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जब शाहजहांपुर के सपूत ने पाकिस्तान को झुका दिया, खींच लाया जंग से टैंक, जानिए वीरता की वो कहानी

शाहजहांपुर खुटार के सूबेदार मेजर बख्शीश सिंह ने 1971 की भारत-पाक युद्ध में दुश्मन का टैंक जंग के मैदान से खींच कर अपनी यूनिट में लाकर पराक्रम का परिचय दिया था। जैसलमेर के लोंगेवाला सेक्टर में उन्होंने पाकिस्तानी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था।

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Ambrish Nayak
Shahjahanpur news

सूबेदार मेजर बख्शीश सिंहPhotograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

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शाहजहांपुर वाईबीएन संवाददाता 

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लोंगेवाला की रणभूमि में शौर्य की मिसाल बने खुटार के लाल, पूरी यूनिट रह गई थी दंग

राजस्थान की तपती रेत, रात का सन्नाटा और आसमान में गरजते दुश्मन के टैंक। दिसंबर 1971 की वह रात किसी भी भारतीय सैनिक के लिए चुनौती से भरी थी। लेकिन शाहजहांपुर जिले के कस्बा खुटार के बजरिया मोहल्ले के निवासी सूबेदार मेजर बख्शीश सिंह ने उस चुनौती को ऐसा जवाब दिया कि दुश्मन थर्रा उठा और अपनी बख्तरबंद रेजीमेंट को पीछे खींचने पर मजबूर हो गया।

1971 की जंग, जब आग उगल रही थी धरती

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1 दिसंबर 1971 राजस्थान के लोंगेवाला सेक्टर में भारत-पाक युद्ध ने रौद्र रूप ले लिया था। पाकिस्तान की 22वीं आर्मर्ड रेजीमेंट के टैंक धड़धड़ाते हुए भारतीय सीमा में 20 किलोमीटर तक घुस आए थे। अंधेरे का लाभ उठाकर पाकिस्तानी फौज आगे बढ़ रही थी। तभी भारतीय सेना के एक अदम्य योद्धा ने मोर्चा संभाला नाम था सूबेदार मेजर बख्शीश सिंह।

बख्शीश सिंह ने टैंक से किया सीधा मुकाबला

खुद बख्शीश सिंह बताते हैं हमें पीछे हटने का आदेश नहीं था हम जैसलमेर की माटी की लाज थे। रेजिमेंट कमांडर मेजर चांदपुर की अगुवाई में उनकी यूनिट तैयार थी लेकिन टैंकों का जवाब टैंक से ही दिया जा सकता था। बख्शीश सिंह अपने टैंक दस्ते के साथ मोर्चे पर पहुंचे और जैसे ही पाकिस्तानी टैंक सामने आए उन्होंने पहला गोला दागा। देखते ही देखते पाकिस्तानी टैंक नंबर 359 ध्वस्त हो गया।

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दुश्मन का टैंक खींच लाए अपनी यूनिट में

सबसे रोमांचक क्षण वह था जब बख्शीश सिंह ने पाकिस्तानी फौज से मुकाबला करते हुए एक सलामत टैंक पर कब्जा कर लिया। जान की परवाह किए बिना उन्होंने उस टैंक को खींचकर अपनी यूनिट तक पहुंचाया। पूरी यूनिट कुछ पल के लिए स्तब्ध रह गई ये कैसे मुमकिन है लेकिन यह मुमकिन हुआ क्योंकि उस टैंक के ऊपर भारत मां के वीर पुत्र का हाथ था।

बलिदान की गाथा भी जुड़ी इस जंग से

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इस युद्ध में भारतीय सेना के जवान हरवीर सिंह नायक सुबह सिंह और गुरमेल सिंह वीरगति को प्राप्त हुए। हरवीर सिंह को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया। बख्शीश सिंह आज भी उन साथियों को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं उनकी शहादत के बिना हम जीत नहीं पाते।

आज भी सीना चौड़ा कर कहते हैं .. मैं फौजी हूं

78 वर्ष की उम्र में भी सूबेदार मेजर बख्शीश सिंह का जोश कम नहीं हुआ है। उनकी चाल भले थोड़ी धीमी हो गई हो, लेकिन आवाज में वही दम है। वे गर्व से कहते हैं मैंने दुश्मन की आंखों में आंखें डालकर लड़ाई लड़ी। आज भी जरूरत पड़े तो पीछे नहीं हटूंगा।

शाहजहांपुर को गर्व है ऐसे वीर सपूत पर

आज जब नई पीढ़ी मोबाइल में खोई है तब खुटार की धरती से निकला यह योद्धा याद दिलाता है कि देशप्रेम केवल शब्द नहीं बलिदान का नाम है। सूबेदार मेजर बख्शीश सिंह न केवल एक सैनिक हैं बल्कि प्रेरणा हैं उस जिले के लिए जो हमेशा मां भारती के लिए बलिदान देने को तैयार रहा है।

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