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Kheer Ganga बनी कहर की नदी, धराली में मातम पसरा

उत्तरकाशी के धराली कस्बे में खीर गंगा (या खीर गाड़) नदी के उफान पर आने से भारी तबाही मची है, जिसमें अब तक 4 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है और कई लोग लापता हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने घटना पर दुख जताया है और मुख्यमंत्री धामी से बातचीत की है।

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Ranjana Sharma
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देहरादून, वाईबीएन डेस्क: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली कस्बे में खीर गंगा (या खीर गाड़) नदी के अचानक उफान पर आने से भारी तबाही मच गई। मंगलवार दोपहर करीब डेढ़ बजे नदी में अचानक तेज बहाव और मलबा आने से इलाके में तबाही फैल गई। अब तक चार लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि कई अन्य लापता बताए जा रहे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने घटना पर गहरा शोक जताया है और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से बातचीत कर स्थिति की जानकारी ली है।

राहत कार्य जारी

घटना के तुरंत बाद एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, स्थानीय पुलिस और प्रशासन की टीमें राहत और बचाव कार्य में जुट गई हैं। जिलाधिकारी प्रशांत कुमार आर्य और अन्य अधिकारी मौके पर मौजूद हैं। रास्ते बंद होने के कारण राहत कार्यों में बाधाएं भी आ रही हैं।

मौसम विभाग और स्थानीय रिपोर्ट में विरोधाभास

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मौसम विभाग का कहना है कि उत्तरकाशी में ना तो बादल फटा और ना ही किसी तरह की अतिवृष्टि रिकॉर्ड हुई है। विभाग के अनुसार वहां केवल हल्की से मध्यम बारिश दर्ज की गई। हालांकि स्थानीय पत्रकारों और निवासियों का दावा है कि क्षेत्र में पिछले दो दिनों से लगातार भारी बारिश हो रही है, जो मौसम विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हो पाई है।

नदी की स्वभाविक विशेषता बन रही मुसीबत

जानकारों का कहना है कि खीर गंगा नदी अपनी प्रकृति के कारण अक्सर भारी मलबा लेकर आती है। इसी कारण इसे 'खीर गाड़' भी कहा जाता है, क्योंकि इसका पानी उफान पर आने पर खीर की तरह दिखाई देता है। 1835, 2018 और 2021 में भी इस नदी ने धराली में तबाही मचाई थी।भूगर्भ विज्ञानी प्रोफेसर एसपी सती के अनुसार, धराली आज जिस जगह बसा है, वह 1835 में आई बाढ़ के मलबे पर स्थित है। समय के साथ लोगों ने नदी के प्रवाह क्षेत्र पर निर्माण कर लिए, जिससे नुकसान की आशंका और बढ़ गई।

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बचाव के उपाय नाकाफी

स्थानीय लोग लंबे समय से प्रशासन से खीर गंगा नदी पर सुरक्षा दीवार (protection wall) बनाने की मांग कर रहे हैं, ताकि केदारनाथ जैसे हादसे टाले जा सकें। लेकिन अब तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। 2018 में आपदा प्रबंधन की एक रिपोर्ट में भी चेतावनी दी गई थी कि ऊपर के बुग्यालों की जड़ें कमजोर हो रही हैं और उनका मलबा कभी भी बहकर आ सकता है।

क्या इस तबाही से बचा जा सकता था?

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इस सवाल पर विशेषज्ञों में मतभेद है। पत्रकार शैलेंद्र गोदियाल मानते हैं कि यदि समय रहते सुरक्षा उपाय किए जाते, तो नुकसान को काफी हद तक टाला जा सकता था। वहीं प्रोफेसर सती का कहना है कि नदी के रास्ते में बसे निर्माण हमेशा जोखिम में रहते हैं और इस तरह की फ्लैश फ्लड से पूरी तरह बच पाना मुश्किल होता है। उन्होंने कहा कि यह तबाही अवश्यंभावी थी। जो आज हुआ, वह कल भी हो सकता था।

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