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नई दिल्ली, आईएएनएस। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने खिलाड़ियों की फिटनेस के स्तर को उठाने के लिए 'ब्रोंको टेस्ट' को नेशनल मेंस टीम में जगह बनाने के इच्छुक खिलाड़ियों के लिए नया मानक बना दिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक 38 वर्षीय रोहित शर्मा ने बीसीसीआई के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में आयोजित फिटनेस कैंप के दौरान ब्रोंको टेस्ट और यो-यो टेस्ट पास कर लिए हैं। रोहित शर्मा के स्टैमिना में काफी सुधार देखने को मिला, जिसने कोचिंग स्टाफ को संतुष्ट किया है। रोहित शर्मा के अलावा, शुभमन गिल, जसप्रीत बुमराह ने भी टेस्ट पास किए हैं। इनके अलावा मोहम्मद सिराज, वाशिंगटन सुंदर, शार्दुल ठाकुर और यशस्वी जायसवाल ने भी इस टेस्ट को पास किया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रसिद्ध कृष्णा ने ब्रोंको टेस्ट के दौरान सभी को प्रभावित किया।
क्या है ब्रोंको टेस्ट?
ब्रोंको टेस्ट तीव्रता और एथलीट की सहनशक्ति, स्टैमिना और रिकवरी को चुनौती देने की क्षमता के लिए जाना जाता है। क्रिकेट जगत में भले ही ब्रोंको टेस्ट नया हो, लेकिन रग्बी में लंबे समय से फिटनेस के मानक के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। आज के दौर में क्रिकेट का शेड्यूल खिलाड़ियों को काफी व्यस्त रखता है, जिसके लिए क्रिकेटर्स को एलीट फिटनेस स्तर की जरूरत है। इसी को मद्देनजर रखते हुए ब्रोंको टेस्ट तैयार किया गया। यह खिलाड़ियों की कार्डियोवैस्कुलर क्षमता और मानसिक क्षमता की कड़ी परीक्षा लेता है, जो आधुनिक क्रिकेट की शारीरिक मांगों को दर्शाता है।
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इतना कठिन है ब्रोंको टेस्ट
ब्रोंको टेस्ट का सेटअप जितना सरल है, उतना ही यह शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण है। इस टेस्ट में चार कोन 0 मीटर, 20 मीटर, 40 मीटर और 60 मीटर के अंतराल पर रखे जाते हैं। प्रत्येक सेट में 20 मीटर के निशान तक दौड़ना और वापस आना, फिर 40 मीटर के निशान तक दौड़ना और वापस आना, और अंत में 60 मीटर के निशान तक दौड़ना और वापस आना शामिल है। इस शटल पैटर्न में प्रत्येक सेट में कुल 240 मीटर की दौड़ होती है। खिलाड़ियों को इसके पांच सेट पूरे करने होते हैं। ऐसे में दौड़ कुल 1,200 मीटर की होती है। इसमें किसी भी तरह का रेस्ट इंटरवल नहीं होता।
खिलाड़ी की कठिन परीक्षा लेता है बोंको टेस्ट
खिलाड़ी का टारगेट जल्द से जल्द इसे पूरा करना होता है। इस टेस्ट के दौरान खिलाड़ी के कुल समय के आधार पर एथलीट के एरोबिक प्रदर्शन को परखा जाता है। खिलाड़ियों के लिए ब्रोंको टेस्ट सिर्फ एक फिजिकल ड्रिल नहीं है, बल्कि यह इस बात का भी पैमाना है कि खिलाड़ी लगातार उच्च तीव्रता वाले प्रयास कितनी देर तक झेल सकता है, खासकर तब, जब इसमें बार-बार दिशा बदलना और तेजी से स्प्रिंट लगाना शामिल हो। चाहे बैटिंग हो या फील्डिंग, कुछ ऐसा ही क्रिकेट में भी देखने को मिलता है।
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