकिन अब मैं भी प्राणवान हो सकती हूं। सदानारी, सरस सलिला बन सकती हूं। मेरे सदानीरा बनने से भूगर्भ जलस्तर ठीक होगा। जब मैं सदानीरा थी तो भूगर्भ जलस्तर 5 से 8 फुट तक हुआ करता था। अब हमारे उद्गम से संगम तक जल स्तर 25 से 35 फुट नीचे है। मेरी वेदना का कारण मानव ही है, फिर भी मैं मानव जाति के सुखद भविष्य के लिए मदद की दरकार करती रही। अब जिलाधिकारी रूपी सपूत मन से लगकर कतिपय प्रयासों से मुझे फिर से सदानीरा सरस सलिला बनाने आया है। मैं नई जिंदगी से खुद को धन्य कर लूंगी। मानव को भी जीवन दूंगी।
वट वृक्ष का भी हो जाएगा उद्धार
भद्रशीला नदी की महत्ता का साक्षी वट वृक्ष भी बहुत प्रफुल्लित दिख रहा है। इस वट वृक्ष की उम्र कितनी है किसी को कुछ पता नहीं, लेकिन वृक्ष की नौ पीढ़ी हो चुकी हैं यह आप खुद देख सकते हैं। वट वृक्ष की छांव में ही भगवान परशुराम का कभी गुरुकुल हुआ करता था। भीष्म पितामह भी यहीं पढ़े। कर्ण ने भी शिक्षा पाई। ऊंचा सा टीला देखकर आप इसका महत्व जान सकते हैं। अज्ञातवाश में पांडवों ने यहीं शस्त्र छिपाए थे। लेकिन मैं मां भद्रशीला के सरस सलिला सदानीरा बनने से उपेक्षित नहीं रहूंगा, लेकिन मैं आजीवन छांव के साथ प्राणवायु देता रहूंगा।
पेशवाओं ने खुदवाए थे भद्रशीला के तट के पास नौ कुंए
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महाराष्ट्र के पेशवाओं का व्यापार शाहजहांपुर जनपद के मीरानपुर कटरा तक फैला था। वे एक बार माल लेकर आते थे, इसके बाद वसूली करने के लिए आते थे। मदनापुर क्षेत्र के गुलौलाखेड़ा गांव के पास भद्रशीला के किनारे जो अवशेष आज भी देखने को मिलते हैं। उसका विकास पेशवाओं ने ही किया था। यहां बड़े बड़े नौ कूप हैं। कुओं का पानी बहुत निर्मल है। इन कुओं को लोकभारती ने पुनर्जीवन दिलाया था। विशाल बरगद (वट वृक्ष) की भी रक्षा कराई गई थी।
प्राचीन कुओं को मिलेगा पुनर्जीवन, सावन में कुएं के जल से होगा शिवार्चन
लोकभारती संगठन के नदी प्रमुख डा. विजय पाठक, कांट के समाजसेवी अखिलेश पाठक, संतोष दीक्षित आदि भगीरथों ने नौ कुएं को जीवन देने का भी प्रयास किया था। फिर से पुनर्जीवन के बारे में कहा है। करीब 80 फीट गहरे कुओं की सफाई कराके उनका पेयजल के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। संगठन का संकल्प है कि इन कुओं का जीर्णोद्धार कर सावन के पहले सोमवार को इसी के जल से शिवार्चन कराएंगे।
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