नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
हाल ही में आर्कटिक महासागर का एक नया मानचित्र जारी हुआ है। जिसमें बताया गया है कि इस महासागर का आकार फ्रांस के आकार से दोगुना और इंग्लैंड के आकार से छह गुना बड़ा क्षेत्र दिखाया गया है। यह सीबेड 2030 परियोजना के लिए बनाया गया है। जिसका लक्ष्य 2030 तक पूरे महासागर तल का मानचित्र बनाना है। 2017 में शुरू की गई इस परियोजना ने अपने परिणामों के आधार पर वैज्ञानिक डेटा में प्रकाशित किया है।
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महासागर की स्थितिओं ने बना दिया इसे मुश्किल
महासागर की चरम स्थिति और इस पर बारह महीने होने वाली बर्फ ने इस मानचित्र को मुश्किल बना दिया है। हालाँकि, तकनीकी प्रगति और उन्नत कंप्यूटिंग विधियों ने शोधकर्ताओं को इसको दूर से बनाने में सफलता हासिल कर ली है। आर्कटिक महासागर के अंतर्राष्ट्रीय बाथिमेट्रिक चार्ट (IBCAO) के हिस्से के रूप में जारी किए गए अपडेट में 1.4 मिलियन वर्ग किलोमीटर की नई समुद्री सतह की जानकारियां शामिल की हैं।
सीबेड 2030 के निदेशक जेमी मैकमाइकल-फिलिप्स ने कहा, "यह विज्ञप्ति 2030 तक महासागर तल का पूर्ण मानचित्रण करने के हमारे लक्ष्य को प्राप्त करने में IBCAO जैसी पहलों के महत्व को बताती है। "यह स्थायी महासागर प्रबंधन के लिए आवश्यक डेटा को सुलभ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।"
इस मानचित्र का क्या है महत्व
इस मानचित्रण के कई लाभ हैं, इसके माध्यम से समुद्र गतिविधियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इसके अंतर्गत संसाधन प्रबंधन में सुधार करना और पर्यावरण निगरानी को बढ़ाना शामिल है। कई नेविगेशनल सिस्टम आज भी 19वीं सदी के पुराने डेटा पर निर्भर हैं, जिन्हें लीड वेट और लाइन जैसे बेसिक उपकरणों का उपयोग करके एकत्रित किया जाता है। शिपिंग और समुद्री सुरक्षा के लिए इस जानकारी को अपडेट करना आवश्यक है। मानचित्रण महासागर की दुर्लभ धातुओं और औषधीय यौगिकों जैसे समुद्री संसाधनों का अनुमान लगाने में मदद करता है। सटीक डेटा के बिना समुद्र से उत्खनन करना मुश्किल हो सकता है। इससे उसमें रहने वाले जीवों को गंभीर खतरा हो सकता है। इस मानचित्र के माध्यम से इसके मौसम की भविष्यवाणी करने में भी मदद मिलती है।
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