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एक मिनट के लिए जरा सोचिए, ये सुनकर आपको कैसा लगता है कि नेहरू के ध्वजारोहण करने से कुछ घंटे पहले एक ब्रिटिश अधिकारी ने तिरंगा फहराया था। लेकिन यह उतना अजीब नहीं है जितना लगता है। ये काम बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस लियोनार्ड स्टोन ने किया था। तिरंगा फहराने से पहले उन्होंने एक मिनट का मौन रखने को कहा। समारोह में जजों के परिवार और अदालत के अधिकारी मौजूद थे। राष्ट्रीय ध्वज ठीक आधी रात को फहराया गया, क्योंकि आधी रात के समय ही, जब दुनिया सो रही थी, भारत स्वतंत्रता के एहसास के साथ जागा। उस रात पूरे भारत के गली- मोहल्लों, कस्बों और शहरों में लोगों ने आधी रात को तिरंगा फहराकर अपनी बेमिसाल आजादी का जश्न मनाया।
14-15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को फहराया था तिरंगा
बॉम्बे हाईकोर्ट के आखिरी चीफ जस्टिस स्टोन ने कहा- मैं इस सम्मान के लिए आपका धन्यवाद करता हूं। यह लम्हा हमेशा मेरे दिल में मौजूद रहेगा। स्टोन ने 14-15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को बॉम्बे हाईकोर्ट में तिरंगा फहराने के बाद उसे सलामी भी दी। उस दौर में किसी ब्रिटिश के ऐसा करने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। जिस समय स्टोन ने आज की मुंबई में तिरंगा फहराया, उसी समय भारत के प्रथम और अंतरिम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू दिल्ली स्थित संसद के केंद्रीय कक्ष में अपना ऐतिहासिक भाषण दे रहे थे। कुछ घंटे बाद, उन्होंने 15 अगस्त की सुबह लाल किले की प्राचीर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया।
सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी
लगभग दो शताब्दियों के ब्रिटिश शासन के बाद देश जब स्वतंत्रता के कगार पर आया तो विभाजन का दंश भी झेलना पड़ा। बड़े पैमाने पर पलायन और सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। तकरीबन डेढ़ करोड़ लोग विस्थापित हुए। हिंसा में लाखों लोगों ने अपनी जान गंवाई। जब राष्ट्र अपनी आजादी का जश्न मनाने की तैयारी कर रहा था, तब विभाजन की त्रासदी हर किसी के दिल में थी। अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी आजादी के इस उत्सव के लिए दिल्ली में नहीं थे। वो तो कलकत्ता में थे। वो उपवास कर रहे थे। सांप्रदायिक दंगों के खात्मे के लिए। जब देश इन चुनौतियों से जूझ रहा था, तब सत्ता परिवर्तन की प्रक्रिया चल रही थी।
नए राष्ट्र की खुशी और सफलता
प्रधानमंत्री नेहरू के नेतृत्व में भारत की अंतरिम सरकार को सत्ता संभालनी थी। ब्रिटिश अधिकारी अभी भी प्रशासन, न्यायपालिका और सशस्त्र बलों में महत्वपूर्ण पदों पर थे। बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश लियोनार्ड स्टोन ऐसे ही एक व्यक्ति थे। उस यादगार रात को वकील, अधिकारी और हाईकोर्ट के पूरे स्टाफ के साथ बड़ी संख्या में लोग लगभग 11.55 बजे केंद्रीय न्यायालय में एकत्रित हुए। चीफ जस्टिस की सीट के पास एक ध्वजस्तंभ स्थापित किया गया, जिसके बाद स्टोन ने एक भाषण दिया। अपने भाषण में स्टोन ने नए राष्ट्र की खुशी और सफलता के लिए प्रार्थना करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि लोग इस बात पर खुशी मनाएं कि ये पल उन्होंने अपनी आंखों से देखा।
आधी रात को स्टोन ने तिरंगा फहराया
भाषण के बाद, लगभग 11.59 बजे, चीफ जस्टिस ने उपस्थित लोगों से एक मिनट के लिए मौन प्रार्थना करने को कहा। आधी रात को उन्होंने भारत का तिरंगा फहराया। स्टोन जज की पोशाक में थे। उन्होंने ध्वज को सलामी दी। गाउन पहने अन्य जजों ने उनके सामने झुककर तिरंगे को प्रणाम किया। इसके तुरंत बाद, ब्रिटिश जज और वकील चले गए। स्टोन की इस समारोह में भागीदारी अहम थी, क्योंकि इसने जाते हुए अंग्रेजों और उभरते भारतीय नेतृत्व के बीच के संबंध को उजागर किया। यह विवादास्पद नहीं था, बल्कि उनका ध्वजारोहण भारत की आकांक्षाओं के प्रति सम्मान और औपनिवेशिक शासन के अंत की मान्यता का प्रतीक था। उनके तिरंगा फहराने के बाद जवाहर लाल नेहरू ने इसे सलामी दी तो सारा भारत उत्साह से भर उठा।
ये आजादी की एक ऐसी खुशी थी जिसका इंतजार सदियों से भारत का हर नागरिक कर रहा था। आज भी 15 अगस्त आता है तो हर भारतीय खुशी से भर उठता है। वो उस लम्हे को याद करता है जब देश को स्वाधीनता मिली। जो काम आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने किया वो आज भी बरकरार है। हर 15 अगस्त को देश के पीएम लाल किले की प्राचीर से हुंकार भरते हैं। वो याद करते हैं कि आजादी कैसे मिली। फिर बताते हैं कि अब क्या करना है। British CJ tricolor history | 15 August 1947 facts | Nehru flag hoisting | Independence Day history