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अब बिलबिला रहे पाकिस्तानी, मंडराया भूख-प्यास का संकट, कैसे बचाएंगे अपनी फसलें ?

इंडस वॉटर ट्रीटी रद्द होने का असर दिखने लगा है। पाकिस्तानी आवाम अपनी खेती को लेकर परेशान होने लगी है। क्योंकि, दुनिया जानती है कि उनकी पूरी अर्थव्यवस्था कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। पाकिस्तानी राजनेताओं और पाक आर्मी की करतूतों का फल आवाम को भुगतना पड़ेगा।

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Ajit Kumar Pandey
INDUS WATER TREETY, BHARAT, PAKISTAN, HINDI NEWS
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । इंडस वॉटर ट्रीटी रद्द होने का असर दिखने लगा है। पाकिस्तानी आवाम अपनी खेती को लेकर परेशान होने लगे हैं। क्योंकि दुनिया जानती है कि उनकी पूरी अर्थव्यवस्था कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। और कृषि को पानी भारत ही देता है। ऐसे में जल्द देखने ​को मिलेगा कि पाकिस्तानी राजनेताओं और पाक आर्मी की करतूतों का फल आवाम को भुगतना पड़ेगा। निश्चित तौर पर अब भुखमरी और पानी का संकट पैदा होने वाला है। 

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भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हस्ताक्षरित इंडस वाटर ट्रीटी (IWT) दशकों से दोनों देशों के बीच जल बंटवारे का आधार रही है। यह संधि सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों - रावी, ब्यास, सतलुज, झेलम, और चिनाब - के पानी के उपयोग को नियंत्रित करती है। हाल ही में भारत द्वारा इस संधि को निलंबित करने की घोषणा ने पाकिस्तान में खलबली मचा दी है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस निर्णय से पाकिस्तान में खरीफ सीजन के दौरान पानी की उपलब्धता में 21% तक की कमी आ सकती है, जिसका सीधा असर वहां के किसानों और कृषि क्षेत्र पर पड़ेगा।

इंडस वाटर ट्रीटी का महत्व

इंडस वाटर ट्रीटी के तहत, भारत को रावी, ब्यास और सतलुज नदियों का पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है, जबकि झेलम, चिनाब और सिंधु नदियों का पानी मुख्य रूप से पाकिस्तान के लिए आवंटित है। यह संधि दोनों देशों के बीच जल संसाधनों के उपयोग को सुनिश्चित करती है। विश्व बैंक की मध्यस्थता में बनी इस संधि ने दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद पानी के बंटवारे को संतुलित रखा। लेकिन भारत द्वारा संधि को निलंबित करने की घोषणा ने इस संतुलन को खतरे में डाल दिया है।

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पाकिस्तानी किसानों पर असर

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था काफी हद तक कृषि पर निर्भर है। सिंधु नदी प्रणाली वहां की खेती के लिए जीवन रेखा है, जो पंजाब और सिंध प्रांतों में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराती है। खरीफ सीजन, जो अप्रैल से सितंबर तक चलता है, धान, कपास, मक्का और गन्ने जैसी फसलों के लिए महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों के अनुसार, अगर पानी की आपूर्ति में 21% की कमी होती है, तो:

  • धान की पैदावार में 15-20% की कमी आ सकती है, जो पाकिस्तान के खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करेगा।
  • कपास उत्पादन में 18% की गिरावट संभव है, जिससे कपड़ा उद्योग पर असर पड़ेगा।
  • गन्ने की फसल को भी नुकसान होगा, जिससे चीनी उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
  • किसानों की आय में भारी कमी आएगी, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर संकट गहराएगा।
  • पाकिस्तान के कृषि मंत्रालय ने अनुमान लगाया है कि इस कमी से लगभग 50 लाख किसान परिवार प्रभावित होंगे, और ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी बढ़ सकती है।
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क्यों लिया गया निलंबन का फैसला?

भारत का यह निर्णय कई कारकों का परिणाम माना जा रहा है। दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव, आतंकवाद से संबंधित मुद्दे, और जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की बढ़ती मांग ने इस संधि को बार-बार विवादों में ला खड़ा किया है। भारत का कहना है कि वह अपने हिस्से के पानी का उपयोग पूरी तरह से करने का हक रखता है, खासकर जम्मू-कश्मीर में बांधों और जल परियोजनाओं के लिए। दूसरी ओर, पाकिस्तान का दावा है कि भारत का यह कदम संधि के नियमों का उल्लंघन है और इससे उसकी खेती और अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान होगा।

जलवायु परिवर्तन और पानी की कमी

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जलवायु परिवर्तन ने भी इस संकट को और गंभीर बना दिया है। हिमालयी ग्लेशियर, जो सिंधु नदी के लिए पानी का मुख्य स्रोत हैं, तेजी से पिघल रहे हैं। इससे नदी में पानी का प्रवाह अनिश्चित हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर दोनों देश मिलकर जल प्रबंधन पर काम नहीं करते, तो भविष्य में पानी की कमी और गंभीर हो सकती है। पाकिस्तान में पहले से ही सूखे और बाढ़ जैसी समस्याएं आम हैं, और इस निलंबन से स्थिति और बिगड़ सकती है।

पाकिस्तान की प्रतिक्रिया

पाकिस्तान ने इस निलंबन को "अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन" करार दिया है और विश्व बैंक से हस्तक्षेप की मांग की है। इसके अलावा, पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाने की योजना बनाई है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि कूटनीतिक समाधान निकालना आसान नहीं होगा, क्योंकि दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी है।

क्या हैं विकल्प?

पाकिस्तान के सामने अब सीमित विकल्प हैं। कुछ विशेषज्ञों का सुझाव है कि वह अपनी सिंचाई प्रणाली को और कुशल बनाए, जैसे कि ड्रिप इरिगेशन और रेनवाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा दे। इसके अलावा, जल संरक्षण और वैकल्पिक फसलों पर ध्यान देना भी जरूरी है। लेकिन इन उपायों को लागू करने में समय और संसाधनों की जरूरत होगी, जो तत्काल संकट का समाधान नहीं कर सकते।

भविष्य की आशंकाएं

अगर यह संकट अनसुलझा रहा, तो इसका असर न केवल पाकिस्तान की खेती पर पड़ेगा, बल्कि दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि पानी का मुद्दा भविष्य में दोनों देशों के बीच युद्ध का कारण भी बन सकता है। ऐसे में, दोनों देशों को कूटनीति और सहयोग के रास्ते पर चलना होगा।

इंडस वाटर ट्रीटी का निलंबन पाकिस्तानी किसानों के लिए एक बड़ा झटका है। खरीफ सीजन में 21% पानी की कमी न केवल उनकी आजीविका को प्रभावित करेगी, बल्कि पाकिस्तान की खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डालेगी। यह संकट दोनों देशों के लिए एक चेतावनी है कि जल संसाधनों के प्रबंधन में सहयोग जरूरी है। क्या भारत और पाकिस्तान इस मुद्दे पर कोई समाधान निकाल पाएंगे, या यह संकट और गहराएगा? यह सवाल हर किसी के मन में है।

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