/young-bharat-news/media/media_files/2025/05/06/5zhOdVwDdCrfFK4rZ1aN.jpg)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । पाकिस्तान का हवाई क्षेत्र, जो कभी दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण हवाई गलियारा हुआ करता था, अब अंतरराष्ट्रीय एयरलाइंस के लिए एक 'नो-गो ज़ोन' बनता जा रहा है। हाल के वर्षों में, कई प्रमुख वैश्विक एयरलाइंस जैसे ब्रिटिश एयरवेज, लुफ्थांसा, और क्वांटास ने पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र से परहेज करना शुरू कर दिया है।
यह बदलाव न केवल यात्रियों के लिए उड़ान समय और लागत को प्रभावित कर रहा है, बल्कि क्षेत्रीय भू-राजनीति और सुरक्षा चिंताओं पर भी गहरे सवाल उठा रहा है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान का हवाई क्षेत्र, जो पहले व्यस्त और भरोसेमंद माना जाता था, अब एयरलाइंस की प्राथमिकता सूची से बाहर हो गया है? आइए, इस मुद्दे को आंकड़ों और तथ्यों के साथ समझते हैं।
1. सुरक्षा चिंताओं का बढ़ता बोझ
पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र से परहेज का सबसे बड़ा कारण सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं हैं। हाल के वर्षों में, पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों और अस्थिर राजनीतिक माहौल ने अंतरराष्ट्रीय एयरलाइंस को सतर्क कर दिया है। 2019 में, भारत और पाकिस्तान के बीच बालाकोट हवाई हमले के बाद, पाकिस्तान ने अपने हवाई क्षेत्र को कई महीनों के लिए बंद कर दिया था। इस दौरान, वैश्विक एयरलाइंस को अपने रूट्स बदलने पड़े, जिसके कारण उड़ानों की अवधि में औसतन 30-45 मिनट की वृद्धि हुई और ईंधन लागत में 15-20% की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
आंकड़ों के अनुसार, 2019 के हवाई क्षेत्र बंद होने के दौरान, लगभग 400 उड़ानों को रोजाना वैकल्पिक रास्तों से गुजरना पड़ा। इनमें से अधिकांश उड़ानें यूरोप और दक्षिण-पूर्व एशिया को जोड़ने वाली थीं। इस घटना ने एयरलाइंस को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र का उपयोग करना दीर्घकालिक रूप से सुरक्षित और व्यवहारिक है।
2. भू-राजनीतिक तनाव और विश्वास की कमी
पाकिस्तान और उसके पड़ोसी देशों, खासकर भारत और अफगानिस्तान, के बीच तनावपूर्ण संबंधों ने भी इस स्थिति को जटिल बनाया है। अंतरराष्ट्रीय उड्डयन संगठन (ICAO) के आंकड़ों के मुताबिक, 2023 तक, पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र का उपयोग करने वाली उड़ानों की संख्या में 2018 की तुलना में 35% की कमी आई है। यह कमी केवल सुरक्षा चिंताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें भू-राजनीतिक अनिश्चितताएँ भी शामिल हैं।
उदाहरण के लिए, जब 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया, तो कई एयरलाइंस ने पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र के बजाय ईरान या मध्य एशियाई देशों के हवाई क्षेत्र को प्राथमिकता दी। इसका कारण था अफगान-पाक सीमा पर बढ़ती अस्थिरता और मिसाइल हमलों की आशंका। इसके परिणामस्वरूप, यूरोप से दक्षिण-पूर्व एशिया की उड़ानों की लागत में औसतन 10-12% की वृद्धि हुई।
3. आर्थिक प्रभाव और वैकल्पिक रास्तों का उदय
पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र से परहेज करने का एक और महत्वपूर्ण पहलू आर्थिक है। जब एयरलाइंस लंबे रास्तों का चयन करती हैं, तो उनकी ईंधन लागत बढ़ती है, जिसका बोझ अंततः यात्रियों पर पड़ता है। एक अनुमान के अनुसार, पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र से बचने वाली उड़ानों की लागत में प्रति उड़ान 5,000 से 10,000 अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त वृद्धि होती है। यह लागत छोटी एयरलाइंस के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है।
हालांकि, वैकल्पिक रास्तों ने इस कमी को कुछ हद तक पूरा किया है। ईरान, ओमान, और मध्य एशियाई देशों जैसे तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के हवाई क्षेत्र अब अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं। 2024 के आंकड़ों के अनुसार, ईरान के हवाई क्षेत्र का उपयोग करने वाली उड़ानों की संख्या में 25% की वृद्धि हुई है, जबकि ओमान के हवाई क्षेत्र ने 18% अधिक ट्रैफिक देखा है। यह बदलाव पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि इससे पाकिस्तान को मिलने वाला ओवरफ्लाई शुल्क (जो प्रति उड़ान 500-1,000 डॉलर के बीच होता है) काफी कम हो गया है।
4. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र से उड़ानों की कमी का सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। सिविल एविएशन अथॉरिटी ऑफ पाकिस्तान (CAA) के अनुसार, 2023 में ओवरफ्लाई शुल्क से होने वाली आय में 40% की कमी दर्ज की गई। यह राशि पहले सालाना 100 मिलियन डॉलर से अधिक थी, जो अब घटकर लगभग 60 मिलियन डॉलर रह गई है। यह कमी पाकिस्तान जैसे देश के लिए, जो पहले से ही आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, एक बड़ा नुकसान है।
इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय एयरलाइंस का पाकिस्तानी हवाई अड्डों पर कम रुकना भी पर्यटन और स्थानीय व्यापार को प्रभावित कर रहा है। कराची और इस्लामाबाद जैसे हवाई अड्डों पर अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की संख्या में 20% की कमी आई है, जिससे हवाई अड्डों से जुड़े व्यवसायों को भी नुकसान हुआ है।
5. यात्रियों पर क्या असर पड़ रहा है?
पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र से परहेज का सबसे प्रत्यक्ष प्रभाव यात्रियों पर पड़ रहा है। लंबे रास्तों के कारण उड़ान का समय बढ़ गया है, जिससे यात्रियों को अधिक समय और पैसा खर्च करना पड़ रहा है। उदाहरण के लिए, लंदन से बैंकॉक की उड़ान, जो पहले 11 घंटे में पूरी होती थी, अब 12-13 घंटे ले रही है। इसके साथ ही, टिकट की कीमतों में भी 8-15% की वृद्धि देखी गई है।
इसके अलावा, लंबी उड़ानें पर्यावरण पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं। अधिक ईंधन खपत के कारण कार्बन उत्सर्जन में 10-12% की वृद्धि हुई है, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक प्रयासों के लिए एक चुनौती है।
6. भविष्य में क्या हो सकता है?
पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि देश अपनी सुरक्षा और भू-राजनीतिक छवि को कैसे सुधारता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि पाकिस्तान क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने और आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाता है, तो अंतरराष्ट्रीय एयरलाइंस का विश्वास फिर से जीता जा सकता है। हालांकि, यह एक लंबी प्रक्रिया होगी, क्योंकि वैश्विक उड्डयन उद्योग में विश्वास और सुरक्षा सर्वोपरि हैं।
वहीं, वैकल्पिक हवाई गलियारों का बढ़ता उपयोग भी पाकिस्तान के लिए एक दीर्घकालिक चुनौती है। यदि ईरान और मध्य एशियाई देश अपने हवाई क्षेत्र को और अधिक विश्वसनीय और लागत प्रभावी बनाते हैं, तो पाकिस्तान का हवाई क्षेत्र और भी पीछे छूट सकता है।
पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र से अंतरराष्ट्रीय एयरलाइंस का परहेज एक जटिल मुद्दा है, जिसमें सुरक्षा, भू-राजनीति, और अर्थव्यवस्था के कई पहलू शामिल हैं। यह स्थिति न केवल पाकिस्तान के लिए, बल्कि वैश्विक उड्डयन उद्योग और यात्रियों के लिए भी महत्वपूर्ण है। क्या पाकिस्तान अपने हवाई क्षेत्र को फिर से एक भरोसेमंद गलियारा बना पाएगा, या यह क्षेत्रीय उड्डयन नक्शे से धीरे-धीरे गायब हो जाएगा? यह सवाल समय के साथ ही जवाब देगा।
Pakistan airspace ban | breaking news india pakistan | Current Affairs India Pakistan | India Pakistan border | India Pakistan conflict | india pakistan latest tension | India Pakistan News | India Pakistan Nuclear War |