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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क।बिहार की एसआईआर को लेकर चल रही सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कोई दखल देने से इनकार कर दिया है। अदालत का कहना है कि वोटर लिस्ट से किसी को बाहर निकालना या उसमें किसी को शामिल करना चुनाव आयोग का अधिकार है। वो ऐसा कर सकता है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने ये भी कहा कि आधार को नागरिकता को प्रमाणित करने वाला दस्तावेज नहीं माना जा सकता है। अदालत इस दलील से भी सहमत नहीं थी कि एसआईआर के दौरान बिहार के लोगों के पास चुनाव आयोग की तरफ से प्रमाण के तौर पर मांगे गए अधिकांश दस्तावेज नहीं हैं। जस्टिस कांत ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की- यह विश्वास की कमी का मामला है, बस इतना ही।
बोला- आधार नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं
चुनाव आयोग को उस समय बड़ी राहत मिली होगी जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं माना जा सकता। हालांकि ये बात और है कि चुनाव आयोग पहले से ही उस बात को दोहराता आ रहा था जो आज सुप्रीम कोर्ट ने कही। ये सुप्रीम कोर्ट ही था जिसने 28 जुलाई को हुई सुनवाई के दौरान फरमान जारी किया था कि मतदाता विशेष पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया के दौरान आधार के साथ राशन कार्ड को उन 11 दस्तावेजों में शामिल किया जाए जिनके जरिये चुनाव आयोग बिहार की वोटर लिस्ट को बदलने जा रहा है।
क्या चुनाव आयोग के पास SIR का अधिकार
जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने बिहार एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एडवोकेट कपिल सिब्बल से कहा- चुनाव आयोग का यह कहना सही है कि आधार को नागरिकता के निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसका सत्यापन किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि सबसे पहले यह तय किया जाना चाहिए कि क्या चुनाव आयोग के पास एसआईआर करने का अधिकार है। जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की- अगर उनके पास यह अधिकार नहीं है, तो सब कुछ खत्म हो जाता है। लेकिन अगर उनके पास यह अधिकार है तो कोई समस्या नहीं हो सकती।"
आयोग ने कहा, कोई सर्वेक्षण नहीं कराया
सिब्बल ने तर्क दिया कि चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया से बड़े पैमाने पर वो मतदाता जो जरूरी फॉर्म जमा नहीं कर पा रहे हैं, बाहर हो जाएंगे। उन्होंने दावा किया कि 2003 की मतदाता सूची में शामिल मतदाताओं को भी नए फॉर्म भरने होंगे। ऐसा न करने पर निवास स्थान में कोई बदलाव न होने के बावजूद नाम हटा दिए जाएंगे। सिब्बल के अनुसार चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि 7.24 करोड़ लोगों ने फॉर्म जमा किए थे, फिर भी लगभग 65 लाख लोगों के नाम बिना किसी उचित जांच के बाहर कर दिए गए। उन्होंने बेंच से कहा- आयोग ने अपने हलफनामे में स्वीकार किया है कि उन्होंने कोई सर्वेक्षण नहीं कराया था।
अदालत का सवाल, 65 लाख का आंकड़ा कैसे आया
अदालत ने सवाल किया कि 65 लाख का आंकड़ा कैसे निकाला गया। क्या इस आशंका के पीछे कोई तथ्य था या फिर कोरे अनुमान। बेंच ने कहा- हम यह समझना चाहते हैं कि आपकी आशंका काल्पनिक है या वास्तविक। सिब्बल ने दावा किया कि 2025 की सूची में 7.9 करोड़ मतदाता थे, जिनमें से 4.9 करोड़ 2003 की सूची में थे और 22 लाख मृत। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने मृत्यु या निवास परिवर्तन के कारण बाहर किए गए मतदाताओं की सूची का खुलासा न तो अदालती दस्तावेजों में और न ही अपनी वेबसाइट पर किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई मतदाता आधार और राशन कार्ड के साथ फॉर्म जमा करता है तो चुनाव आयोग विवरणों की पुष्टि करने के लिए बाध्य है। Bihar SIR Case | supreme court | SIR Supreme Court Hearing | election commission | Parliament to Election Commission march | Bihar politics 2025