नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । सुप्रीम कोर्ट की इन हाउस कमेटी ने जस्टिस यशवंत वर्मा को दागदार माना है। उनको अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ेगी। अगर वो स्वेच्छा से इस्तीफा नहीं देते हैं तो संसद के जरिये महाभियोग चलाकर उनको हटाने का विकल्प भी है। जस्टिस वर्मा के पास एक और विकल्प है। इन हाउस कमेटी की रिपोर्ट को वो कानूनी तौर पर चुनौती भी दे सकते हैं।
जस्टिस वर्मा के पास 9 मई तक का वक्त, सीजेआई को देना है जवाब
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक सूत्र का कहना है कि रिपोर्ट में उनको दोषी माना गया है। सीजेआई संजीव खन्ना ने उनसे पूछताछ की है। उन्हें दिया गया पहला विकल्प इस्तीफा देना है। अगर वह इस्तीफा देते हैं, तो यह अच्छा है। अगर वह ऐसा नहीं करते हैं, तो महाभियोग की सिफारिश करते हुए रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजी जाएगी। रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस वर्मा को शुक्रवार 9 मई तक का समय दिया गया है। उनको अपना जवाब सीजेआई को देना है।
सीजेआई संजीव खन्ना ने इन हाउस कमेटी का गठन किया था। कमेटी ने 25 मार्च को जांच शुरू की थी और 4 मई को सीजेआई खन्ना को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी इसमें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थीं।
11 मार्च को जस्टिस के घर लगी थी आग, मिले थे जले हुए नोट
घटना के मुताबिक 14 मार्च की शाम को जस्टिस वर्मा के घर में आग लगने के बाद पर दमकलकर्मियों ने बेहिसाब नकदी बरामद की थी। जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी उस समय दिल्ली में नहीं थे और मध्य प्रदेश में यात्रा कर रहे थे। आग लगने के समय घर पर केवल उनकी बेटी और उम्रदराज मां ही थीं। बाद में एक वीडियो सामने आया जिसमें आग में नकदी के बंडल जलते हुए दिखाई दे रहे थे।
जस्टिस वर्मा का आरोप से इन्कार, वकीलों से ले चुके हैं राय
जस्टिस वर्मा ने आरोप से इन्कार किया और कहा कि यह उन्हें फंसाने की साजिश लगती है। इसके बाद सीजेआई ने आरोपों की आंतरिक जांच शुरू की और जांच के लिए 22 मार्च को तीन सदस्यीय कमेटी गठित की। आरोप के बाद जस्टिस वर्मा का तबादला इलाहाबाद हाईकोर्ट में वापस कर दिया गया। हालांकि, सीजेआई ने उनसे न्यायिक कार्य अस्थायी रूप से छीन लिया था। जस्टिस वर्मा के तबादले के विरोध में इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन पहले ही हड़ताल पर जा चुकी है।
आंतरिक जांच शुरू होने के तुरंत बाद जस्टिस वर्मा ने वकीलों की एक टीम से कानूनी सलाह मांगी थी। एडवोकेट सिद्धार्थ अग्रवाल, अरुंधति काटजू और तारा नरूला उनके आवास पर गए थे। माना जा रहा है कि वो कमेटी की रिपोर्ट को कानूनी चुनौती देंगे।
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