नई दिल्ली, वाईबीएन स्पोर्ट्स। भारत और इंग्लैंड के बीच खेले जाने वाली पटौदी ट्रॉफी इन दिनों सुर्खियों में है। इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ECB) ने इस ट्रॉफी का नाम बदलकर 'एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी' रखने का प्रस्ताव दिया, जिससे क्रिकेट प्रेमियों और दिग्गज खिलाड़ियों में नाराजगी फैल गई। खुद मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने इस पर आपत्ति जताई और हस्तक्षेप कर इस ऐतिहासिक ट्रॉफी की विरासत को बचा लिया। लेकिन जिस नाम पर यह ट्रॉफी रखी गई है, वह क्रिकेट इतिहास में कितने खास थे, इसकी कहानी बेहद दिलचस्प है।
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(The Nawab of Pataudi is bowled shortly after completing his maiden Test hundred, Australia v England, SCG, 1st Test, December 6, 1932 The Cricketer International)
दो देशों से टेस्ट खेलने वाले पहले भारतीय
पटौदी ट्रॉफी का नाम नवाब इफ्तिखार अली खान पटौदी के सम्मान में रखा गया था। वह दुनिया के पहले ऐसे क्रिकेटर थे, जिन्होंने इंग्लैंड और भारत, दोनों देशों की ओर से टेस्ट क्रिकेट खेला। 16 मार्च 1910 को हरियाणा की पटौदी रियासत में जन्मे इफ्तिखार पटौदी पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए, जहां ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते हुए उनका क्रिकेट से गहरा रिश्ता जुड़ गया।
डेब्यू टेस्ट में लगाया शतक, फिर भी हुए टीम से बाहर
1932 में इंग्लैंड टीम जब ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई, तब इफ्तिखार पटौदी को टीम में शामिल किया गया। उन्होंने अपने डेब्यू टेस्ट में शानदार 102 रन बनाए। लेकिन इसके बावजूद उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया, वजह थी बॉडीलाइन विवाद। इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बॉडीलाइन गेंदबाजी रणनीति अपना रही थी, जिसका पटौदी ने विरोध किया। यही विरोध उनके करियर पर भारी पड़ गया।
भारत लौटे और बने भारतीय टीम के कप्तान
इफ्तिखार पटौदी ने हार नहीं मानी। 1946 में भारत के इंग्लैंड दौरे पर उन्हें भारतीय टेस्ट टीम का कप्तान बनाया गया। इस तरह वह दो देशों से टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले पहले खिलाड़ी बने। भारत की ओर से उन्होंने 3 टेस्ट मैच खेले और भारतीय क्रिकेट को मजबूती देने में अहम भूमिका निभाई।
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(The 1946 Indian touring squad: Back row L to R: Abdul Hafeez Kardar, - S.W. Sohoni; R.S. Modi; R.B. Nimbalkar, - V.S. Hazare; Vinoo Mankad- D.D.Hindlekar, Middle row, L to R: P. Gupta (manager); S. Banerjee; V.M. Merchant, Nawab of Pataudi; CS. Nayudu; Mushtaq Ali; Front row, L to R: S. G. Shinde; CT Sarwate; Gul Mohammed. The Oval, 1946 © Wisden)
इफ्तिखार पटौदी न सिर्फ एक बेहतरीन क्रिकेटर थे, बल्कि पटौदी रियासत के नवाब भी थे। उनके बेटे मंसूर अली खान पटौदी (टाइगर पटौदी) ने भी भारतीय क्रिकेट में इतिहास रचा और टीम के सबसे युवा कप्तान बने। क्रिकेट उनके खून में था और दोनों पीढ़ियों ने भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
पटौदी ट्रॉफी की शुरुआत और विवाद
पटौदी ट्रॉफी की शुरुआत 2007 में भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज के लिए की गई थी। यह भारत के पहले टेस्ट (1932) की 75वीं वर्षगांठ पर लाई गई थी, ताकि नवाब पटौदी के योगदान को सम्मान मिल सके। हाल ही में जब ECB ने ट्रॉफी का नाम बदलने का प्रस्ताव दिया तो क्रिकेट प्रेमियों ने इसका विरोध किया। सचिन तेंदुलकर ने भी इस पर नाराजगी जताई और कहा कि पटौदी ट्रॉफी भारतीय क्रिकेट इतिहास की पहचान है।
सचिन तेंदुलकर के हस्तक्षेप के बाद ECB ने एक नई योजना पेश की, जिसके तहत भले ही ट्रॉफी का नाम बदला जाएगा, लेकिन विजेता कप्तान को ‘पटौदी मेडल’ दिया जाएगा ताकि इफ्तिखार पटौदी की विरासत को जीवित रखा जा सके।
निजी जीवन और परिवार
नवाब इफ्तिखार अली खान पटौदी नवाब मुहम्मद इब्राहिम अली खान और शुहर बानो बेगम के बेटे थे। इफ्तिखार पटौदी का विवाह 23 अप्रैल 1939 को भोपाल की राजकुमारी साजिदा सुल्तान से हुआ, जो भोपाल रियासत के नवाब हमीदुल्लाह खान की बेटी थीं। इस शाही जोड़े के चार बच्चे हुए—तीन बेटियां (सालेहा, सबीहा और कुदसिया) और एक बेटा मंसूर अली खान पटौदी। मंसूर अली खान ने आगे चलकर अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी की और खुद को ‘टाइगर पटौदी’ के नाम से स्थापित किया। इफ्तिखार पटौदी का निधन 5 जनवरी 1952 को दिल्ली में हुआ, जब वे केवल 41 वर्ष के थे। उस समय उनके बेटे मंसूर अली खान की उम्र महज 11 साल थी। निधन के दिन ही उनके बेटे मंसूर अली खान पटौदी का जन्मदिन भी था।
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