Advertisment

Jammu Kashmir : सीएम उमर अब्‍दुल्‍ला गेट फांदकर पढ़ी फातिहा, पुलिस पर हाथापाई के लगाए आरोप

जम्मू-कश्मीर में 13 जुलाई को मनाए जाने वाले शहीद दिवस को लेकर इस बार विवाद गहराता गया। सीएम उमर अब्दुल्ला ने आरोप लगाया कि उन्हें फातिहा पढ़ने से रोकने की कोशिश की गई।

author-image
Suraj Kumar
jammu  kashmir
Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

नई दिल्‍ली,वाईबीएन डेस्‍क।जम्‍मू- कश्‍मीर में शहीद दिवस को लेकर विवाद थम नहीं रहा है। सीएम उमर अब्‍दुल्‍ला ने प्रशासन ने पर उनके साथ हाथापाई के आरोप लगाए हैं। साथ वे पुलिस के द्वारा रोके जाने पर नक्‍शबंद साहब का दरवाजा कूदकर अंदर गए और फातिहा पढ़ी। सीएम ने इस घटना का पूरा वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया है। उन्‍होंने लिखा, ''13 जुलाई 1931 के शहीदों की कब्रों पर श्रद्धांजलि अर्पित की और फातिहा पढ़ी। अनिर्वाचित सरकार ने मेरा रास्ता रोकने की कोशिश की और मुझे नौहट्टा चौक से पैदल चलने पर मजबूर किया। उन्होंने नक्शबंद साहब की दरगाह का दरवाजा बंद कर दिया और मुझे दीवार फांदने पर मजबूर किया। उन्होंने मुझे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन आज मैं रुकने वाला नहीं था। ''

Advertisment

फातिहा पढ़ने से रोका गया- उमर अब्‍दुल्‍ला 

नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें फातिहा पढ़ने की इजाजत नहीं दी गई और घर में नजरबंद कर दिया गया। उन्होंने कहा, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो लोग खुद को सिर्फ लॉ एंड ऑर्डर संभालने वाला बताते हैं, उन्होंने हमें घर में बंद कर दिया। जब मैंने कंट्रोल रूम को बताया कि मैं बाहर जाना चाहता हूं, तो तुरंत मेरे घर के बाहर बंकर खड़ा कर दिया गया, जो देर रात तक हटा नहीं।" उन्होंने आगे कहा, "आज मैंने बिना किसी को जानकारी दिए बाहर निकलने का फैसला किया। लेकिन हैरानी की बात है कि आज भी हमें रोकने की कोशिश की गई। यह पूरी तरह बेशर्मी है।"

Advertisment

हम किसी के गुलाम नहीं हैं" — उमर अब्दुल्ला का प्रशासन पर तीखा हमला

नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शनिवार को सुरक्षा बलों और प्रशासन पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा, "मैंने नौहट्टा चौक पर अपनी गाड़ी रोकी तो सीआरपीएफ का बंकर सामने लगाया गया। वहां जम्मू-कश्मीर पुलिस भी मौजूद थी। पुलिसवालों ने हाथापाई की कोशिश की।" उमर ने आगे सवाल उठाया, "जो पुलिसवाले वर्दी पहनते हैं, वो अक्सर कानून भूल जाते हैं। मैं पूछना चाहता हूं कि किस कानून के तहत हमें रोका जा रहा है? अगर कोई रोक थी, तो वो कल के लिए थी।" प्रशासन की कार्यशैली पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा, "कहने को ये आजाद मुल्क है, लेकिन कभी-कभी ये लोग खुद को हमारा मालिक समझने लगते हैं। हम किसी के गुलाम नहीं हैं। अगर हम गुलाम हैं, तो सिर्फ यहां की जनता के हैं।" 

Advertisment

''जब चाहें शहीदों को याद करेंगे"

नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने प्रशासन और सुरक्षा बलों पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि वर्दीधारी लोग कानून का मनमाना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "हमें यह समझ नहीं आता कि कोई वर्दी पहनकर कानून को इस तरह कैसे तोड़-मरोड़ सकता है। हमारे झंडे को फाड़ने की कोशिश की गई, लेकिन उनकी तमाम कोशिशें नाकाम रहीं। हम फातिहा पढ़ने आए और अपना कर्तव्य निभाया।" उमर अब्दुल्ला ने यह भी कहा, "इन लोगों को शायद ये गलतफहमी है कि शहीदों की कब्रें सिर्फ 13 जुलाई को होती हैं, जबकि ये साल भर यहीं रहती हैं। हमें रोकने की ये सोच गलत है। चाहे दिसंबर हो, जनवरी हो या फरवरी—जब भी हमारी मर्जी होगी, हम यहां आएंगे और अपने शहीदों को याद करेंगे।"

क्या है शहीद दिवस? जानिए 

Advertisment

13 जुलाई जम्मू-कश्मीर के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में दर्ज है। यह दिन 1931 में डोगरा शासन के खिलाफ कश्मीरियों के संघर्ष और बलिदान की स्मृति में "शहीद दिवस" के रूप में मनाया जाता रहा है। इसकी शुरुआत तब हुई, जब श्रीनगर सेंट्रल जेल के बाहर लोगों की एक बड़ी भीड़ राजनीतिक कार्यकर्ता अब्दुल कदीर के समर्थन में एकत्र हुई थी। उसी दौरान सभा में एक व्यक्ति ने नमाज़ के लिए अज़ान देना शुरू किया, लेकिन डोगरा सैनिकों ने उस पर गोली चला दी। इसके बाद जो भी व्यक्ति अज़ान पूरी करने के लिए आगे बढ़ा, उसे भी गोली मार दी गई। इस क्रम में 22 कश्मीरियों ने बारी-बारी से अज़ान पूरी करते हुए अपने प्राण त्याग दिए।

Advertisment
Advertisment