Advertisment

CJI संजीव खन्ना, चार फैसलों से नरेंद्र मोदी की सरकार को दिखाया, क्या है सुप्रीम कोर्ट की ताकत

CJI के तौर पर जस्टिस संजीव खन्ना ने शपथ ली तब सुप्रीम कोर्ट की साख पर सवालिया निशान खड़े हो रहे थे। कोर्टरूम के बाहर ये बात बहस का मुद्दा बन गई थी कि राष्ट्रीय हित से जुड़े संवेदनशील मुद्दों की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट टालमटोल क्यों कर रहा है।

author-image
Shailendra Gautam
एडिट
Sanjeev Khanna

नई दिल्ली। 11 नवंबर 2024 को देश के 51वें CJI के तौर पर जस्टिस संजीव खन्ना ने शपथ ली तब सुप्रीम कोर्ट की साख पर सवालिया निशान खड़े हो रहे थे। कोर्टरूम के बाहर ये बात बहस का मुद्दा बन गई थी कि राष्ट्रीय हित से जुड़े संवेदनशील मुद्दों की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट टालमटोल क्यों कर रहा है। संजीव खन्ना 6 महीने के लिए CJI बने थे। हालांकि शुरुआती महीनों में जिस तरह से कुछ मामलों की सुनवाई से उन्होंने खुद को अलग किया, उससे लगने लगा कि सुप्रीम कोर्ट पहले वाले ढर्रे पर ही चलने जा रहा है। 

Advertisment

अलबत्ता उसके बाद के दौर में दिए गए चार फैसलों से नरेंद्र मोदी सरकार को पहली दफा अदालत की तपिश का एहसास हुआ। ये तपिश इतनी ज्यादा थी कि उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और बीजेपी के नेता निशिकांत दुबे सीधे तौर पर CJI पर हमलावर हो गए। बात इतनी दूर तक चली गई कि दुबे ने देश के सांप्रदायिक तनाव के लिए संजीव खन्ना को जिम्मेदार ठहरा दिया। इस आरोप पर सुप्रीम कोर्ट अवमानना को लेकर दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई करने जा रहा है। लेकिन ये बात साफ है कि मोदी सरकार के साथ बीजेपी के दिग्गज नेताओं को सुप्रीम कोर्ट की अति सक्रियता रास नहीं आ रही है। तभी ये सारा बखेड़ा खड़ा हो रहा है। CJI खन्ना के कार्यकाल को पांच महीने पूरे हो चुके हैं। जल्दी ही वो सेवानिवृत हो जाएंगे। देखते हैं कि उनके चार फैसले कौन से थे जो सरकार को रास नहीं आ रहे। 

दिसंबर में आया था धार्मिक ढांचों से जुड़ा पहला फैसला

12 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार दिखाया कि उसकी क्या जिम्मेदारी होनी चाहिए। CJI की अगुवाई वाली बेंच ने फैसला दिया था कि देश भर की कोई भी अदालत धार्मिक ढांचों को लेकर कोई फैसला नहीं देगी। बेंच में संजीव खन्ना के अलावा जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन भी शामिल थे। बेंच ने एक कदम आगे बढ़कर ये आदेश भी दिया कि देश भर की कोई भी अदालत धार्मिक ढांचों के अस्तित्व और प्रासंगिकता को लेकर कोई नई रिट रजिस्टर नहीं करेगी।

Advertisment

ये आदेश उत्तर प्रदेश के संभल विवाल विवाद के बाद सामने आया था। इस मामले में यूपी की सिविल कोर्ट संभल की शाही जामा मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया था। ये फैसला उन दावों के बाद आया था जिनमें दावा किया गया था कि शाही जामा मस्जिद एक मंदिर को ध्वस्त करके बनाई गई थी। कोर्ट के फैसले के बाद समूचे उत्तर भारत खासकर संभल में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया था। CJI की बेंच ने कहा था कि प्लेसेज आफ वर्शिप एक्ट (स्पेशल प्रोविजन) 1991 कहता है कि इस तरह की याचिकाओं को गलत मानता है कि जिनमें किसी धार्मिक ढांचे की प्रासंगिकता को लेकर सवाल उठाया गया हो। अयोध्या के राममंदिर से जुड़ा फैसला देने वाली संवैधानिक बेंच ने भी अपने फैसले में कहा था कि 1991 के एक्ट की वैधता पर जब तक कोई कारगर फैसला न हो जाए तब तक इस तक की याचिकाएं अदालतें ना स्वीकार करें। ध्यान रहे कि वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के अलावा मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद और अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर भी आवाजें उठ रही हैं कि ये सारे ढांचे हिंदू मंदिरों को गिराकर खड़ा किए गए हैं। देश के मौजूदा माहौल को देखते हुए CJI की बेंच का ये फैसला नजीर साबित हुआ। हालांकि बीजेपी को ये रास नहीं आया। 

वक्फ संशोधन एक्ट को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट ने दिखाए सरकार को तेवर

नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से संसद के दोनों सदनों से पारित कराए गए वक्फ संशोधन एक्ट 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला दिया जिससे सरकार को रणनीतिकार भी झुंझला गए। CJI संजीव खन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने अपने आदेश में एक्ट के कुछ प्रावधानों पर रोक लगा दी। तीन जजों की बेंच ने सरकार के खिलाफ सीधे तौर पर तो कुछ नहीं कहा लेकिन उन्हें इस को लेकर आपत्ति थी कि वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिमों को सरकार शामिल कराने जा रही है। CJI का सवाल था कि क्या हिंदु संस्थाओं के बोर्ड में मुस्लिमों को शामिल करने की अनुमति देगी। सुप्रीम कोर्ट को इस बात पर भी आपत्ति थी कि वक्फ से जुड़ी संपत्तियों के निपटारे के लिए एक्ट में कलेक्टर को व्यापक अधिकार सौंपे गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के तेवर देखते हुए सरकार को शर्मिंदगी उठानी पड़ी। 17 अप्रैल को सरकार की तरफ से पेश वकील को ये आश्वासन देना पड़ा कि जिन संशोधनों पर सर्वोच्च अदालत को आपत्ति है वो उन पर अमल नहीं करने जा रहे। मामले की सुनवाई 5 मई को होगी। हालांकि वक्फ बोर्ड के कुछ प्रावधानों पर स्टे लगना बीजेपी को नागवार गुजरा। बीजेपी के कुछ नेता सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट और CJI पर हमलावर हो गए। कहने की जरूरत नहीं कि सुप्रीम कोर्ट के एक के बाद एक करके सरकार के खिलाफ आ रहे फैसलों से बीजेपी और खुद सरकार खुद को असहजता की स्थिति में पा रही है।

Advertisment

राष्ट्रपति को दायराबंद करने के फैसले से हिल गई मोदी सरकार

नरेंद्र मोदी के पिछले दोनों और मौजूदा कार्यकाल के दौरान एक बात देखने में आई कि जिन राज्यों में विपक्ष की सरकारें थीं या हैं उनको राज्यपाल के जरिये काम करने से रोका जा रहा है। दिल्ली के सीएम रहे अरविंद केजरीवाल ने उप राज्यपाल की टोकाटोकी से आजिज आकर पहले दिल्ली हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में केस भी लड़ा। लेकिन इसके बावजूद ना तो केंद्र के रवैये में कोई बदलाव देखने को मिला और ना ही उनकी तरफ से नियुक्त राज्यपालों की कार्यप्रणाली में। ऐसे ही एक मामले में तमिलनाडु ने जब सुप्रीम कोर्ट से राज्यपाल की शिकायत की तो एक ऐसा फैसला आया जो ऐतिहासिक कहा जा सकता है। हालांकि ये फैसला देने वाली बेंच में CJI शामिल नहीं थे। ये आदेश जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने दिया। अदालत ने संविधान के आर्टिकल 201 की व्याख्या करते हुए कहा कि राष्ट्रपति किसी भी बिल को अनिश्चित काल के लिए लंबित नहीं रख सकते। उनको बिल मिलने की तारीख के तीन माह के भीतर फैसला लेना ही होगा। आदेश में राज्यपालों को लिए भी समय सीमा तय की गई। सरकार को ये फैसला इतना ज्यादा नागवार गुजरा कि उप राष्ट्रपति खुद सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधते दिखे। CJI खुद सीधे तौर पर इस फैसले में शामिल नहीं थे। अलबत्ता राजनीतिक गलियारों में माना गया कि उनसे मशविरा किए बगैर सुप्रीम कोर्ट इस हद तक नहीं जा सकता। सोशल मीडिया पर CJI को इसके लिए तरह तरह की बातें सुनने को मिल रही हैं। सुप्रीम कोर्ट की हदों को लेकर भी सवाल लगातार खड़े किए जा रहे हैं। 

जस्टिस यशवंत वर्मा के घर मिले कैश पर तत्काल लिया गया एक्शन

Advertisment

सुप्रीम कोर्ट के इतिहास से उलट CJI संजीव खन्ना ने एक फैसला ऐसा भी लिया जो सर्वोच्च अदालत के बदले हुए रंग रूप का अहसास करा रहा है। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से जले हुए नोट मिलने का मामला सामने आया तो CJI ने तुरंत एक्शन लेकर तीन मेंबर्स की इन हाउस कमेटी का गठन जांच के लिए कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने आरंभिक जांच के बाद जो रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी उसे तत्काल वेबसाइट पर डालकर पारदर्शिता का अहसास कराया गया। इतना ही नहीं CJI की अगुवाई वाले कालेजियम ने तत्काल प्रभाव से जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर करने का आदेश जारी कर दिया। जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट से पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही तैनात थे। पहले के दौर में देखा जाए तो सुप्रीम कोर्ट के CJI रहे रंजन गोगोई पर जब यौन शोषण का आरोप लगा था तो इन हाउस कमेटी बनाकर मामले की सुनवाई के लिए एक बेंच भी गठित की गई थी। खास बात थी कि उस बेंच के प्रमुख खुद गोगोई ही थे। बेंच ने मामले के सुना और गोगोई को क्लीन चिट दे दी। यही नहीं इन हाउस कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट में उनको पाक साफ करार दिया। रंजन गोगोई फिलहाल बीजेपी कोटे से राज्यसभा सदस्य हैं।

Advertisment
Advertisment