नई दिल्ली, वाईबीएन स्पोर्ट्स। भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कुछ तारीखें अमिट हैं और 10 फरवरी 1952 उन्हीं में से एक है। चेन्नई (तब मद्रास) के चेपॉक स्टेडियम में भारत ने पहली बार टेस्ट क्रिकेट में जीत का स्वाद चखा था। ये जीत सिर्फ एक मैच नहीं थी, ये उस दौर के भारतीय क्रिकेटर के आत्मविश्वास, जज्बे और संघर्ष की कहानी थी। इंग्लैंड जैसी ताकतवर टीम को हराकर भारत ने पूरी दुनिया को अपनी काबिलियत का सबूत दे दिया था।
कैसे शुरू हुआ मैच?
इंग्लैंड के कप्तान डोनाल्ड कैर ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। उन्होंने सोचा होगा कि भारतीय गेंदबाजों के सामने बड़ी पारी खेलकर दबाव बना देंगे, लेकिन वीनू मांकड़ की फिरकी के सामने उनकी एक न चली। 266 रनों पर पूरी टीम सिमट गई। मांकड़ ने अकेले ही 8 विकेट लेकर अंग्रेजों की कमर तोड़ दी।
भारत की पारी और ‘रॉय’ल शुरुआत
जवाब में भारत की शुरुआत शानदार रही। पंकज रॉय ने इंग्लिश गेंदबाजों के सामने दीवार बनकर खड़े हो गए। उन्होंने शानदार 111 रन बनाए। उनके साथ पॉली उमरीगर ने नाबाद 130 रन की पारी खेली और भारत को 457 रन तक पहुंचा दिया। भारत को 191 रन की बढ़त मिली, जो इस मुकाबले का निर्णायक मोड़ साबित हुआ।
दूसरी पारी में फिर चला मांकड़ का जादू
दूसरी पारी में इंग्लैंड की टीम वापसी करना चाहती थी, लेकिन मांकड़ ने फिर कहर ढाया। इस बार उन्होंने 4 विकेट झटके और गुलाम अहमद ने भी 4 विकेट लेकर अंग्रेजों को 183 पर ढेर कर दिया।
8 रनों से ऐतिहासिक जीत
यह मैच भारत ने 8 रन से जीता। रोमांच ऐसा कि आखिरी विकेट गिरते ही पूरा चेपॉक गूंज उठा। मैदान में मौजूद दर्शकों के चेहरे पर गर्व था। ये सिर्फ जीत नहीं थी, ये था नई भारतीय क्रिकेट की शुरुआत।
क्यों खास थी ये जीत?
यह सिर्फ 22 गज की लड़ाई नहीं थी, बल्कि स्वाभिमान की पहली गूंज थी। 1952 चेपॉक टेस्ट ने भारतीय क्रिकेट को एक नई पहचान दी। वीनू मांकड़ की फिरकी और पंकज रॉय की जुझारू पारी ने बता दिया कि अब भारत हारने के लिए मैदान में नहीं उतरता। विजय हजारे की कप्तानी में इस जीत के साथ भारत ने दुनिया को ऐलान कर दिया "हम सिर्फ खेलेंगे नहीं, अब जीतेंगे भी।" यही वो जीत थी, जिसने आने वाले दशकों में कप्तान अजहरुद्दीन, गांगुली, धोनी और कोहली जैसे विजेताओं का रास्ता तैयार कर दिया। चेपॉक की वो जीत भारत क्रिकेट के आत्मविश्वास का बीज थी, जिसकी फसल आज पूरी दुनिया देख रही है।
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