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नई ​दिल्ली, वाईबीएन।बिहार चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। सेनाएं भी तैयार हैं लेकिन असल योद्धा अभी मैदान में नहीं उतर सके हैं। कारण, गठबंधन दलों में सीटों को लेकर अब तक बंटवारा न हो पाना है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन( एनडीए) और राजद-कांग्रेस नीति महागठबंधन में सीटों को लेकर जूतम-पैजार की स्थिति बनी हुई है। छोटे दल, बड़े दलों के लिए बड़ा संकट बने हुए हैं। जहां एनडीए के लिए चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), जीतनराम मांझी की हिंदुस्तान अवामी मोर्चा (सेक्यूलर) और उपेंद्र कुशवाहा के राष्ट्रीय लोक मोर्चा सिरदर्द बने हुए हैं वहीं महागठबंधन में तो अभी तक सब कुछ अस्पष्ट है। वहां राजद और कांग्रेस में ही अभी तक सहमति नहीं बन पाई है। विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुखिया मुकेश सहनी की मांग तेजस्वी को हलकान किए हुए है। लेफ्ट पार्टियां भी पिछले चुनाव में मिली सीटों से ज्यादा का दावा ठोंक रही हैं। दोनों गठबंधनों के नेता दिल्ली-पटना एक किए हुए हैं लेकिन कोई सर्वमान्य फार्मूला अभी बन नहीं सका है। वैसे आज अथवा कल तक दोनों गठबंधनों में सबकुछ फाइनल हो जाएगा, लेकिन जो स्थितियां बनी हुई हैं उसमें इसकी पूरी संभावना बनी हुई है कि अंतिम समय में भी एक-दो छोटे दल छिटककर दूसरे धड़े में जा सकते हैं, अगर उन्हें उनके मनमुताबिक सीटें नहीं मिली तो।
पहले दलों की सीटें फाइनल हों, फिर प्रत्याशियों की बारी
अब इसे गठबंधन की राजनीति की विडंबना ही कहेंगे। पहले चरण के मतदान के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है लेकिन अभी तक दोनों गठबंधनों में शामिल दल सीटें ही नहीं बांट सके हैंं। पहले दलों की सीटें फाइनल हों, फिर प्रत्याशियों की बारी आएगी। पहले चरण के मतदान के लिए सत्रह अक्टूबर तक और दूसरे चरण के लिए नामांकन की अंतिम तारीख 20 अक्टूबर है। मतलब नामांकन के लिए आठ दिन शेष बचे हैं। इन आठ दिनों में राजनातिक दलों में भयंकर उठा-पटक देखने को मिलने वाली है। लंबे समय से चुनाव की तैयारी कर रहे राजनीतिक कार्यकर्ता मन मुताबिक निर्णय न होने पर दूसरे दलों में संभावनाएं खोजेंगे। हालांकि दोनों गठबंधनों के बड़े दलों को इसका अंदाजा है। पूर्व के अनुभव भी हैं। पिछली बार आखिरी दिन वीआइपी के मुकेश सहनी महागठबंधन से निकलकर एनडीए में शामिल हो गए थे। इस बार भी उन्हीं पर सबसे ज्यादा निगाहे हैं। उनकी डिमांड बहुत ज्यादा सीटों की है, जो महागठबंधन दे ही नहीं सकता। वह शुरुआत में साठ सीटें मांग रहे थे। सूत्रों के अनुसार वह अब बीस से पच्चीस सीटों तक पर आ गए हैं लेकिन मुकेश सहनी चुनाव पूर्व ही खुद को डिप्टी सीएम घोषित करवाना चाहते हैं। कांग्रेस को यह गले नहीं उतर रहा है। कांग्रेस भी इस बार ज्यादा दबाव बनाए हुए है। दो महीने पहले तक लग रहा था कि तेजस्वी की लीडरशिप मानने को कांग्रेस पूरी तरह तैयार है लेकिन राहुल की वोट अधिकार यात्रा के बाद कांग्रेस के सुर थोड़ा बदल गए हैं। उसे लग रहा है यात्रा से कांग्रेस को जबरदस्त फायदा मिलता दिख रहा है। उनका पूर्व का कोर वोटर मुस्लिम और दलित इस यात्रा के बाद उनके साथ फिर से जुड़ा है। तेजस्वी घर में भी घिरे हुए हैं। घर से बेदखल किए गए बड़े भाई तेज प्रताप यादव खुद की पार्टी बनाकर मैदान में हैं तो उनकी सांसद बहन मीसा भारती और दूसरी रोहणी आचार्य लगातार इशारों-इशारों में उन्हें घेर रही हैं। इसके चलते पिछले कुछ दिनों से तेजस्वी बैकफुट पर दिख रहे हैं। फिर भी इतना तो तय है कि एनडीए का मुकाबला करने की क्षमता फिलहाल तेजस्वी में ही है। वह पिछले विधानसभा चुनाव में इसे साबित कर चुके हैं। बेशक उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में वह इतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके। इस बार भी नौकरियां देने का उनका वादा युवाओं को आकर्षित कर रहा है। लालू-राबड़ी के जंगलराज से अलग वह अपनी छवि बनाने की कोशिश कर रहे हैं और युवाओं में उनके प्रति आकर्षण भी है।
राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस भी झुकने को तैयार नहीं
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्तर सीटें मिली थीं, लेकिन उनका जीतने का स्ट्राइक रेट बहुत कम था। तब राजनीतिक विशलेषकों का कहना था अगर राजग ने कांग्रेस को इतनी सीटें नहीं दी होती तो संभव है प्रदेश में राजद नीति सरकार बनती। उस कड़वे अनुभव से अभी राजद पूरी तरह उभरी नहीं है। इसीलिए इस बार कांग्रेस को पचास-साठ से ज्यादा सीटें देने के पक्ष में नहीं है। राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस भी झुकने को तैयार नहीं है। सभी को पता है, अकेले राजद भी मोदी-नीतीश का मुकाबला करने में सक्षम नही है। ऐसे में तेजस्वी के सामने भी मजबूरी है और इसका फायदा उठाकर कांग्रेस चुनाव पूर्व ही अपनी तमाम शर्तें मनवा लेना चाहती है। इसी रणनीति के तहत नीतीश के सामने तेजस्वी को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित पर भी कांग्रेस ने अभी तक मुहर नहीं लगाई है। हां, यह अलग बात है कि तेजस्वी ने स्वयं ही कई बार खुद को मुख्यमंत्री का चेहरा के घोषित कर चुके हैं। कांग्रेस यहां भी मोलभाव कर रही है। वह तेजस्वी को इस शर्त पर मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने को तैयार है अगर महागठबंधन की सरकार बनती है तो दो डिप्टी सीएम कांग्रेस के होंगे। जैसे नीतीश सरकार में बीजेपी के।
दावों और वादों को कितनी तवज्जो दी
दोनों गठबंधनों में इन जटिल हालात के बीच सिर्फ प्रशांत किशोर की जनसुराज पूरे दम से 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का दम ठोक रही है। उन्होंने अपने वादे के मुताबिक नौ अक्टूबर को 51 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी है। प्रशांत किशोर ने स्पष्ट घोषणा कर रखी है वह किसी से गठबंधन नहीं करेंगे। हां, किसी दल को जनसुराज की नीतियां और कार्यक्रम पसंद हैं तो वह अपने दल का जनसुराज में विलय कर चुनाव लड़ सकते हैं। उन्होंने तो चिराग पासवान को बाकायदा निमंत्रण तक दे दिया था। हालांकि यह दूरी की ही कौड़ी है। अपनी जातियों के दम पर खड़े दल ऐसा कभी नहीं करेंगे और यह प्रशांत किशोर को भी भलीभांति मालूम है। पर वह वोटरों का ध्यान खींच रहे हैं। अब यह तो चुनाव बाद में ही पता चलेगा, मतदाताओं ने उनकी बातों, दावों और वादों को कितनी तवज्जो दी। यह पता भी चलेगा वह अपने चुनाव प्रबंधन में फेल हुए अथवा पास। इतना तय है अगर वह औंधे मुंह गिरे तो भविष्य में दूसरे दलों को चुनाव लड़वाने, जितवाने की उनकी क्षमता लगभग खत्म हो जाएगी। क्योंकि फिर शायद ही कोई दल अथवा नेता उनकी रणनीति पर भरोसा कर सके।
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