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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क: एशिया कपके शेड्यूल के सार्वजनिक होने पर शुरू में काफी संदेह था। खासकर मौजूदा भू-राजनीतिक तनाव और जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, भारत-पाकिस्तान के बीच मुकाबला होगा या नहीं यह बड़ा सवाल था। जब भारतीय टीम का ऐलान हुआ तब भी लोगों को विश्वास नहीं था कि भारत-पाक मैच होगा, क्योंकि कईयों का मानना था कि यह सिर्फ बीसीसीआई का निर्णय है और सरकार मंजूरी देने में हिचकिचा सकती है। लेकिन अब स्थिति स्पष्ट हो चुकी है। जो लोग सोच रहे थे कि सार्वजनिक दबाव के कारण भारत-पाक मैच रद्द हो जाएगा वे गलत साबित हुए। यह मुद्दा सोशल मीडिया, मुख्यधारा के मीडिया और संसद तक गूंजा।
भारत द्विपक्षीय खेल संबंध पाकिस्तान के साथ नहीं रखेगा
सरकार ने आधिकारिक बयान जारी कर कहा है कि एशिया कप मेंभारत-पाक मैच होगा और इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत द्विपक्षीय खेल संबंध पाकिस्तान के साथ नहीं रखेगा, लेकिन अंतरराष्ट्रीय और बहुपक्षीय टूर्नामेंटों में पाकिस्तान के खिलाफ खेलेगा। 2013 से भारत-पाक के बीच कोई द्विपक्षीय क्रिकेट सीरीज नहीं हुई है और यह नीति जारी रहेगी। लेकिन एशिया कप जैसे आयोजनों में भारत पाकिस्तान से मुकाबला करेगा। सरकार ने यह भी कहा कि भारत द्वारा आयोजित बहुपक्षीय खेल आयोजनों में पाकिस्तान के खिलाड़ी और टीमें भी हिस्सा ले सकेंगे। साथ ही अंतरराष्ट्रीय खेल निकायों की परंपराओं और खिलाड़ियों के हितों का सम्मान किया जाएगा और भारत की छवि एक विश्वसनीय मेजबान देश के रूप में उभर रही है।
पाकिस्तान के खिलाडि़यों को मिलेगा भारत का वीजा
इसका मतलब यह भी है कि पाकिस्तान के खिलाड़ी भारत आकर हॉकी या अन्य खेलों के टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए वीजा पा सकेंगे। यह नीति केवल क्रिकेट तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी खेलों पर लागू होगी। यह कदम पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद की ऑपरेशन सिंदूर कार्रवाई के बावजूद लिया गया है। भारत को अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों के लिए पसंदीदा गंतव्य बनाने के लिए वीजा प्रक्रिया को आसान बनाया जाएगा। खिलाड़ियों, अधिकारियों और खेल संगठनों के पदाधिकारियों को वीजा प्राथमिकता के साथ मिलेगा, मल्टी-एंट्री वीजा पांच साल तक दिया जाएगा और अंतरराष्ट्रीय खेल निकायों के प्रमुखों को भारत में दौरे के दौरान पूरा प्रोटोकॉल मिलेगा।
भारत ने राष्ट्रीय हित के नाम पर कई खेल आयोजनों को छोड़ा है
सरकार का तर्क है कि भारत को अंतरराष्ट्रीय आयोजनों का भरोसेमंद केंद्र दिखाना जरूरी है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह राष्ट्रीय हित से ऊपर है? क्या पहलगाम में शहीद हुए भारतीय नागरिकों के बाद खेल आयोजन ज्यादा महत्वपूर्ण हो सकते हैं? आईसीसी टूर्नामेंट का बहिष्कार करने पर अलगाव का खतरा हो सकता है, लेकिन एशिया कप के मामले में ऐसा नहीं है। अतीत में भी कई बार यह टूर्नामेंट टला है। तो फिर पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत को इसमें क्यों भाग लेने की अनुमति दी गई? यदि आईसीसी टूर्नामेंट का बहिष्कार राष्ट्रीय हित से ऊपर है, तो क्या सैनिकों और नागरिकों की शहादत से भी ऊपर हो सकता है? यह पहली बार नहीं है जब भारत ने राष्ट्रीय हित के नाम पर बड़ा खेल आयोजन छोड़ा हो। 1974 में भारत ने डेविस कप फाइनल में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खेलने से इनकार किया था, 1986 में सुरक्षा कारणों से श्रीलंका के दौरे को रद्द किया था। रंगभेद के दौर में भारत ने दक्षिण अफ्रीका के साथ कोई क्रिकेट सीरीज नहीं खेली, जबकि अन्य टीमें खेलती रहीं।तो जब भारत ने अतीत में कड़ा रुख अपनाया था, तो अब एशिया कप में खेलने की आवश्यकता क्यों?