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पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकी हमले की बर्बर घटना के बाद भारत ने मंगलवार को छह नदियों के जल बंटवारे से संबंधित सिंधु जल संधि को स्थगित करने की बड़ी कूटनीतिक स्ट्राइक की है। हालांकि स्थगित का असली मतलब क्या है? क्या भारत सिंधु नदी के पानी को रोक सकता है या उसका रुख मोड़ सकता है, जिससे पाकिस्तान को उसकी लाइफलाइन से वंचित होना पड़ सकता है? सवाल ये भी है कि क्या भारत ऐसा करने में सक्षम भी है या नहीं? आइए करते है इस समझौते की विस्तृत पड़ताल और जानेंगे समझौते के स्थगित होने के मायने...
क्या है सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty)
भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को कराची में हस्ताक्षरित एक जल-बंटवारा समझौता है। इस संधि पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे, जिसमें विश्व बैंक ने मध्यस्थता की थी। यह संधि सिंधु नदी और इसकी सहायक नदियों—सतलज, ब्यास, रावी, झेलम, और चिनाब—के जल के उपयोग और बंटवारे को नियंत्रित करती है। यह समझौता दोनों देशों के बीच जल संसाधनों के सहयोग और सूचना आदान-प्रदान के लिए एक तंत्र प्रदान करता है।
इतिहास में पहली बार स्थगित की गई संधि
हालांकि 65 साल में यह पहला मौका है जब इस समझौते को स्थगित किया गया है, जबकि 1960 में हुई सिंधु जल संधि दो युद्धों के बाद भी कायम रही थी। इसे सीमापार जल प्रबंधन के एक उदाहरण के रूप में देखा गया। पाकिस्तान ने भारत के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई भी की है। पाकिस्तान ने कहा है कि पानी रोकने को 'युद्ध की कार्रवाई' के रूप में देखा जाएगा।
इस संधि के तहत सिंधु बेसिन की तीन पूर्वी नदियों रावी, ब्यास और सतलुज का पानी भारत को आवंटित किया गया। संधि के अनुसार, सिंधु नदी प्रणाली के कुल जल का लगभग 20% भारत को और 80% पाकिस्तान को आवंटित किया गया है। भारत को तीन पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, और सतलज) का नियंत्रण प्राप्त है, जिनका औसत वार्षिक प्रवाह 41 अरब घन मीटर है, जबकि पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, और चिनाब) का नियंत्रण दिया गया, जिनका औसत वार्षिक प्रवाह 99 अरब घन मीटर है।India | Appeal Rights in Pakistan | India cancels visa for Pakistanis | india pakistan latest tension | India Pakistan Tension
सिंधु जल संधि का अवलोकन
सिंधु जल संधि की उत्पत्ति 1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे से हुई, जब सिंधु नदी बेसिन और इसकी नहरों का विभाजन हुआ। पाकिस्तान, जो निचले क्षेत्र में स्थित है, सिंचाई और जल आपूर्ति के लिए भारत से होकर बहने वाली नदियों पर निर्भर था। इस निर्भरता ने दोनों देशों के बीच तनाव पैदा किया, जिसके समाधान के लिए विश्व बैंक ने मध्यस्थता की। नौ साल की लंबी बातचीत के बाद, 1960 में यह संधि अस्तित्व में आई।
जल बंटवारा : पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलज) का नियंत्रण भारत को और पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया।
सीमित उपयोग: भारत को पश्चिमी नदियों पर 'रन ऑफ द रिवर' जलविद्युत परियोजनाएं बनाने और कुछ कृषि उपयोग की अनुमति है, लेकिन पानी को रोकने या धारा बदलने का अधिकार नहीं है।
स्थायी सिंधु आयोग: दोनों देशों के आयुक्तों का एक आयोग स्थापित किया गया, जो वर्ष में कम से कम एक बार मिलता है और तकनीकी विवादों को सुलझाता है।
विवाद निपटान: संधि में एक श्रेणीबद्ध तंत्र है, जिसमें बातचीत, तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति, और मध्यस्थता न्यायालय शामिल हैं। यह संधि दोनों देशों के बीच युद्धों (1965, 1971, और कारगिल) और तनावों के बावजूद टिकी रही, जिसे भारत-पाकिस्तान संबंधों में सहमति का एक दुर्लभ उदाहरण माना जाता है।
पहले भी हुए हैं विवाद : पाकिस्तान भारत के हाइड्रोपावर और वाटर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर आपत्ति जता चुका है उसने तर्क दिया था कि इससे नदी का प्रवाह प्रभावित होगा और ये संधि का उल्लंघन होगा। (पाकिस्तान की 80 फ़ीसदी से ज़्यादा कृषि और लगभग एक तिहाई हाइड्रोपावर सिंधु बेसिन के पानी पर निर्भर है)।
भारत कैसे रोक सकता है पाकिस्तान का पानी?
संधि के निलंबन से भारत को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर अधिक नियंत्रण मिल सकता है। हालांकि, पानी को पूरी तरह रोकना तकनीकी और बुनियादी ढांचे की सीमाओं के कारण जटिल है।
इन तरीकों से जल प्रवाह को प्रभावित कर सकता है भारत
बांध और जलाशय निर्माण: भारत पश्चिमी नदियों पर बड़े बांध बना सकता है, जैसे किशनगंगा और रतले परियोजनाएं। संधि के तहत, इन बांधों पर फ्लशिंग (गाद निकालने के लिए तेज जल प्रवाह) और जलाशय भरने पर प्रतिबंध थे, लेकिन निलंबन के बाद ये प्रतिबंध हट सकते हैं। इससे भारत जल भंडारण बढ़ा सकता है, जिससे पाकिस्तान को मिलने वाला पानी कम हो सकता है।
जल प्रवाह डेटा साझा करना बंद करना: भारत बाढ़ और जल प्रवाह के आंकड़े साझा करना बंद कर सकता है, जिससे पाकिस्तान को मानसून के दौरान बाढ़ प्रबंधन में कठिनाई हो सकती है।
नई जलविद्युत परियोजनाएं: भारत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में नई परियोजनाएं शुरू कर सकता है, जिन पर पहले पाकिस्तान ने आपत्ति जताई थी। उदाहरण के लिए, 2019 में पुलवामा हमले के बाद लद्दाख में आठ जलविद्युत परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थी।
कृषि और औद्योगिक उपयोग: भारत पश्चिमी नदियों के पानी का कृषि और औद्योगिक उपयोग बढ़ा सकता है, जिससे पाकिस्तान को कम पानी मिलेगा। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि तत्काल प्रभाव कम होगा, क्योंकि भारत के पास अभी पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है। दीर्घकाल में, बांध निर्माण और जल भंडारण से पाकिस्तान की जल आपूर्ति पर असर पड़ सकता है।
क्या पानी को 'हथियार' बनाया जा सकता है?
लेकिन इलाके़ की मुश्किलों और भारत के अंदर ही कुछ परियोजनाओं को लेकर विरोध जैसी चुनौतियों के कारण इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण तेज़ी से नहीं हो पाएगा। वर्ष 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी में हुए चरमपंथी हमले के बाद भारतीय जल संसाधन मंत्रालय के अधिकारियों अनुसार वे सिंधु बेसिन में कई बांधों और वाटर स्टोरेज परियोजनाओं के निर्माण में तेज़ी लाएंगे।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर भारत मौजूदा ढांचे के साथ पानी के बहाव पर कंट्रोल करता है तो पाकिस्तान में गर्मी के मौसम के दौरान इसका असर देखने को मिल सकता है। गर्मी के मौसम में पानी की उपलब्धता में कमी भी होती है।
निलंबन के पाकिस्तान प्रभाव
कृषि और खाद्य सुरक्षा : पाकिस्तान की 80% कृषि भूमि (लगभग 16 मिलियन हेक्टेयर) सिंधु और इसकी सहायक नदियों पर निर्भर है। जल प्रवाह में कमी से फसल उत्पादन घट सकता है, जिससे खाद्य असुरक्षा बढ़ सकती है।
बिजली उत्पादन : पाकिस्तान के तरबेला और मंगला जैसे बांध बिजली उत्पादन के लिए इन नदियों पर निर्भर हैं। जल कमी से बिजली संकट गहरा सकता है।
शहरी जल आपूर्ति: जल की कमी से पाकिस्तान के शहरी क्षेत्रों में अशांति फैल सकती है।
आर्थिक प्रभाव: जल संकट से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है, क्योंकि यह कृषि और उद्योगों पर निर्भर है।
भारत पर प्रभाव:
कृषि और ऊर्जा लाभ : पश्चिमी नदियों के पानी का उपयोग बढ़ने से पंजाब, राजस्थान, और जम्मू-कश्मीर में कृषि और ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया : एकतरफा निलंबन से भारत को अंतरराष्ट्रीय आलोचना का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि यह संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई थी।
आतंकवाद पर दबाव : भारत का यह कदम पाकिस्तान पर आतंकवाद के समर्थन को रोकने के लिए दबाव डालने की रणनीति हो सकता है।
और तनावपूर्ण होंगे संबंध
यह निलंबन भारत-पाकिस्तान संबंधों को और तनावपूर्ण बना सकता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इससे दोनों देशों के बीच "पानी नहीं बहेगा तो खून बहेगा" जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
विश्व बैंक और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भूमिका
जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण हिमनदों का पिघलना और अनियमित मानसून संधि के प्रासंगिकता को प्रभावित कर रहे हैं। संधि में इन बदलावों को शामिल करने की आवश्यकता है।
आतंकवाद और सुरक्षा: भारत ने बार-बार कहा है कि सीमा पार आतंकवाद संधि के सुचारू संचालन में बाधा है। पहलगाम हमला इस तनाव का नवीनतम उदाहरण है।
बुनियादी ढांचे की कमी: भारत के पास अभी पश्चिमी नदियों का पानी रोकने के लिए पर्याप्त बांध और जलाशय नहीं हैं। दीर्घकालिक प्रभाव के लिए बड़े निवेश की आवश्यकता होगी।
कानूनी और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण: वियना कन्वेंशन और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत एकतरफा निलंबन विवादास्पद हो सकता है। पाकिस्तान इसे विश्व बैंक या मध्यस्थता न्यायालय में चुनौती दे सकता है।
क्षेत्रीय हित: जम्मू-कश्मीर, पंजाब, और हरियाणा के लोग लंबे समय से संधि में अपने हितों की अनदेखी की शिकायत करते रहे हैं। निलंबन से इन क्षेत्रों को लाभ हो सकता है।
जल बंटवारे का एक महत्वपूर्ण समझौता रहा
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे का एक महत्वपूर्ण समझौता रहा है, जो दशकों तक युद्धों और तनावों के बावजूद कायम रहा। हालांकि, पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा इसे निलंबित करने का निर्णय दोनों देशों के संबंधों में एक नया मोड़ ला सकता है। भारत पश्चिमी नदियों पर बांध निर्माण, जल भंडारण, और डेटा साझा करना बंद करके पाकिस्तान के जल प्रवाह को प्रभावित कर सकता है, लेकिन तत्काल प्रभाव सीमित होगा। दीर्घकाल में, इससे पाकिस्तान की कृषि, बिजली, और शहरी जल आपूर्ति पर गहरा असर पड़ सकता है, जबकि भारत को अपने क्षेत्रों में लाभ मिल सकता है।
पाकिस्तान पर पानी का संकट
सिंधु जल संधि के तहत सभी नदियों को दोनों देशों के बीच विभाजित किया गया था। सिंधु, झेलम और चेनाब जैसी पश्चिम की नदियां पाकिस्तान के और रावी, ब्यास और सतलुज जैसी पूर्वी नदियां भारत के हिस्से में आईं। समझौते के तहत इन नदियों के 80 प्रतिशत पानी पर पाकिस्तान का अधिकार है। यह समझौता भारत को पश्चिमी नदियों पर जलविद्युत परियोजनाएं विकसित करने की भी अनुमति देता है, लेकिन इन परियोजनाओं को कड़ी शर्तों का पालन करना होगा. ये परियोजनाएं "रन-ऑफ-द-रिवर” परियोजनाएं होनी चाहिए, जिसका मतलब है कि वे जल प्रवाह या भंडारण में महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं कर सकता है, और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि निचले क्षेत्र के देश के रूप में पाकिस्तान के जल अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव ना पड़े।
पाकिस्तान नदियों के पानी पर निर्भर है
यह समझौता पाकिस्तान को जल प्रवाह को प्रभावित करने वाली किसी भी डिजाइन पर आपत्ति उठाने की अनुमति देता है। पाकिस्तान, जो संधि के तहत अपनी जरूरतों का लगभग 80 प्रतिशत पानी सिंधु नदी से प्राप्त करता है, इन नदियों पर काफी हद तक निर्भर है। पाकिस्तान की 80 फीसदी खेती योग्य जमीन सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है।
इस पानी का करीब 90 फीसदी हिस्सा सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यही नहीं इससे 23 करोड़ से ज्यादा लोगों का भरण-पोषण होता है। सिंधु और उसकी सहायक नदियों से पाकिस्तान के अहम शहर कराची, लाहौर और मुल्तान निर्भर रहते हैं. पाकिस्तान के तरबेला और मंगला पॉवर प्रोजेक्ट इस नदी पर निर्भर करते हैं।
भारत में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने एक पाकिस्तानी समाचार चैनल से बात करते हुए कहा कि सिंधु जल संधि को ना तो एकतरफा तौर पर निलंबित किया जा सकता है और ना ही खत्म किया जा सकता है।
सिंधु जल संधि पर द हेग में पाकिस्तान के पक्ष में फैसला
पूर्व पाकिस्तानी सांसद मुशाहिद हुसैन सैयद ने आरोप लगाया कि भारत ने पहलगाम घटना का इस्तेमाल सिंधु जल संधि को निलंबित करने के बहाने के रूप में किया क्योंकि वह "एक साजिश के तहत पाकिस्तान पर दबाव डालना चाहता है।" उन्होंने एक पाकिस्तानी समाचार चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि सिंधु जल संधि इस्लामाबाद और नई दिल्ली के बीच एक द्विपक्षीय अंतरराष्ट्रीय समझौता है और अगर मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पाकिस्तान का पानी रोकती है तो यह अंतरराष्ट्रीय उल्लंघन होगा।
भारत में आ सकती है बाढ़
एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत को सबसे पहले अपने ही क्षेत्र में बाढ़ का ख़तरा होगा क्योंकि उसके बांध पाकिस्तान की सीमा से बहुत दूर हैं। लेकिन अब भारत बिना किसी पूर्व चेतावनी के अपने जलाशयों से गाद बहा सकता है जिससे पाकिस्तान के हिस्से की तरफ़ नुक़सान होगा। सिंधु जैसी हिमालयी नदियों में गाद का स्तर बहुत अधिक होता है. ये बांध और बैराजों में जल्दी ही जमा हो जाती है। इस गाद के अचानक बह जाने से नीचे की ओर काफ़ी नुक़सान हो सकता है।
एक बड़ी तस्वीर और भी है
भारत ब्रह्मपुत्र बेसिन में चीन के नीचे की ओर है और सिंधु नदी तिब्बत से निकलती है। साल 2016 में जम्मू-कश्मीर में हुए चरमपंथी हमले के बाद भारत ने चेतावनी दी थी कि 'ब्लड और पानी एक साथ नहीं बह सकते.' भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया था। उस दौरान चीन ने यारलुंग त्सांगपो की एक सहायक नदी को रोक दिया था जो पूर्वोत्तर भारत में ब्रह्मपुत्र बन जाती है।
हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट
पाकिस्तान चीन का सहयोगी है। चीन ने कहा था कि ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि ये सीमा के पास बनाए जा रहे हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के लिए ज़रूरी था। लेकिन इस क़दम को इस तरह देखा गया कि चीन पाकिस्तान की मदद के लिए आगे आया है। तिब्बत में कई हाइड्रोपावर प्लांट बनाने के बाद चीन ने यारलुंग त्सांगपो के निचले हिस्से में दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने को हरी झंडी दे दी है। चीन का दावा है कि इससे पर्यावरण पर कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ेगा। लेकिन भारत को डर है कि चीन इससे नदी के बहाव पर महत्वपूर्ण नियंत्रण हासिल कर लेगा। देखना है कि भारत पानी को कैसे रोकेगा।