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मुंबई, वाईबीएन डेस्क। कोल्हापुरी शैली की चप्पलों को लेकर उठे विवाद के बीच मंगलवार को इतालवी फैशन हाउस प्रादा की एक टीम प्रतिष्ठित कोल्हापुरी चप्पलों के पीछे के पारंपरिक शिल्प की बेहतर समझ हासिल करने के लिए मंगलवार को कोल्हापुर पहुंची। जिनमें पुरुष तकनीकी और उत्पादन विभाग (फुटवियर प्रभाग) के निदेशक पाओलो टिवरोन, फुटवियर प्रभाग के पैटर्न-मेकिंग मैनेजर डेनियल कोन्टू, एंड्रिया पोलास्ट्रेली और रॉबर्टो पोलास्ट्रेली शामिल थे। हालांकि कोल्हापुरी चप्पलों को 2019 से भारत में भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा प्राप्त है, जो उनकी अनूठी विरासत और क्षेत्रीय पहचान को मान्यता देता है।
#WATCH महाराष्ट्र: इटली के फैशन हाउस प्राडा(Prada) की एक टीम प्रतिष्ठित कोल्हापुरी चप्पलों के इतिहास और शिल्प कौशल के बारे में जानने के लिए कोल्हापुर पहुंची। pic.twitter.com/wFVR6EnF3B
— ANI_HindiNews (@AHindinews) July 16, 2025
नाम को लेकर हाईकोर्ट में पहुंचा मामला
सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर टीम के दौरे का वीडिया शेयर किया गया है, जिसमें इतालवी तकनीकी टीम यूनिटों का दौरा करती हुई नजर आ रही है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में मिलान के फैशन वीक में, प्रादा के स्प्रिंग/समर 2026 के दौरान कम से कम सात लुक में मॉडल्स कोल्हापुरी शैली की चप्पलें पहने हुए दिखाई दीं। इनकी कीमत लगभग 1.2 लाख रुपये प्रति चप्पल थी, लेकिन इनके मूल नाम या सांस्कृतिक जड़ों का उल्लेख नहीं किया गया था, जिससे भारत में प्रादा को लेकर गहरी नाराजगी थी।
इसे लेकर बंबई उच्च न्यायालय मे इतालवी फैशन हाउस प्राडा के खिलाफ प्रसिद्ध कोल्हापुरी चप्पलों के कथित अनधिकृत इस्तेमाल के लिए दायर जनहित याचिका भी दायर की गई, जिसे खारिज कर दिया गया। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले पांच वकीलों के ‘अधिकार क्षेत्र’ और वैधानिक अधिकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि वे पीड़ित व्यक्ति या कोल्हापुरी चप्पल के पंजीकृत प्रोपराइटर या स्वामी नहीं हैं।
भविष्य में गलती न दोहराने का आश्वासन
उधर, महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर के ललित गांधी ने समाचार एजेंसी को बताया, "कुछ दिन पहले, प्रादा ने इटली के मिलान में एक फैशन शो आयोजित किया था, जहाँ कोल्हापुरी चप्पलों को प्रदर्शित किया गया था। जिसमें कोल्हापुरी शैली की चप्पलों का इस्तेमाल किया गया।महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर ने प्रादा को पत्र लिखकर सांस्कृतिक विनियोग और स्वीकृति की कमी के बारे में चिंता जताई थी।
इसके बाद, प्रादा ने, भविष्य में ऐसी गलती नहीं दोबारा दोहराने का आश्वासन दिया। इसके अलावा, प्रादा के प्रतिनिधियों ने कोल्हापुरी चप्पलों को वैश्विक स्तर पर उचित पहचान दिलाने में मदद करने का वादा भी किया।"टीम ने जवाहर नगर क्षेत्र का दौरा किया, जो पारंपरिक कोल्हापुरी जूते बनाने के लिए जाना जाता है, और शुभम सातपुते, बालू गवली, अरुण सातपुते, सुनील लोकरे और बालासाहेब गवली सहित स्थानीय कारीगरों के साथ बातचीत की।
12वीं शताब्दी से बनाई जा रही हस्तनिर्मित चप्पल
कोल्हापुरी चप्पल, जो महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले और आसपास के क्षेत्रों में प्रसिद्ध है, एक हस्तनिर्मित चप्पल है जो 12वीं शताब्दी से बनाई जा रही है। राजा बिज्जला और उनके प्रधानमंत्री बसवन्ना ने स्थानीय कारीगरों को सहायता प्रदान करने के लिए इस कला को प्रोत्साहित किया।
शुरुआत में, इन चप्पलों को अलग-अलग नामों से जाना जाता था, जैसे कि कपशी, पायतान, कचकड़ी, बक्कलनाली और पुकारी, जो उनके निर्माण के गांव का संकेत देते थे। 13वीं शताब्दी तक, कोल्हापुरी चप्पलें लोकप्रिय हो गईं और उन्हें उनके वर्तमान नाम से जाना जाने लगा. छत्रपति शाहू महाराज, जो कोल्हापुर के शासक थे, ने इस उद्योग को और बढ़ावा दिया. उनके शासनकाल में, 29 चर्मशोधन केंद्र स्थापित किए गए थे, जिससे चप्पल उत्पादन में वृद्धि हुई।
विशिष्ट डिजाइन है कोल्हापुरी चप्पलों की पहचान
कोल्हापुरी चप्पलें अपनी विशिष्ट डिजाइन, जटिल हस्तकला और वनस्पति-रंगे हुए चमड़े के उपयोग के लिए जानी जाती हैं. ये चप्पलें आमतौर पर टैन या गहरे भूरे रंग में उपलब्ध होती हैं और इनकी पहचान टी-स्ट्रैप आकृति, बारीक बुनाई और खुले पंजे वाले डिज़ाइन से होती है. 2019 में, कोल्हापुरी चप्पलों को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग भी दिया गया, जिससे उनकी उत्पत्ति और विशिष्टता को आधिकारिक मान्यता मिली। आज, कोल्हापुरी चप्पलें न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हैं। इन चप्पलों की लोकप्रियता का एक कारण यह भी है कि इन्हें प्रादा, वाईएसएल और अन्य वैश्विक लक्जरी ब्रांडों द्वारा भी अपनाया गया है। : Kolhapuri chappal row | Prada Team in Kolhapur | Fashion House in India | Kolhapuri Chappal Dispute