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दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। आजादी के 10 साल बाद एक फिल्म आई जिसने लोगों की आंखों को नम कर दिया। एक सूदखोरों के चंगुल में फंसे परिवार की लाचारी को देखकर लोग स्तब्ध रह गए। उस दौर में महाजनी का जोर था। गांव के गरीब लाचार लोग महाजनों से सूद पर रकम लेते थे। समय पर पैसा न दे पाओ तो महाजन के गुंडे सबकुछ छीन ले जाते थे। इस फिल्म को आए लगभग 70 साल बीत चुके हैं पर हालात जस के तस हैं।
महाजनों का स्थान बैंकों ने लिया
अंतर केवल इतना है कि महाजनों की जगह अब बैंकों ने ले रखी है। जो काम बीते दौर में महाजन करते थे वो अब बैंक कर रहे हैं। पहले लोन देने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाते हैं और फिर किश्त न मिले तो गुंडे घर पर भेजकर जोर आजमाते हैं। सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया बैंकों को इसके लिए कई दफा फटकार लगा चुका है पर उनके कानों पर जूं भी नहीं रेंगी। ये बात हम नहीं कह रहे हैं बल्कि वो रिपोर्ट बता रही है जिसमें दर्ज है कि किस तरह से रिकवरी एजेंट्स (गुंडों की टीम) को पालने के लिए बैंक करोड़ों खर्च रहे हैं।
कमजोर पर जोर, पूंजीपतियों को माफी
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट बताती है कि कैसे बैंक वसूली के मामले में बैंकों को भी पीछे छोड़ते जा रहे हैं। ये जानकारी RTI के जरिये जुटाई गई है। पहले बैंक ऑफ महाराष्ट्र की बात करते हैं। ये बैंक रिकवरी एजेंटों पर साल 2019-20 में 14.26 करोड़ खर्च करता था। 2023-24 में ये बजट बढ़कर 31.08 करोड़ रुपये हो गया है। ये सारा पैसा ऐसे लोगों को हायर करने में खर्चा जा रहा है जिनकी लोगों में धमक है। रिकवरी एजेंसियों की संख्या 2022-23 में 476 थी जो 2023-24 में बढ़कर 547 हो गई।
रिकवरी एजेंट्स की संख्या में वृद्धि
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की बात करें तो इनकी मैनेजमेंट रिकवरी एजेंट्स पर 2019-20 में 2.42 करोड़ रुपये खर्च कर रही थी। जो 2023-24 में बढ़कर 5.87 करोड़ रुपये हो गई। रिकवरी एजेंसियों की संख्या 2019-20 में 184 थी जो 2023-24 में 279 तक पहुंच गई। इंडियन बैंक ने रिकवरी एजेंटों पर भारी भरकम रकम खर्च कर रहा है। 2021-22 में ये आंकड़ा 33.20 करोड़ रुपये था जबकि 2023-24 में ये बढ़कर 68.74 करोड़ रुपये हो गया। रिकवरी एजेंसियों की संख्या 2021-22 में 867 थी, 2023-24 में ये बढ़कर 934 तक पहुंच गई।
एजेंट्स पर 57.95 करोड़ रुपये खर्चे
पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) ने साल 2021-22 के दौरान ऐसे एजेंट्स पर 57.95 करोड़ रुपये खर्चे थे। ये रकम 2022-23 में बढ़कर 81.57 करोड़ रुपये हो चुकी है। रिकवरी एजेंसियों की संख्या भी 787 तक पहुंच चुकी है।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट कहती है कि बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, केनरा बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, पंजाब एंड सिंध बैंक, भारतीय स्टेट बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, यूको बैंक ने इस तरह की जानकारी साझा करने से इन्कार कर दिया। खास बात है कि ये भारीभरकम रकम उन लोगों से वसूली के लिए खर्च की जा रही है जो कमजोर या लाचार हैं। महाजन स्टाइल में एजेंट्स इनके घरों पर जाकर जोर आजमाइश करते दिखते हैं।
पूंजीपतियों पर रहम
तस्वीर का दूसरा पहलू देखें तो हालात दिल को झकझोरने वाले हैं। बड़े बड़े पूंजीपति धंधा शुरू करने या उसे बढ़ाने के नाम पर करोड़ों का लोन लेते हैं। इनमें से कई रकम को चुका नहीं पाते तो वो देश छोड़कर भाग जाते हैं। विजय माल्या, मेहुल चोकसी और नीरव मोदी इस फेहरिस्त के बड़े नाम हैं। दूसरे धंधेबाज ऐसे हैं जिनका सरकार में तगड़ा दखल होता है। वो सरकार पर दबाव डालकर अपने लोन राइट आफ करा लेते हैं। राहुल गांधी अक्सर चीखते देखे जाते हैं कि अडानी और ... का लोन सरकार ने माफ कर दिया। हालांकि सरकार ने कभी उनके आरोपों का जवाब खुलकर नहीं दिया।
12.08 लाख करोड़ कर्ज राइट-ऑफ किया
लेकिन संसद में पेश एक रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2015-16 से अब तक देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने लगभग 12.08 लाख करोड़ रुपयों के कर्ज को राइट-ऑफ कर दिया है। यह जानकारी वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने 22 जुलाई को राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में दी। उन्होंने बताया कि जब कोई कर्ज चार साल से ज्यादा समय तक नहीं चुकाया जाता, और उस पर पूरी प्रोविजनिंग कर ली जाती है तो भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों के मुताबिक उसे खातों से हटाकर राइट-ऑफ कर दिया जाता है। अमूमन ऐसी रकम वापस लौटकर नहीं आ पाती। इस फेहरिस्त में ज्यादातर ऐसे उद्योगपति शामिल हैं जो सरकार तक पहुंच रखते हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या ऐसे लोगों के पास रिकवरी एजेंट भेजे जाते हैं? bank charges | Banking Sector News | loan recovery harassment | bank goons issue