गौतमबुद्ध नगर, वाईबीएन नेटवर्क।
उत्तर प्रदेश के जेवर में कानून का ऐसा क्रूर चेहरा सामने आया जिसने न सिर्फ एक होनहार बीटेक छात्र के सपनों को कुचल दिया बल्कि एक पिता को ढाई साल तक अपने निर्दोष बेटे को न्याय दिलाने के लिए सिस्टम से जूझने पर मजबूर कर दिया। फर्जी मुकदमों की बुनियाद पर बनाई गई कहानी, मुठभेड़ की स्क्रिप्ट और कोर्ट के दरवाज़े तक की संघर्षपूर्ण यात्रा… ये कहानी आपको झकझोर कर रख देगी।
बीटेक का छात्र, जिसे बना दिया गया गैंगस्टर
मथुरा की रिफाइनरी थाना क्षेत्र के कदंब विहार कॉलोनी निवासी तरुण गौतम का इकलौता बेटा सोमेश गौतम उर्फ सीटू 2022 में दिल्ली में कोचिंग कर रहा था। 4 सितंबर की रात पुलिस आई, घर में तोड़फोड़ और लूटपाट के बाद पिता को जबरन जेवर थाना ले जाया गया। वहां से उन्हें दिल्ली लाकर उनके बेटे को उठाया गया और थाने में बिजली के झटके तक दिए गए।
मुठभेड़ का ड्रामा और पुलिस की बर्बरता
9 सितंबर की रात पुलिस ने तरुण गौतम के सामने ही उनके बेटे के पैर में गोली मार दी और उस पर एक के बाद एक चार संगीन केस दर्ज कर दिए। चोरी की बाइक, अवैध हथियार, फायरिंग और मर्डर तक के आरोप लगाए गए। इतना ही नहीं, गैंगस्टर एक्ट भी लगा दिया गया।
पैसे की डिमांड और हाईकोर्ट की राह
आरोप है कि थाना प्रभारी अंजनी कुमार ने उन्हें छोड़ने के लिए एक लाख रुपए लिए। छह महीने बाद हाईकोर्ट से बेटे को जमानत मिली। इसके बाद से लगातार तरुण गौतम न्याय के लिए अधिकारियों के चक्कर काटते रहे लेकिन किसी ने नहीं सुना। पिता करीब ढाई साल तक देश के गृहमंत्री, उत्तर प्रदेश और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के यहां गुहार लगाता रहा कि उसके निर्दोष बेटे को अपराधी बनाया गया है। अब कोर्ट के आदेश पर मुठभेड़ करने वाले जेवर कोतवाली प्रभारी निरीक्षक समेत 12 पुलिसकर्मी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई है।
फुटबॉलर से फर्जी अपराधी तक
तरुण गौतम ने बताया कि उनका बेटा सोमेश फुटबॉल का अच्छा खिलाड़ी था। कॉलेज में उसने कई मैच अपने बलबूते पर जीते। उसकी इच्छा थी कि वह पढ़ाई के साथ अच्छा फुटबॉलर बनेगा, लेकिन पुलिस ने उसके पैर में गोली मारकर उसके सपने को चकनाचूर कर दिया। पुलिस की गोली लगने के कारण उनका बेटा दौड़ने में पूरी तरह से असमर्थ है।
आंखों में आंसू, दिल में डर
तरुण गौतम का परिवार आज भी अपने घर में नहीं रह पा रहा है। धमकी भरे कॉल्स और डर ने उन्हें रिश्तेदारों के घरों में छिपने को मजबूर कर दिया है। रिपोर्ट दर्ज होने के बाद थाने से जांच के लिए कॉल आया, लेकिन जिस पुलिस पर आरोप है, जांच उन्हीं के थाने में सौंपी गई है।
न्याय की उम्मीद अब भी बाकी है
तरुण गौतम ने अब जांच किसी अन्य जिले से कराने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है। उनके लिए ये सिर्फ बेटे की बेगुनाही नहीं, बल्कि इंसाफ के सिस्टम पर सवाल उठाने की लड़ाई है।