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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। रेयर अर्थ एलिमेंट्स (Rare Earth Elements) के निर्यात पर चीन के प्रतिबंध लगाने की घोषणा से भारत का ऑटो मोबाइल सेक्टर संकट में फंस सकता है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार और एक प्रमुख मैन्युफैक्चरिंग हब है, जहां मारुति सुजुकी, टाटा मोटर्स, महिंद्रा, और हुंडई जैसी कंपनियां वाहनों का निर्माण कर रही हैं। रेयर अर्थ मैग्नेट्स के बिना इलेक्ट्रिक वाहनों और ट्रेडीशनल वाहनों का उत्पादन लगभग असंभव है, क्योंकि ये मैग्नेट्स मोटरों, स्टीयरिंग, और अन्य महत्वपूर्ण घटकों में उपयोग होते हैं। उधर, सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स और ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने सरकार से इस संकट को हल करने के लिए तत्काल कदम उठाने की अपील की है।
REE 17 रासायनिक रूप से समान तत्वों का एक समूह
बता दें, रेयर अर्थ एलिमेंट्स को आमतौर पर आरईएम या दुर्लभ पृथ्वी खनिज (आरईई) भी कहा जाता है। ये पृथ्वी में पाए जाने वाले 17 रासायनिक रूप से समान तत्वों का एक समूह होता है। हालांकि, दुर्लभ पृथ्वी खनिज दुर्लभ नहीं हैं और यह पृथ्वी की पपड़ी में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। लेकिन, इन तत्वों को अलग करने और इनकी प्रोसेसिंग में काफी समय लगता है। रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर चीन का एकाधिकार है। इसी के बलबूते वह दुनिया के देशों को लाल-लाल आंखें दिखाकर एक तरह की ब्लैकमेलिंग कर रहा है।
चीन करता है 90 प्रतिशत वैश्विक आपूर्ति
चीन वैश्विक स्तर पर रेयर अर्थ एलिमेंट्स का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है, जो लगभग 90% वैश्विक आपूर्ति को नियंत्रित करता है। मई 2025 में, चीन ने रेयर अर्थ मैग्नेट्स के निर्यात पर सख्त नियंत्रण लागू किए, जिसमें निर्यातकों को सरकारी लाइसेंस और अंतिम उपयोग प्रमाणपत्र (End-Use Certificate) प्राप्त करने की आवश्यकता शामिल है। यह कदम मुख्य रूप से अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के जवाब में उठाया गया है, लेकिन इसका असर भारत जैसे अन्य देशों पर भी पड़ रहा है। चीन के नए नियमों के अंतर्गत, निर्यातकों को यह सत्यापित करना होगा कि मैग्नेट्स का उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए नहीं होगा, और दस्तावेजों को नई दिल्ली में चीनी दूतावास से सत्यापित कराना होगा। इससे फरमान से आपूर्ति शृंखला में देरी और अनिश्चितता बढ़ गई है।
किन-किन वस्तुओं में होता है आरईई का प्रयोग
रेयर अर्थ एलीमेंट्स यानी आरईई का इस्तेमाल 200 से अधिक उच्च तकनीक वाली वस्तुओं के निर्माण में किया जाता है। लेकिन वर्तमान में इसका 60 प्रतिशत अकेले चीन निकालता है, जबकि प्रसंस्करण में वह 90 फीसदी पहुंचता है। चीन इस दबदबे का इस्तेमाल ताकत के तौर पर भी करता है। जैसे नियोडिमियम, डिस्प्रोसियम, और प्रासियोडिमियम आधुनिक तकनीकों, विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) और ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये तत्व उच्च-प्रदर्शन वाले स्थायी चुम्बकों (Permanent Magnets) जैसे नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन (NdFeB) के निर्माण में उपयोग होते हैं, जो इलेक्ट्रिक मोटरों, पावर स्टीयरिंग, ब्रेक, और ऑडियो सिस्टम जैसे ऑटोमोबाइल के महत्वपूर्ण हिस्सों में आवश्यक हैं।
इन तत्वों का होता है समूह
रेयर अर्थ एलिमेंट्स में 17 तत्व होते हैं, जिनमें- स्कैंडियम, येट्रियल, लैंथेनम, सेरियम, प्रजोडायमियम, नियोडिमियम, प्रोमेथियम, सैमेरियम, यूरोपियम, गैडोलीनियम, टर्बियम, डिस्प्रोसियम, होल्मियम, एर्बियम, थ्यूलियम, येटरबियम, ल्यूटेटियम जैसे तत्व शामिल होते हैं।
इन चीजों में होता है इस्तेमाल
रेयर अर्थ एलिमेंट्स का उपयोग स्मार्टफोन, सैन्य उपकरण, हथियार, इलेक्ट्रिक वाहन, पवन टर्बाइन, विमान इंजन, तेल शोधन, इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों, चिकित्सा उपकरणों में किया जाता है।
भारत में रेयर अर्थ एलिमेंट्स की उपलब्धता
भारत में रेयर अर्थ एलिमेंट्स के भंडार मौजूद हैं, लेकिन उनका खनन और शोधन बहुत ही शुरुआती दौर में हैं। देश के पास रेयर अर्थ एलिमेंट्स के भंडार मुख्य रूप से मोनाजाइट खनिजों में पाए जाते हैं, जो तटीय क्षेत्रों, विशेषकर केरल, तमिलनाडु, और ओडिशा में उपलब्ध हैं। अनुमानित तौर पर भारत के पास 12 मिलियन टन रेयर अर्थ ऑक्साइड्स हैं, जो वैश्विक भंडार का तकरीबन 5% है। इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL)देश में रेयर अर्थ खनन और प्रसंस्करण की प्रमुख कंपनी है, लेकिन इसकी क्षमता सीमित है। भारत अपनी जरूरत का 95% रेयर अर्थ सामग्री चीन से आयात करता है।
आधे-अधूरे सरकारी प्रयास
केंद्र की मोदी सरकार ने आत्मनिर्भर भारत पहल के अंतर्गत रेयर अर्थ उत्पादन को बढ़ावा देने की योजना बनाई है। खनन मंत्रालय और IREL ने ओडिशा और तमिलनाडु में प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित करने की घोषणा की है। इसके अलावा, भारत जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ क्वाड फ्रेमवर्क के तहत वैकल्पिक आपूर्ति शृंखला विकसित करने पर काम कर रहा है।सच्चाई है कि हम रेयर अर्थ मैग्नेट्स की जरूरत का लगभग 90% चीन से आयात करते हैं। अप्रैल 2025 में, चीन से स्थायी मैग्नेट्स का निर्यात 51% गिरकर 2,626 टन रह गया, जो भारत की आपूर्ति पर सीधा प्रभाव डालता है।
वाहनों का उत्पादन हो सकता है ठप
सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) ने चेतावनी दी है कि भारत में रेयर अर्थ मैग्नेट्स का स्टॉक खत्म हो सकता है, जिससे जून 2025 से वाहन उत्पादन पूरी तरह ठप हो जाएगा। SIAM ने चिंता जताते हुए कहा कि वैकल्पिक स्रोतों से मैग्नेट्स प्राप्त करने की लागत अधिक होगी, जिससे वाहनों की कीमतें बढ़ सकती हैं। खासकर इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतें बढ़ेंगी। electric vehicles | several crucial rare earth elements | energy and electronics | china news | china
आर्थिक असर और रोजगार पर प्रभाव
ऑटोमोबाइल सेक्टर भारत की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो लाखों रोजगार प्रदान करता है। उत्पादन में रुकावट से न केवल आर्थिक विकास प्रभावित होगा, बल्कि रोजगार पर भी संकट मंडराएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग पर इससे खतरा बढ़ेगा। भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग तेजी से बढ़ रही है, और सरकार ने 2030 तक 30% वाहनों को इलेक्ट्रिक बनाने का लक्ष्य रखा है। चीन का प्रतिबंध इस लक्ष्य को प्राप्त करने में बाधा बन सकता है।
क्या कहना है विशेषज्ञों का
बजाज ऑटो के एमडी राजीव बजाज ने चेतावनी दी है कि रेयर अर्थ मैग्नेट्स के निर्यात पर चीन के नियंत्रण से भारतीय ईवी उद्योग ठप हो सकता है। उन्होंने आत्मनिर्भरता पर जोर देते हुए सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स और ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने सरकार से इस संकट को हल करने के लिए तत्काल कदम उठाने की अपील की है। वे चीनी अधिकारियों के साथ बातचीत के लिए एक प्रतिनिधिमंडल भेजने की योजना बना रहे हैं।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के अजय श्रीवास्तव ने सुझाव दिया है कि भारत को दीर्घकालिक रणनीति अपनानी होगी, जिसमें घरेलू उत्पादन और वैकल्पिक आपूर्ति शृंखलाओं का विकास शामिल है। सेंट्रम ब्रोकिंग के निदेशक कुणाल कोठारी ने कहा कि चीन की नीतियां वैश्विक व्यापार को जटिल बना रही हैं, लेकिन भारत की मजबूत घरेलू अर्थव्यवस्था और विविध निर्यात इस संकट को झेलने में मदद कर सकते हैं।
एक्सपर्ट का कहना है कि चीन की खोज से दुर्लभ पृथ्वी खनन के क्षेत्र में दुनिया में स्थिति और मजबूत होगी, जहां वह पहले ही अपना दबदबा रखता है। एशिया की बड़ी ताकत चीन के पास करीब 60 फीसदी दुर्लभ पृथ्वी उत्पादन और 90 प्रतिशत प्रसंस्करण क्षमता पर नियंत्रण है। साल 2023 तक चीन का कुल खनन उत्पादन 240,000 टन था, जो दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका से छह गुना ज्यादा है।
नार्वे में मिला भंडार
यूरोपीय देश नॉर्वे में रेयर अर्थ एलीमेंट्स (REE) के सबसे बड़ी भंडार की खोज हुई है, जो दुनिया में चीन के दबदबे को खत्म कर सकती है। रेयर अर्थ नॉर्वे ने पिछले सप्ताह बताया कि उसे एक दुनिया बदल देने वाली संपत्ति हासिल हुई है। इसमें याट्रियम और नियोडिमियम समेत 15 प्रकार के दुर्लभ तत्व शामिल हैं। याट्रियम के चलते इसे सफेद सोना कहा जाता है। वर्तमान में दुनिया के संपूर्ण आरईई का 60 प्रतिशत अकेले चीन निकालता है, जबकि प्रसंस्करण में इसका हिस्सा बढ़कर 90 प्रतिशत हो जाता है। यूरोपीय संघ के आरईई आयात का 98 फीसदी और अमेरिका के आयात का 80 फीसदी चीन से आता है, जो वाशिंगटन और ब्रसेल्स के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा चिंता का विषय है।