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World Poetry Day Photograph: (Internet Media)
शाहजहांपुर वाईबीएन संवाददाता
विश्व कविता दिवस प्रतिवर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है। यूनेस्को ने इस दिन को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा वर्ष 1999 में की थी जिसका उद्देश्य को कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देने के लिए था। आज विश्व कविता दिवस पर हमारे संवाददाता ने शहर के वरिष्ठ एवं युवा कवियों से कविता के सामने आने वाली चुनौतियों पर उनकी राय जानी
कविता के सामने हर युग में चुनौतियां रही हैं। देश की आजादी के समय गुलामी की चुनौती। देश के आजाद होने के बाद सपनों के टूटने और भ्रष्टाचार की चुनौती कविता के समक्ष खड़ी रही। कविता इनसे पूरी शिद्दत से लड़ी। आज के समय बाजारवाद और राजनीतिक विद्वेष कविता के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती के रूप में उपस्थित हैं । संवेदनाएं भी जब बिकने के लिए बाजार में खड़ी हैं और उन्हें विभिन्न माध्यमों से बेचा जा रहा है, ऐसे में कविता किस तरह हर चीज को जिंस में बदलने के संकट से अपने आप को बचा पाती है और कैसे इसका विरोध करती है? आज यह सबसे बड़ी चुनौती कविता के समक्ष है।
डॉ. प्रशांत अग्निहोत्री
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साहित्य की कोई भी विधा हमारे समाज और समाज से उत्पन्न मनः स्थितियों का चित्रण है। विभिन्न कालखंडों में कविता अपने समाज की दशा और दिशा का प्रतिबिंबन करती आई है। आज जटिलता बहुत बढ़ गई है। समय से कहीं अधिक तेज़ गति से समाज में बदलाव आया है। धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक परिस्थितियां बहुत बदल गई हैं। अस्मिता की चुनौतियां, अविश्वास की प्रबलता, विशिष्टता की पक्षधरता,विभिन्न संप्रदायों में आध्यात्मिकता के स्थान पर धार्मिक कर्मकांडो की बहुलता, युवाओं की दिग्भ्रमिता, पारिवारिक विघटन, रिश्तों में संवेदन शून्यता, अपसंस्कृति का बोलबाला, अज्ञात समयाभाव, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के प्रति एडिक्टनेस इत्यादि आज बहुत सी ऐसी नई चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं, जो आधुनिक युग की देन हैं। आज कविताओं को इनसे रु-बरु होना होगा।
प्रो. मोहम्मद साजिद खान
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वर्तमान में कविता के समक्ष संप्रेषणीयता, कविता का गद्य मय होना, कविता का काल निर्धारण, विचारों को सटीक तरह से अभिव्यक्त करना आदि हैं।प्रायः छपने वाली कविता मंचीय नहीं होती यह चुनौती भी है कि वह वह पढ़ने और सुनने में एक प्रभाव वाली हो। इधर विश्व विभिन्न वादों में अपने को समायोजित कर रहा है तब वहां कविता को भी अपने आपको समाज के अनुकूल ढालना आवश्यक है। एक चुनौती कवियों की भरमार भी है और पाठकों की नगण्यता। अतः कवियों को कविता की वह भागीरथी लाना होगा जो जनता या पाठक को पुनर्जीवित कर सके।
कमल मानव
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आज के परिवेश में कविता अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ सी रही है क्योकि कविता सत्ता और बाज़ारवाद की चरण वन्दना नहीं कर सकती कविता समाज का दर्पण है जो सत्य को स्वीकारती है और असत्य को धिक्कारती है इसलिए सत्ताधारी सदैव इसे चुपचाप गर्त में धकेलने का काम करते है यह देश के लिए ,कविता के लिए बड़ी विडम्बना है!
विजय ठाकुर
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मन की उलझने और समाज की समस्याओं को झेलता हुआ व्यक्ति अपने भावों को शिल्पगत प्रस्तुति देता है।इसी का नाम कविता है।कविता चाहें ओज की हो या अपनी उलझनों का बयान हो यह हर युग में रहा है इसलिए कविता के सामने कोई उलझन नहीं।
अजय गुप्त
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वर्तमान में कविता कई चुनौतियों से जूझ रही है | सबसे बड़ी चुनौती यह कि आर्थिक अनुपयोगिता के चलते वह उस वांछित स्थान को नहीं पा पा रही है जिसकी कि वह हकदार है | लगभग हर व्यक्ति अपनी परेशानियों का हल कविता में तो तलाशता है लेकिन उसकी उपेक्षा करने में देर नहीं लगाता | यह जानने समझने के बाद भी उपेक्षा करता है कि कविता सारे समाज को संबल देती है | कवि के सामने भी यही समस्या है कि कविता क्षणिक वाहवाही भले ही देती है लेकिन रोटी नहीं देती | फिर भी इससे इंकार करना सम्भव नहीं कि अकेली कविता ही है जो किसी भी समाज की बोली , बानी को जिन्दा रखती है और कविता का अभाव शून्यता के साथ अवसाद भी पैदा कर सकता है |
सुशील दीक्षित विचित्र
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समाज सदैव से ही कविताओं से प्रेरित और प्रभावित होता आ रहा है यह इतिहास भी है और वर्तमान भी। वर्तमान उँगली का संकेत गुणवत्ता की ओर है। भविष्य पर बात करने से पहले वर्तमान कविता में चिंतन और चेतना होना प्रमुख शिल्प है। कविता को समाज निर्माण के प्रमुख उपादान के रूप में स्वीकार करने में अधिक लाभ की संभावना है।
कविता कवि की ओढ़नी, कविता है विश्वास।
कविताओं ने पूर्ण की, है सामाजिक आस।।
विवेक कुमार
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महर्षि वाल्मीकि के शोक से उत्पन्न हुई विश्व की पहली कविता वर्तमान परिदृश्य में "विचार-प्रकट करने के साधन" से अधिक एक "बिकाऊ उत्पाद" की तरह देखी जाने लगी है। कविता में विविधता के स्थान पर एकरूपता आ रही है, जहाँ कवि वही लिखते हैं जो ज्यादा लोगों को आकर्षित करे या वायरल हो जाए। समाज और राजनीति की बदलती धारा कवियों को सीमित कर रही है। आजकल कविता के मुकाबले अन्य साहित्यिक विधाएँ , जैसे कि निबंध, कहानी, और उपन्यास, अधिक लोकप्रिय हैं।
ललित हरि मिश्रा
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जितनी समस्याएं आती हैं कविता उतना अधिक निखरती है।
क्योंकि समस्या के समय उपजे भावों का शिल्पबद्ध प्रगटीकरण ही कविता है।कविता स्वयं और समाज के जीवन की समस्याओं को सुंदर रूप में प्रगट होने का अवसर देती है।
शिवाजी गुप्त
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वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कविता सृजन की परम्परा पूर्णतः व्यापारिक रूप ग्रहण कर रही है।करुणा व संवेदना जैसे मनोभाव कविता की मूल प्रकृति में समाहित नहीं हो पा रहे हैं।कुछ प्रबुद्ध कवि जिन मूल्यों, प्रतिबद्धताओं के लिए कविता के माध्यम से आवाज उठाना चाहते हैं उन्हें राजनीतिक व सामाजिक प्रोत्साहन मिलने की आवश्यकता है।
शिवप्रकाश दीक्षित
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