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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क : नवी मुंबई की गुरुवार की शाम सिर्फ भारत की जीत की नहीं, बल्कि एक ऐसी खिलाड़ी की पुनर्जन्म की गवाह बनी जिसने हार नहीं मानी जेमिमा रॉड्रिग्स। वो सिर्फ क्रिकेट नहीं खेल रही थीं, वो खुद से अपने डर से और अपनी असफलताओं से लड़ रही थीं। कभी टीम से ड्रॉप हुईं तो कभी सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग का सामना किया। लेकिन हर ठोकर ने उन्हें और मजबूत बनाया। गुरुवार को जब उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल में 127 रनों की अविश्वसनीय पारी खेली, तो वो सिर्फ एक स्कोर नहीं था वो उनके संघर्षों की जीत थी। भारत ने इस जीत के साथ वर्ल्ड कप का सबसे बड़ा रनचेज करते हुए सात बार की चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को पांच विकेट से हराया और फाइनल में जगह बनाई लेकिन असल कहानी थी जेमिमा की वापसी की।
ड्रॉप होने से लेकर एंग्जाइटी तक और फिर वापसी
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जेमिमा ने मैच के बाद जो कहा कि उसने हर क्रिकेट फैन का दिल छू लिया। उन्होंने खुलकर बताया कि वो पिछले कुछ महीनों से एंग्जाइटी से जूझ रही थीं। मेरे साथ चीजें लगातार खराब होती जा रही थीं। पिछलेवर्ल्ड कप में मुझे टीम से बाहर कर दिया गया था। इस वर्ल्ड कप के पहले मैच में मैं श्रीलंका के खिलाफ 0 पर आउट हुई, फिर पाकिस्तान के खिलाफ 32 रनों की शुरुआत मिली, लेकिन उसके बाद साउथ अफ्रीका के खिलाफ फिर शून्य पर आउट। इसके बाद जब लगा कि अब चीजें संभल रही हैं, तब मैं टीम से ड्रॉप हो गई। एक वक्त ऐसा था जब उन्हें लगा कि सब कुछ खत्म हो गया है। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। जब भी लगता था कि अब सब ठीक होगा, तभी कुछ गलत हो जाता था। ऐसे में ये सेमीफाइनल पारी मेरे लिए बहुत खास है।
ट्रोलिंग, आलोचना और अंदर का संघर्ष
सोशल मीडिया पर जेमिमा को कई बार रील्स बनाने के लिए ट्रोल किया गया। कई लोगों ने उनके क्रिकेट से ज्यादा उनकी पर्सनल लाइफ पर कमेंट किए, लेकिन उन्होंने कभी पलटकर जवाब नहीं दिया। बल्कि उन्होंने अपने खेल से जवाब देने का फैसला किया। वो मैदान में उतरीं और अपने बल्ले से बता दिया कि असली मेहनत और फोकस क्या होता है। नवी मुंबई के मैदान में दर्शक सिर्फ एक बल्लेबाज नहीं, बल्कि एक जज्बे को सलाम कर रहे थे। हर रन में उनकी मेहनत और संघर्ष की कहानी झलक रही थी।
मेरे लिए शतक से ज्यादा भारत की जीत जरूरी थी
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मैच के बाद जेमिमा की आंखों में खुशी के साथ राहत भी थी। उन्होंने कहा कि मैं यीशु का धन्यवाद करना चाहती हूं। मैं ये सब अपने दम पर नहीं कर सकती थी। मैं अपने मम्मी-पापा, कोच और उन सभी लोगों की शुक्रगुजार हूं जिन्होंने मुझ पर भरोसा किया। उन्होंने कहा कि पिछले एक महीने का वक्त बेहद मुश्किल था, लेकिन आज जो हुआ, वो किसी सपने से कम नहीं है। अब तक यकीन नहीं हो रहा। मुझे खुद नहीं पता था कि मैं नंबर 3 पर खेलने वाली हूं। मैच से पांच मिनट पहले बताया गया कि मैं नंबर 3 पर उतर रही हूं। लेकिन ये दिन मेरे लिए नहीं था, मैं सिर्फ भारत को जिताना चाहती थी। पहले भी कई अहम मैच हम हारे हैं, इसलिए आज बस देश के लिए जीत की सोच थी। ये मेरे पचास या सौ रन की बात नहीं थी ये भारत की जीत की बात थी।
जेमिमा सिर्फ एक बल्लेबाज नहीं, एक प्रेरणा
जेमिमा रॉड्रिग्स का सफर आज हर युवा खिलाड़ी के लिए एक संदेश है कि असफलता अंत नहीं होती, बल्कि वापसी की शुरुआत होती है। उन्होंने दिखाया कि मेहनत और विश्वास के साथ कोई भी मुश्किल जीती जा सकती है। भारत अब 2 नवंबर को साउथ अफ्रीका के खिलाफ नवी मुंबई में फाइनल मुकाबला खेलेगा। टीम इंडिया इससे पहले 2005 और 2017 के वनडे वर्ल्ड कप फाइनल में पहुंच चुकी है, लेकिन खिताब अब भी अधूरा है। और शायद इस बार उस अधूरे सपने को पूरा करने के लिए जेमिमा जैसी कहानी ही सबसे बड़ी प्रेरणा साबित हो।
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