नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । महाराष्ट्र की सियासत में फिर मचा हलचल, छगन भुजबल ने एक बार फिर पहनी मंत्री की टोपी। NCP के वरिष्ठ नेता की भावुक प्रतिक्रिया आई सामने। “जो जिम्मेदारी दी जाएगी, वो मंजूर है”, बोले भुजबल। क्या नई भूमिका में नजर आएंगे भुजबल? चर्चा तेज़।
महाराष्ट्र सरकार में एनसीपी नेता छगन भुजबल ने मंत्री पद की शपथ ली है। इस मौके पर उन्होंने कहा कि जिम्मेदारी जो भी मिलेगी, वो स्वीकार होगी। उनकी इस टिप्पणी से अटकलें तेज़ हो गई हैं कि उन्हें कैबिनेट में कोई महत्वपूर्ण विभाग सौंपा जा सकता है। भुजबल की वापसी ने राज्य की राजनीति में एक बार फिर हलचल पैदा कर दी है।
भुजबल की वापसी, सत्ता में नया संतुलन?
छगन भुजबल का नाम महाराष्ट्र की राजनीति में दशकों से भरोसे और अनुभव का प्रतीक रहा है। 20 मई 2025 को उन्होंने महाराष्ट्र सरकार में एक बार फिर मंत्री पद की शपथ ली। शपथ के बाद उनकी पहली प्रतिक्रिया मीडिया के सामने आई, जिसमें उन्होंने कहा:
“यह तय करना मुख्यमंत्री का अधिकार है। मुझे जो भी जिम्मेदारी दी जाएगी, वह मेरे लिए स्वीकार्य होगी।”
उनके इस बयान से संकेत मिला कि वह किसी भी विभाग को संभालने के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं और संगठन की प्राथमिकता को सबसे ऊपर रखते हैं।
NCP के भीतर नई रणनीति का संकेत?
छगन भुजबल की वापसी ऐसे समय पर हुई है जब एनसीपी के भीतर गुटबाज़ी और शक्ति संतुलन को लेकर चर्चाएं चल रही हैं। शरद पवार की अगुआई वाली एनसीपी का यह कदम दिखाता है कि पार्टी वरिष्ठ नेताओं के अनुभव का फायदा उठाना चाहती है।
भुजबल जैसे अनुभवी नेता की कैबिनेट में मौजूदगी मुख्यमंत्री को भी राजनीतिक स्थिरता देने में मदद कर सकती है।
कौन-सा विभाग मिलेगा भुजबल को?
भुजबल को अब कौन-सा विभाग सौंपा जाएगा, यह सवाल चर्चा का विषय बना हुआ है। माना जा रहा है कि उन्हें सामाजिक न्याय, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति जैसे विभागों में से कोई एक मिल सकता है। हालांकि, भुजबल ने खुद इस बारे में कोई मांग नहीं रखी और पूरी तरह मुख्यमंत्री पर भरोसा जताया।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया तेज़
भुजबल की वापसी को लेकर ट्विटर और फेसबुक पर प्रतिक्रियाएं तेज़ हैं। कुछ यूज़र्स ने इसे “अनुभव की वापसी” कहा, तो कुछ ने सवाल उठाया कि क्या इससे युवा नेताओं को पीछे धकेला जा रहा है? हालांकि, ज़्यादातर प्रतिक्रियाएं सकारात्मक रही हैं।
जनता का नेता या पार्टी का सिपाही?
भुजबल ने फिर यह दिखा दिया कि वह संगठन के फैसलों को सर्वोपरि मानते हैं। उनका यह रुख युवा नेताओं के लिए मिसाल बन सकता है। उन्होंने यह भी जता दिया कि आज भी वह महाराष्ट्र की राजनीति में प्रासंगिक हैं।
क्या छगन भुजबल को बड़ी जिम्मेदारी मिलनी चाहिए? कमेंट करके अपनी राय जरूर दें।
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