नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर की घोषणा के बाद रविवार की सुबह जम्मू-कश्मीर के रामबन में चिनाब नदी पर बने बगलिहार बांध के कई गेट खुले देखे गए। पहलगाम टेरर अटैक के बाद चेनाब नदी पर बने सलाल डैम से भी पानी बहता हुआ दिखाई दिया, जबकि भारत की ओर से सीजफायर के बाद सिंधु जल समझौते को बहाल किए जाने को लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई थी। pakistan ceasefire | kashmir ceasefire | india pakistan ceasefire | india ceasefire | Ceasefire not
चिनाब पर बने बांध के गेट खुले
सलाल डैम का एक Video सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें 11 मई की सुबह 6:30 बजे पानी बहता हुआ दिख रहा है। उधर, समाचार एजेंसी पीटीआइ ने भी सोशल मीडिया एक्स पर वीडियो शेयर किया है, जिसमें रामबन में चिनाब नदी पर बने बगलिहार बांध के कई गेट खुले देखे जा सकते हैं। हालांकि आधिकारिक तौर पर सरकारी की ओर से बांध के गेट खोले जाने की कोई जानकारी नहीं दी गई है।
पहलगाम हमले के बाद समझौता हुआ था रद
उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के पहलगाम में 22 अप्रैल को पाकिस्तान परत आतंकियों ने पुलिस की वर्दी में अंधाधुंध फायरिंग करके 28 निहत्थे पर्यटकों की बर्बर हत्या कर दी गई। भारत ने इस घटना पर सख्त प्रतिक्रिया व्यक्त की है। सबसे पहले दिल्ली में पाकिस्तानी दूतावास को बंद कर दिया है तथा 65 साल पहले के सिंधु समझौते को तत्काल प्रभाव से रोकने का सख्त फैसला लेकर आतंकियों के पालनकर्ताओं को सख्त संदेश दिया है।
65 साल पहले हुए था सिंधु जल समझौता
सिंधु जल समझौता (Indus Waters Treaty) भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ एक द्विपक्षीय समझौता है। इस संधि पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। यह समझौता सिंधु नदी और इसकी सहायक नदियों—झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास, और सतलज—के जल के बंटवारे को नियंत्रित करता है।
80 प्रतिशत जल पाकिस्तान को मिलता है
इसके अंतर्गत छह नदियों को दो समूहों में बांटा गया पूर्वी नदियां (रावी, ब्यास, सतलज) भारत को और पश्चिमी नदियां (सिंधु, झेलम, चिनाब) पाकिस्तान को आवंटित की गईं। समझौते के अनुसार, सिंधु नदी प्रणाली के कुल जल का लगभग 80% हिस्सा पाकिस्तान को और 20% भारत को मिलता है। भारत को पश्चिमी नदियों पर सीमित कृषि उपयोग और गैर-उपभोगी उपयोग (जैसे जलविद्युत उत्पादन) की अनुमति है। यह संधि दोनों देशों के बीच युद्धों और तनावों के बावजूद 65वर्षों से कायम है और इसे जल बंटवारे के सबसे सफल समझौतों में से एक माना जाता है।