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बाम्बे हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने एक लेडी एडवोकेट को बचाने के लिए एक अनूठा फैसला दिया। जालसाजी वकील ने की थी। लेकिन हाईकोर्ट ने उसे क्लीन चिट देकर कहा कि वकील पर मुवक्किल का बहुत ज्यादा असर होता है। वो कई दफा वकील को गलत काम करने के लिए मजबूर कर देते हैं। ऐसे में वकील को दोषी नहीं मान सकते। High Court
एडवोकेट का नाम सारिका नारायण है। उनके खिलाफ चंद्रपुर के रामनगर थाने में जालसाजी का केस दर्ज किया गया था। लोकल कोर्ट के एक स्टाफ मेंबर ने खुद पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। दरअसल, सारिका अपने मुवक्किल को बेल दिलाने की कोशिश कर रही थीं। उन्होंने केस को मजबूत बनाने के लिए लोअर कोर्ट के जज के सामने कुछ दस्तावेज रखे। इनमें एक दस्तावेज था प्रापर्टी टैक्स से जुड़ी रिसीट। ये रिसीट बेल की श्योरिटी के तौर पर कोर्ट में जमा कराई गई थी। खास बात थी कि जिस ग्राम पंचायत के नाम पर इसे दर्शाया गया था उसने इसे जारी ही नहीं किया था।
लोअर कोर्ट के जज के संज्ञान में हेराफेरी आई तो उन्होंने कोर्ट के स्टाफ से वकील के खिलाफ केस दर्ज कराने को कहा। पुलिस ने भी विवेचना के बाद माना कि वकील ने श्योरिटी के तौर पर जमा कराए दस्तावेज को हेराफेरी करके तैयार किया था। पुलिस और प्रासीक्यूशन का कहना था कि वकील ने फर्जी दस्तावेज देकर अदालत को बेवकूफ बनाया है। सारिका नारायण को जब लगा कि वो कानून के फंदे में फंसती जा रही हैं और लोअर कोर्ट का रवैया बेहद तल्ख दिख रहा है तो वो हाईकोर्ट चली गईं।
बाम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के जस्टिस अनिल एस किलोर और जस्टिस प्रवीन पाटिल ने उनके केस की सुनवाई की। बेंच का कहना था कि ऐसा कोई दावा नहीं है कि वकील ने खुद फर्जी दस्तावेज बनाए हैं या उसने जमानत देने वाले व्यक्ति के साथ मिलकर फर्जी दस्तावेज तैयार किए हैं। बेंच ने माना कि एक वकील जिस तरह से काम करता है, उस पर मुवक्किल का सीधे तौर पर काफी ज्यादा नियंत्रण होता है।
बेंच ने ये भी कहा कि वकील अदालत में मुवक्किल का प्रतिनिधित्व करता है और उसकी पैरवी करता है। वह अदालत और मुवक्किल के बीच की एकमात्र कड़ी है। उससे अपेक्षा की जाती है कि वह अपने मुवक्किल के निर्देशों का पालन करे न कि अपने फैसले को बदले। नागपुर बेंच ने आखिर में कहा कि प्रासीक्यूशन पक्ष का यह मामला नहीं है कि लेडी एडवोकेट ने ऐसा कोई फर्जी प्रमाण पत्र तैयार किया है या वह मुवक्किल के साथ इस तरह के कृत्य में शामिल है जिसने रिसीट को तैयार किया है।
अदालत और अपने मुवक्किल के प्रति वकील की भूमिका को देखते हुए हमारा मत है कि इस मामले में मुवक्किल के कहने पर ही वकील ने गलत दस्तावेज कोर्ट में जमा करवाया। इसमें उसकी गलती ना के बराबर थी। पूरी स्थिति को देखने के बाद हाईकोर्ट ने माना कि वकील के खिलाफ कोई केस नहीं बनता। इसलिए, उसने उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया और केस को खत्म कर दिया।