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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क: दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (डीईआरसी) इन दिनों गंभीर प्रशासनिक संकट से गुजर रहा है। राष्ट्रीय राजधानी में बिजली आपूर्ति और टैरिफ निर्धारण जैसे अहम मामलों की देखरेख करने वाला यह आयोग इस समय बिना चेयरमैन के काम कर रहा है, जबकि कई शीर्ष पद लंबे समय से खाली हैं। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, इस स्थिति का असर आयोग के रोज़ाना के कामकाज और फैसलों की गति पर साफ़ तौर पर दिख रहा है।
चेयरमैन की कुर्सी खाली
न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) उमेश कुमार को इस वर्ष मार्च में डीईआरसी का चेयरमैन नियुक्त किया गया था, लेकिन वह केवल कुछ महीनों बाद, पिछले महीने ही सेवानिवृत्त हो गए। उनके जाने के बाद से चेयरमैन पद रिक्त है। यह पद और आयोग के दो सदस्य पदों की नियुक्ति दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में आती है, लेकिन अब तक इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है। दिल्ली सरकार से इस मामले में तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है।
अहम पद भी महीनों से खाली
सूत्रों के अनुसार, उप सचिव, संयुक्त और उप निदेशक (शुल्क प्रभाग), कार्यकारी निदेशक (इंजीनियरिंग) और कार्यकारी निदेशक (विधि प्रभाग) जैसे कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक और तकनीकी पद भी लंबे समय से खाली हैं। इन पदों पर नियुक्तियों में देरी के कारण टैरिफ निर्धारण, बिजली कंपनियों के साथ विवाद निपटान, और उपभोक्ता शिकायतों के समाधान की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।
बिजली कंपनियों की बड़ी वसूली की तैयारी
इसी बीच, दिल्ली में बिजली वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) उच्चतम न्यायालय के हालिया आदेश के आधार पर करीब 27,000 करोड़ रुपये के पुराने बकाए की वसूली की तैयारी कर रही हैं। यह राशि पिछले कई वर्षों से लंबित है, और इसके उपभोक्ताओं पर भारी आर्थिक असर पड़ने की आशंका है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह वसूली सीधे उपभोक्ताओं से की गई तो बिजली दरों में बड़ी बढ़ोतरी देखी जा सकती है।
आंतरिक मतभेद और असर
आधिकारिक सूत्रों का दावा है कि आयोग के अंदर मौजूदा सदस्यों के बीच मतभेद भी गहराए हुए हैं, जिससे नीति निर्धारण और प्रशासनिक फैसले अटक रहे हैं। एक मजबूत नेतृत्व की अनुपस्थिति में आयोग के भीतर समन्वय की कमी और भी बढ़ गई है।
उपभोक्ताओं में चिंता
दिल्ली के लाखों बिजली उपभोक्ताओं के लिए डीईआरसी का कामकाज सीधे उनकी जेब और सेवाओं से जुड़ा है। टैरिफ तय करने, बिजली कंपनियों को नियंत्रित करने और उपभोक्ता हितों की रक्षा करने वाली यह संस्था जब अपने ही शीर्ष पदों पर खालीपन से जूझ रही है, तो उपभोक्ताओं में भी चिंता बढ़ रही है।