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क्या वर्षावन घट रहे हैं? इसका जवाब है हां, भारत में वर्षावन तेजी से घट रहे हैं। जो गंभीर चिंता का विषय है। वनों की कटाई, खनन, शहरीकरण, और कृषि विस्तार जैसे मानवीय गतिविधियों के कारण वर्षावनों का क्षेत्रफल कम हो रहा है। पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश ने वर्ष 2000 से 2020 के बीच दो दशकों में लाखों हेक्टेयर वन क्षेत्र खो दिया है। खासतौर पर पश्चिमी घाट में अवैध लकड़ी कटाई और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं ने जैव विविधता को खतरे में डाला है। विश्व वर्षावन दिवस, जो प्रत्येक वर्ष 22 जून को मनाया जाता है, वर्षावनों के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनके संरक्षण को प्रोत्साहित करने का एक वैश्विक मंच है। यह दिवस 2017 में रेनफॉरेस्ट पार्टनरशिप द्वारा शुरू किया गया था, ताकि वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान जैसे मुद्दों पर ध्यान आकर्षित किया जाए।
खनन गतिविधियों से वर्षावनों को नुकसान
पूर्वोत्तर भारत में झूम खेती और खनन गतिविधियां वर्षावनों को नुकसान पहुंचा रही हैं। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन ने वर्षा पैटर्न को प्रभावित किया है, जिससे वर्षावनों का पारिस्थितिक(इकोसिस्टम) संतुलन बिगड़ रहा है। अंडमान और निकोबार में पर्यटन और अवैध गतिविधियों ने भी वनों को प्रभावित किया है। भारत में वर्षावन मुख्य रूप से पश्चिमी घाट, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, और पूर्वोत्तर भारत असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश)में पाए जाते हैं।
पश्चिमी घाट, देश का प्रमुख जैव विविधता हॉटस्पॉट
पश्चिमी घाट, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, देश का सबसे प्रमुख जैव विविधता हॉटस्पॉट है। यहां 5,000 से अधिक फूलों की प्रजातियां, 139 स्तनपायी, 508 पक्षी, और 179 उभयचर प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से कई विश्व में कहीं और नहीं मिलतीं। हिमालय के चिपको आंदोलन की तरह कर्नाटक के पश्चिमी घाट में अप्पिको आंदोलन मशहूर हुआ। वनों की कटाई के खिलाफ यह आंदोलन काफी हद तक सफल रहा है। पूर्वोत्तर भारत के वर्षावन, जैसे मेघालय के मॉसिनराम और चेरापूंजी के जंगल, अत्यधिक वर्षा के लिए प्रसिद्ध हैं और विविध वनस्पतियों और जीवों का घर हैं। अंडमान और निकोबार के वर्षावन भी समुद्री और स्थलीय जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण हैं।
जैव-विविध पारिस्थितिक तंत्र
वर्षावन पृथ्वी के सबसे जैव-विविध पारिस्थितिक तंत्र हैं, जो लाखों प्रजातियों का घर हैं और ऑक्सीजन उत्पादन, कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषण, जलवायु नियमन, और स्वदेशी समुदायों के लिए आजीविका प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये जंगल कॉफी, मसाले, और औषधीय पौधों जैसे संसाधनों का स्रोत भी हैं। विश्व वर्षावन दिवस लोगों को वनों की कटाई और अवैध लकड़ी कटाई जैसे खतरों से अवगत कराता है और संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयासों को प्रेरित करता है।
संरक्षण के प्रयास, लेकिन काफी कम
भारत सरकार ने राष्ट्रीय उद्यानों, जैव संरक्षित क्षेत्रों, और वन्यजीव अभयारण्यों की स्थापना की है, जैसे पश्चिमी घाट में साइलेंट वैली और पूर्वोत्तर में नमदफा राष्ट्रीय उद्यान। सामुदायिक पहल और गैर-सरकारी संगठनों के प्रयासों ने भी वनों के संरक्षण में योगदान दिया है। विश्व वर्षावन दिवस जैसे आयोजन जागरूकता बढ़ाने और पुनर्वनीकरण जैसे कदमों को प्रोत्साहित करते हैं। फिर भी, प्रभावी नीतियों, सख्त कानून प्रवर्तन, और स्थानीय समुदायों की भागीदारी की आवश्यकता है।
विश्व वर्षावन दिवस हमें वर्षावनों की अनमोल विरासत को बचाने की याद दिलाता है। भारत में वर्षावनों की स्थिति चिंताजनक है, लेकिन संरक्षण के प्रयास और जागरूकता से इनका भविष्य सुरक्षित किया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को पेड़ लगाने, प्लास्टिक उपयोग कम करने, और पर्यावरणीय शिक्षा को बढ़ावा देने जैसे छोटे कदम उठाने चाहिए।2021 से 2023 तक, वार्षिक विश्व वर्षावन दिवस शिखर सम्मेलन, 105 सहयोगी संगठनों द्वारा समन्वित और 77 देशों के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए, लचीले वन संरक्षण को आगे बढ़ाने के लिए ज्ञान के आदान-प्रदान और सामुदायिक निर्माण की सुविधा प्रदान करता है। 2024 में, विश्व वर्षावन दिवस प्रतिज्ञा कार्यक्रम की शुरुआत का उद्देश्य वनों की कटाई से निपटने और पर्यावरण क्षरण को संबोधित करने के लिए सभी क्षेत्रों में तत्काल कार्रवाई को बढ़ावा देना है।
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