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भारत रत्न Chaudhary Charan Singh: जानें- किसान मसीहा की विरासत का सच

चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि पर देश उन्हें किसानों के मसीहा, सादा जीवन और उच्च विचारों के प्रतीक रूप में याद कर रहा है। उनकी विरासत बेटे से पोते तक चली, लेकिन सवाल यही है – क्या हम उनके सपनों का भारत बना सके?

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Ajit Kumar Pandey
KISAN MASIHA CHARAN SINGH
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । एक ऐसा नेता, जिसने लाठी के जोर पर नहीं, किसानों की पीड़ा से देश का दिल जीता। जिसकी राजनीति का हर कदम गांव के आंगन से उठता था। सादा जीवन, उंचे विचार और अडिग नैतिकता की मिसाल थे चौधरी चरण सिंह। आज की राजनीति में जब मूल्यों की बात बेमानी लगती है, तब चरण सिंह की याद और भी ज्यादा बेचैन करती है। उनकी पुण्यतिथि सिर्फ श्रद्धांजलि नहीं, आत्ममंथन का दिन है – क्या हम उनके सपनों का भारत बना सके? 

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पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि पर आज 29 May 2025 पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। किसान हितों के अडिग प्रहरी, उन्होंने न सिर्फ सादा जीवन अपनाया, बल्कि अपने विचारों और संघर्षों से भारतीय राजनीति में एक अनूठी छाप छोड़ी। आज उनके पुत्र और पोते उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या हम आज भी उनके सपनों का भारत बना पाए हैं?

चौधरी चरण सिंह का जीवन – संघर्ष से समर्पण तक

चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को उत्तर प्रदेश के एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। प्रारंभ से ही शिक्षा के प्रति उनका रुझान था और उन्होंने कानून की पढ़ाई कर अपने करियर की शुरुआत वकील के रूप में की। लेकिन उनका मन ग्रामीण भारत की समस्याओं में रमा रहा। उन्होंने देखा कि कैसे अंग्रेजी शासन और जमींदारी व्यवस्था किसान की रीढ़ तोड़ रही है। यहीं से शुरू हुआ एक ऐसा सफर, जिसने उन्हें "किसानों का मसीहा" बना दिया।

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किसानों के लिए पहला संघर्ष – नीतियों में बदलाव की शुरुआत

उनकी राजनीति की शुरुआत ही किसानोन्मुख रही। उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति में रहते हुए जमींदारी उन्मूलन की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाए। "जमींदारी उन्मूलन अधिनियम" का निर्माण और क्रियान्वयन उनके जीवन का बड़ा फैसला था। उन्होंने हमेशा इस बात पर ज़ोर दिया कि यदि भारत को मजबूत बनाना है तो उसकी कृषि रीढ़ को मजबूत करना होगा।

प्रधानमंत्री पद और अधूरी विरासत का एहसास

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1979 में वे भारत के प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनका कार्यकाल बहुत छोटा रहा। राजनीतिक अस्थिरता और गठबंधन सरकारों की मजबूरी ने उन्हें लाचार किया। फिर भी, उन्होंने किसानों के लिए कर्ज माफी, न्यूनतम समर्थन मूल्य और कृषि व्यवस्था को लेकर दूरगामी फैसलों की नींव रखी। अफसोस कि उनका सपना अधूरा रह गया।

सादा जीवन और उच्च विचार – चरण सिंह की असल राजनीति

आज जब नेताओं की विलासिता पर सवाल उठते हैं, तब चरण सिंह का जीवन आदर्श की तरह सामने आता है। उनके पास न कोई कोठी थी, न कोई आलीशान कार। वे जीवन भर खादी पहनते रहे और राजनीति को जनसेवा मानते रहे। यही कारण है कि वे आज भी करोड़ों भारतीयों के दिल में जिंदा हैं।

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बेटे अजित सिंह से पोते जयंत तक – क्या विरासत सुरक्षित है?

चरण सिंह के पुत्र चौधरी अजित सिंह ने राजनीति में उनके नक्शे कदम पर चलने की कोशिश की, लेकिन बदलती राजनीति और जातीय समीकरणों के बीच वह प्रभाव नहीं बना सके। अब पोते जयंत चौधरी राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के नेता हैं और कोशिश कर रहे हैं कि दादा की विरासत को जन-जन तक पहुंचाएं।

हाल के चुनावों में जयंत का रुख किसान आंदोलन और सामाजिक न्याय की तरफ दिखा है – लेकिन क्या वे उस ऊंचाई तक पहुंच पाएंगे जो चरण सिंह ने बनाई थी?

भारत रत्न – देर से मिली पहचान, लेकिन गर्व अपार

2024 में भारत सरकार ने चौधरी चरण सिंह को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया। यह सिर्फ एक पुरस्कार नहीं था, बल्कि उन करोड़ों किसानों का सम्मान था जिनकी आवाज़ बनकर वे जीवन भर लड़े। हालांकि यह सम्मान बहुत देर से आया, लेकिन इससे उनके योगदान की वैश्विक पहचान बनी।

क्या आज का भारत उनके सपनों जैसा है?

आज जब देश कृषि संकट, MSP की मांग और किसान आत्महत्याओं से जूझ रहा है, तब चरण सिंह की नीतियां और दृष्टि और भी प्रासंगिक लगती है। वे मानते थे कि देश की आत्मा गांवों में बसती है। पर क्या आज भी हम गांवों और किसानों को प्राथमिकता देते हैं?
उनके नाम पर बनी योजनाएं और स्मारक तो हैं, लेकिन क्या उनके विचार हमारी नीति और राजनीति में जगह बना पाए हैं?

चौधरी चरण सिंह का सपना – एक न्यायपूर्ण, आत्मनिर्भर भारत

चरण सिंह का सपना एक ऐसा भारत था जहां हर किसान आत्मनिर्भर हो, जहां राजनीति सेवा बने और जहां विकास का रास्ता गांव से होकर गुजरे। वे सामाजिक समानता के बड़े पैरोकार थे।

उनकी सोच आज भी हर युवा को प्रेरित कर सकती है – अगर हम उसे गंभीरता से अपनाएं।

चौधरी चरण सिंह सिर्फ एक राजनेता नहीं, एक विचारधारा थे। आज उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देना आसान है, लेकिन उनके विचारों को अपनाना कठिन।

क्या आज का भारत उनके सपनों का भारत है? क्या हम उनके आदर्शों को जीवित रख पाए हैं?

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