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जिसने किया था वीभत्स हत्याकांड, आज जेल अधीक्षक की देखरेख में बना रही है नई जिंदगी

शाहजहांपुर के चर्चित हत्याकांड की आरोपी महिला ने जेल अधीक्षक मिजाजी लाल के मानवीय प्रयासों से एक नई जिंदगी शुरू की है। बच्ची के जन्म और नामकरण संस्कार ने उसकी सोच और व्यवहार में अद्भुत बदलाव ला दिया है।

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Ambrish Nayak
जेल अधीक्षक मिजाजी लाल

Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

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शाहजहांपुर,वाईबीएन संवाददाता 

कभी एक वीभत्स हत्याकांड के कारण शहर को झकझोरने वाली महिला आज शाहजहांपुर जेल में एक सामान्य और सभ्य जीवन जी रही है। यह परिवर्तन संभव हो पाया है जेल अधीक्षक मिजाजी लाल की मानवीय सोच और सतत प्रयासों से, जिन्होंने जेल को केवल सजा का स्थान नहीं, बल्कि सुधार और पुनर्वास का केंद्र बनाया है।

जेल अधीक्षक मिजाजी लाल
Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

चर्चित मामले में महिला ने अपने पति की नृशंस हत्या कर उसके शव के अंग नाली में फेंक दिए थे। घटना जितनी वीभत्स थी, उसके पीछे की मानसिक स्थिति भी उतनी ही गंभीर थी। गिरफ्तारी के बाद महिला की मानसिक स्थिति को देखते हुए मिजाजी लाल ने तत्काल मानसिक जांच कराई और उसे बेहतर इलाज हेतु वाराणसी मानसिक चिकित्सालय भेजा। साढ़े तीन माह के उपचार के बाद महिला पूर्णतः स्वस्थ होकर शाहजहांपुर जेल लौटी।

इस दौरान वह गर्भवती थी। मार्च माह में जेल में उसने एक कन्या को जन्म दिया। जेल अधीक्षक मिजाजी लाल ने न सिर्फ बच्ची के जन्म का विशेष ध्यान रखा, बल्कि बच्ची के नामकरण संस्कार का भव्य आयोजन भी कराया। जिला जज, जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक सहित शहर के गणमान्य नागरिक और स्वयंसेवी संगठनों ने इस समारोह में भाग लिया। केक काटने से लेकर बच्ची के नामकरण तक का हर पल महिला के जीवन में सकारात्मक बदलाव का प्रतीक बन गया।

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इस अवसर पर महिला का व्यवहार अत्यंत सामान्य और सम्मानजनक था। जब एक समाजसेवी महिला ने उसे केक खिलाने के लिए हाथ बढ़ाया तो उसने शिष्टता से कहा पहले आप जो उसके भीतर आए बदलाव का स्पष्ट प्रमाण था। आज वह महिला जेल में अन्य बंदियों के साथ सामान्य जीवन जी रही है। अपनी बच्ची की देखभाल कर रही है और सभी गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी निभा रही है। किसी से कोई शिकायत नहीं, कोई विद्रोह नहीं सिर्फ एक नई दिशा में जीवन को जीने की कोशिश।

इस पूरी प्रक्रिया में जेल अधीक्षक मिजाजी लाल की सोच संवेदनशीलता और कार्यशैली प्रमुख रही। उनका मानना है कि अपराधी से नहीं, अपराध से घृणा करनी चाहिए। यदि मानसिक और सामाजिक स्तर पर सही दिशा दिखाई जाए, तो कोई भी व्यक्ति बदल सकता है। यह कहानी न सिर्फ जेल सुधार की सफलता का उदाहरण है, बल्कि समाज को अपराधियों के पुनर्वास के प्रति सोचने पर भी मजबूर करती है।

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