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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। मालेगांव ब्लास्ट पर स्पेशल कोर्ट के फैसले के बाद एक नाम तेजी से ट्रेंड करने लग गया। ये था महबूब मुजावर। ये एंटी टेरेरिस्ट स्कवायड के पूर्व अधिकारी हैं। उनका कहना है कि मालेगांव ब्लास्ट के बाद एक सीनियर अफसर ने उनसे कहा था- जाओ मोहन भागवत को अरेस्ट करो। मुजावर के इस खुलासे के बाद तुरंत दूसरा नाम भी ट्रेंड में आ गया। ये नाम था परमवीर सिंह का। एक ऐसी शख्सियत जो हमेशा विवादों में रही। परमवीर सिंह को सेवानिवृत्त हुए तीन साल हो गए हैं, लेकिन वे फिर से चर्चा में हैं।
मुजावर अकेले नहीं थे जिन्होंने मालेगांव फैसले के बाद परमवीर पर आरोप जड़े। एक और विस्फोटक जानकारी तब सामने आई जब 39 गवाहों में से एक मिलिंद जोशीराव ने अदालत को बताया कि तत्कालीन एसीपी ने उन्हें प्रताड़ित करके उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य आरएसएस पदाधिकारियों का नाम लेने के लिए मजबूर किया था। जिस अफसर की तरफ वो इशारा कर रहे थे वो थे परमवीर सिंह।
जानते हैं कि कौन हैं परमवीर?
1964 में चंडीगढ़ में जन्मे परमवीर ने 1988 में भारतीय पुलिस सेवा में शामिल होने से पहले 1983 में पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि ली। आईपीएस बनने के बाद उन्होंने महाराष्ट्र के अहम पदों पर काम किया- जैसे ठाणे के पुलिस आयुक्त, चंद्रपुर और भंडारा के माओवादी क्षेत्र में पुलिस अधीक्षक, मुंबई में पुलिस उपायुक्त (जांच), मुंबई में उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में अतिरिक्त पुलिस आयुक्त, आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) में अतिरिक्त पुलिस आयुक्त, मुंबई के आयुक्त और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून और व्यवस्था)। परमवीर सिंह जून 2022 में रिटायर्ड हुए थे। अभी वो मुंबई के जानेमाने लीलावती अस्पताल के कार्यकारी निदेशक हैं।
एंटीलिया कांड ने बनाया फरार घोषित अपराधी परमवीर 2010 के दशक के अंत तक कई हाई-प्रोफाइल मामलों के साथ एक जाने-माने पुलिस अधिकारी बन चुके थे। लेकिन 2021 में राज्य सरकार के साथ उनके टकराव ने उन्हें सुर्खियों में बनाए रखा। यह मामला दक्षिण मुंबई के कारमाइकल रोड पर 20 जिलेटिन की छड़ों से लदी एक एसयूवी से जुड़ा था, जो व्यवसायी मुकेश अंबानी के आवास के पास खड़ी थी। वो उस समय मुंबई के कमिश्नर थे। ठीक एक साल पहले फरवरी 2020 में उनको मुंबई का आयुक्त बनाया गया था। उन्होंने मार्च 2021 तक यह पद संभाला। बाद में उनको महाराष्ट्र के तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख ने एंटीलिया मामले की वजह से होमगार्ड विंग में स्थानांतरित कर दिया।
सरकार के इस फैसले से भड़क गए थे परमबीर सिंह
परमवीर सरकार के इस फैसले से भड़क गए। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर देशमुख पर आरोप लगाया कि उन्होंने बर्खास्त एपीआई सचिन वाझे समेत पुलिस के दूसरे अधिकारियों से मुंबई के 1,750 बार और रेस्टोरेंट से हर महीने 40-50 करोड़ रुपये सहित 100 करोड़ रुपये वसूलने को कहा था। एनकाउंटर स्पेश्लिस्ट वाझे उस समय एंटीलिया कांड और मनसुख हिरेन की हत्या के मामले में एनआईए की हिरासत में था। हिरेन की कार अंबानी के घर के बाहर मिली थी, जिसे उन्होंने पिछले हफ्ते चोरी होने की सूचना दी थी। एक हफ्ते बाद मुंबई की एक खाड़ी में हिरेन की लाश मिली थी। तभी वाझे को पकड़ा गया था।
चिट्ठी ने किसी बम धमाके जैसा काम किया
परमवीर सिंह की चिट्ठी ने किसी बम धमाके जैसा काम किया। 2021 में ईडी ने अनिल देशमुख के खिलाफ मनी लांड्रिंग का मामला दर्ज किया। फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे को लिखे गए पत्र के तुरंत बाद परमवीर सिंह के खिलाफ वसूली की शिकायतें सामने आने लगीं। पुलिस उनको अरेस्ट कर पाती कि वो लापता हो गए। नवंबर 2021 में मुंबई की एक मजिस्ट्रेट अदालत ने जबरन वसूली के एक मामले में परमवीर सिंह को अपराधी घोषित किया - जो मुंबई के किसी पुलिस कमिश्नर के लिए पहली बार था। अदालत ने सिंह को जबरन वसूली के मामले में फरार आरोपी भी घोषित किया, क्योंकि मुंबई के पुलिस आयुक्त के पद से हटाए जाने के बाद से वह जनता की नजरों से ओझल हो गए थे।
वो सामने तब आए जब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की। इस आदेश के दो दिन बाद ही वह फिर से अदालत में पेश हुए। हालांकि, उन्हें दिसंबर 2021 में अनुशासनहीनता और अन्य अनियमितताओं के लिए निलंबित कर दिया गया। 2023 में तत्कालीन एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने परमवीर सिंह के खिलाफ सभी आरोप हटा दिए। दिसंबर 2021 का उनका निलंबन आदेश रद्द कर दिया।
मालेगांव ब्लास्ट के बाद पहली बार सुर्खियों में आए
पहली बार परमबीर सिंह भाजपा सदस्य प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित की गिरफ्तारी को लेकर सुर्खियों में आए थे। उस दौरान वो महाराष्ट्र एटीएस में एसीपी थे। लेकिन उसके बाद का दौर जैसे उनका ही था। साल दर साल वो किसी न किसी बहाने से मीडिया में छाए रहे। बात चाहें अर्नब गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी से जुड़ा टीआरपी घोटाला हो या फिर अन्वय नाइक की आत्महत्या का मामला। ये एक इंटीरियर डिजाइनर की मौत था। परमवीर सिंह ने एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत के हाई-प्रोफाइल मामले की भी जांच की। उस दौरान वो मीडिया में छाए रहे। विपक्ष उन पर सुशांत की मैनेजर दिशा सान्याल की मौत को लेकर हमलावर था। आरोप था कि उन्होंने ये मामला पूरी तरह से दबा दिया।
परमवीर सिंह और आतंकी अजमल कसाब
अतिरिक्त पुलिस आयुक्त के रूप में परमवीर सिंह ने 26/11 के मुंबई हमलों के दौरान ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल में आतंकवादियों का मुकाबला किया था। वह तत्कालीन एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे के साथ काम कर रहे थे, जिन्होंने 2008 के मालेगांव विस्फोटों की जांच का नेतृत्व किया था। वो मुंबई हमलों के दौरान ड्यूटी के दौरान शहीद हो गए थे। 26/11 हमलों के बाद उनके खिलाफ एक गंभीर आरोप सामने आया। जिस समय परमवीर सिंह पर जबरन वसूली के कई मामलों में जांच चल रही थी, उसी समय सेवानिवृत्त सहायक पुलिस आयुक्त शमशेर खान पठान ने आरोप लगाया था कि परमवीर ने 26/11 के आतंकवादी हमले के दोषी मोहम्मद अजमल कसाब से जब्त किया गया एक मोबाइल फोन डिस्ट्राय कर दिया था। पठान के मुताबिक वह फोन एक अहम सबूत था। उसे मामले के जांच अधिकारी रमेश महाले को सौंप दिया जाना चाहिए था। ठाणे कमिश्नर रहते हुए वो तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने दाऊद के भाई पर शिंकजा कसा।
अब वो फिर से सुर्खियों में हैं। महबूब मुजावर और मिलिंद जोशीराव के आरोपों ने उन्हें फिर से लाइमलाइट में ला दिया है। देखना होगा कि इन आरोपों को सरकार कितनी संजीदगी से लेती है। इसमें कोई दोराय नहीं कि सरकार ने शिकंजा कसा तो परमवीर लंबे समय तक हाट इश्यू बन जाएंगे। Malegaon Blast | Malegaon Blast Case | Malegaon blast accused releas | malegaon blast case story | Malegaon blast case 2008 | malegaon blast case news | Court Verdict Malegaon