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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क।देश की सर्वोच्च अदालत ने एक महत्वपूर्ण मामले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि अगर किसी व्यक्ति पर नाबालिग लड़की के गुप्तांगों को छूने का आरोप है, तो दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न के मामले में उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखना संभव नहीं है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने की है। पीठ ने अपीलकर्ता की सजा को संशोधित करने का निर्णय लिया तथा उसकी सजा को 20 वर्ष के कठोर कारावास से घटाकर सात वर्ष की जेल अवधि कर दिया।
पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत दोष सिद्धि संभव नहीं
कानून संबंधी न्यूज पोर्टल लाइव लॉ के अनुसार, पीठ ने कहा कि तीनों बयानों को पढ़ने से, जिनमें समानता है, सीधा आरोप पीड़िता के निजी अंगों को छूने का है और साथ ही अपीलकर्ता द्वारा उसके निजी अंगों को छूने का भी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "इस मामले को देखते हुए, हम पाते हैं कि आईपीसी की धारा 376 एबी और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत दर्ज दोषसिद्धि को बरकरार नहीं रखा जा सकता है।"
अपीलकर्ता की सजा को कोर्ट ने बदला
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, "हम अपीलकर्ता की दोषसिद्धि को भारतीय दंड संहिता की धारा 354 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत संशोधित करते हैं। अपीलकर्ता की सज़ा भी संशोधित होकर आईपीसी की धारा 354 के तहत पांच साल और पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत सात साल के कठोर कारावास में बदल दी गई है। हालांकि, ये सजाएं साथ-साथ चलेंगी। पीठ ने कहा कि निचली अदालत की यह धारणा, जिसे उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा था कि यौन उत्पीड़न हुआ था, इस साधारण कारण से कायम नहीं रह सकती कि न तो मेडिकल रिपोर्ट और न ही पीड़िता द्वारा तीन अलग-अलग मौकों पर दिए गए बयान तथा पीड़िता की मां के बयान से इसकी पुष्टि होती है।
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ की गई थी अपील
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के 2024 के फैसले के खिलाफ अपील पर यह आदेश पारित किया, जिसमें ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि की गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सीधा आरोप पीड़िता के निजी अंगों को छूने का था और साथ ही आरोपी ने अपने निजी अंगों को भी छुआ था। अपीलकर्ता के वकील ने लड़की के बयान का हवाला देते हुए तर्क दिया कि पीड़िता के साथ वास्तव में दुष्कर्म नहीं हुआ है।
वकील ने इस बात पर जोर दिया कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 भी लागू नहीं होगी, क्योंकि इसमें कोई यौन उत्पीड़न नहीं हुआ था। हालांकि, राज्य सरकार के वकील ने तर्क दिया कि अदालत को अपीलकर्ता के प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखानी चाहिए, क्योंकि उसने 12 साल की लड़की के साथ अपराध किया है। supreme court | supreme court cbse | court decision
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