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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। दिल्ली हाई कोर्ट ने घरेलू हिंसा के एक मामले में एक व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि पितृसत्तात्मक अधिकार की धारणा को वैध नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि यह महिलाओं को अधीन बना देता है। न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा ने 2018 में पत्नी पर गोली चलाने के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया। न्यायाधीश ने कहा कि पत्नी का यह दावा कि वह घरेलू हिंसा की शिकार नहीं है, पति द्वारा की गई हिंसा को उचित नहीं ठहरा सकता।
क्षणिक आवेश में आकर गोली चलने की दलील खारिज
हाई कोर्ट ने 18 अगस्त के अपने आदेश में व्यक्ति की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि उसने क्षणिक आवेश में आकर यह कदम उठाया था। आदेश में कहा गया है, क्षणिक आवेश में आने का बहाना पितृसत्तात्मक अधिकार की धारणा को वैध ठहराने के समान होगा, जो महिलाओं को अधीन बना देता है और यहां तक कि कलहपूर्ण ससुराल में लौटने से इनकार करने को भी उकसावे के रूप में देखा जाता है। ऐसा दृष्टिकोण रखना न केवल प्रतिगामी होगा, बल्कि कानून की मंशा के भी विपरीत होगा।
घरेलू हिंसा के अपराधों को गंभीरता से लिया जाए
अदालत ने कहा कि घरेलू हिंसा के ऐसे अपराधों को, जिनमें हत्या करने का इरादा हो, गंभीरता से लिया जाना चाहिए और ऐसे मामलों में वैवाहिक संबंध को स्थिति को कम करने वाला नहीं, बल्कि गंभीर बनाने वाला कारक माना जाएगा। आरोपी ने अदालत के समक्ष दावा किया कि जब महिला ने उसके साथ जाने से इनकार कर दिया, तो वह क्रोधित हो गया और आवेश में आकर उसने उस पर गोली चला दी, लेकिन उसका इरादा उसे मारने का नहीं था।
पत्नी द्वारा ससुराल जाने से इनकार करने चलाई थी गोली
न्यायाधीश ने कहा कि पत्नी द्वारा ससुराल जाने से इनकार करने पर पति के क्रोधित होने का दावा उस पितृसत्तात्मक अधिकार को सामने लाता है, जिसका व्यक्ति हकदार महसूस करता है, जिसका न्यायालय समर्थन नहीं कर सकता। अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़िता ने लगातार हिंसा के कारण आरोपी के साथ रहने से इनकार कर दिया क्योंकि वह नशे की हालत में उसे पीटता था और आपराधिक गतिविधियों के कारण कई बार जेल भी जा चुका था।
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