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निशाने पर हिंदू ही क्यों ? यह पलायन कराने की साजिश तो नहीं!

आतंकियों ने पर्यटकों से कलमा पढ़ने को कहा, कपड़े उतरवाए और पहचान पत्र चेक किए। इस घटना ने कश्मीर में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा का डर फिर से जगा दिया है।

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Ajit Kumar Pandey
PAHALGAM ATTACK
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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क । 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हमले में आतंकियों ने कथित तौर पर पर्यटकों से उनका धर्म पूछा, कलमा पढ़वाने की कोशिश की, और जो मुस्लिम नहीं थे, उन्हें गोली मार दी। इस घटना ने एक बार फिर कश्मीर में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा और पलायन के डर को जगा दिया है। आइए, इस हमले के हर पहलू को आसान भाषा में समझते हैं और जानते हैं कि क्या यह कश्मीर से हिंदुओं के पलायन का दूसरा चरण साबित हो सकता है।

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आतंकियों ने धर्म पूछकर पर्यटकों को गोली मारी ?

22 अप्रैल 2025 को दोपहर करीब 2:45 बजे, पहलगाम की बैसरन घाटी में आतंकियों ने पर्यटकों पर हमला किया। यह इलाका 'मिनी स्विट्जरलैंड' के नाम से मशहूर है और यहां देश-विदेश से सैलानी आते हैं। इस हमले में 26 से 28 लोगों की मौत हुई, जिनमें दो विदेशी (एक यूएई और एक नेपाल से) और दो स्थानीय नागरिक शामिल थे। बाकी मृतक उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और ओडिशा जैसे राज्यों के पर्यटक थे।

हमले के चश्मदीदों और मीडिया रिपोर्ट्स ने कई चौंकाने वाले दावे किए हैं...

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वायरल वीडियो में खुलासा: एक महिला ने रोते हुए बताया कि आतंकियों ने उसके पति को सिर्फ इसलिए गोली मार दी क्योंकि वह मुस्लिम नहीं लग रहा था। वह भेलपूरी खा रहा था जब यह घटना हुई।

कलमा पढ़वाने की कोशिश: सूत्रों के मुताबिक, आतंकियों ने पर्यटकों से कलमा पढ़ने को कहा ताकि उनका धर्म पता चल सके। जो लोग कलमा नहीं पढ़ पाए, उन्हें निशाना बनाया गया।

पहचान पत्र और कपड़े उतरवाए: आतंकियों ने कुछ पर्यटकों के ID कार्ड चेक किए और उनकी पैंट तक उतरवाई।

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सेना की वर्दी में हमलावर: हमलावर सेना की वर्दी और मास्क पहने थे, जिसके कारण शुरू में पर्यटकों को समझ नहीं आया कि वे आतंकी हैं।

महाराष्ट्र की एक पर्यटक ने बताया कि आतंकियों ने खास तौर पर हिंदू पुरुषों को निशाना बनाया। उसके पिता को उसके सामने तीन गोलियां मारी गईं। इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा के सहयोगी संगठन 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (TRF) ने ली है।  jammu and kashmir terror attack | Jammu & Kashmir Pahalgam Terror Attack | hindu | muslim | 

कश्मीर में 700 साल पहले इस्लाम का वर्चस्व कैसे बढ़ा ?

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कश्मीर में इस्लाम का प्रभाव 14वीं शताब्दी में शुरू हुआ। 1338 में शाहमीर वंश की स्थापना के साथ कश्मीर में पहला मुस्लिम शासन शुरू हुआ, जो 220 साल तक चला। इस वंश का सबसे विवादास्पद शासक सुल्तान सिकंदर (1389-1413) था, जिसे इतिहास में 'बुतशिकन' (मूर्ति तोड़ने वाला) भी कहा जाता है।

सुल्तान सिकंदर का शासन: कश्मीरी इतिहासकार सिकंदर के शासन को कश्मीर का सबसे अंधकारमय दौर मानते हैं। उनके शासन में ईरानी सूफी संत सैय्यद अली हमदानी के बेटे सैय्यद मुहम्मद हमदानी कश्मीर आए। सिकंदर ने उनके लिए खानकाह बनवाया।

कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार: सिकंदर के सलाहकार सुहाभट्ट (बाद में मलिक सैफुद्दीन) ने हिंदुओं को इस्लाम अपनाने या कश्मीर छोड़ने का आदेश दिया। मंदिर तोड़े गए, और सोने-चांदी की मूर्तियों को गलाकर सिक्के बनाए गए।

जैनुल आबदीन का सुधार: सिकंदर के बेटे जैनुल आबदीन (1420-1470) ने अपने पिता की कट्टर नीतियों को उलट दिया। उसने मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया, जजिया कर हटाया, और हिंदुओं व बौद्धों को अपने दरबार में जगह दी। उसने महाभारत और राजतरंगिणी का फारसी में अनुवाद करवाया।

यह दौर कश्मीर के इतिहास में धार्मिक तनाव और सुलह का मिश्रित समय रहा।

कश्मीरी पंडितों का नरसंहार और पलायन कैसे हुआ ?

1989-1990 में कश्मीरी पंडितों के खिलाफ हिंसा चरम पर पहुंच गई। यह वह समय था जब घाटी में आतंकवाद और अलगाववाद बढ़ रहा था। हिजबुल मुजाहिदीन और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) जैसे संगठनों ने पंडितों को निशाना बनाया।

कुछ दिल दहलाने वाली घटनाएं...

19 जनवरी 1990 की रात: मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर नारे लगे, "कश्मीर हमारा छोड़ दो, पंडित मर्द भाग जाएं, उनकी औरतें रहें।" कई परिवारों ने डर से घर छोड़ दिए। एक मां ने अपनी बेटी को मारने की बात कही ताकि वह आतंकियों के हाथ न लगे।

बीके गंजू की हत्या: श्रीनगर के छोटा बाजार में 26 साल के बीके गंजू को मस्जिद की लिस्ट में नाम आने के बाद मार दिया गया। वह चावल के ड्रम में छिपे थे, लेकिन आतंकियों ने उन्हें गोली मार दी।

सर्वानंद कौल की निर्मम हत्या: अनंतनाग के शालि गांव में प्राध्यापक और कवि सर्वानंद कौल और उनके बेटे को आतंकियों ने अगवा किया। उनकी लाशें लटकी मिलीं, जिनके शरीर पर अत्याचार के निशान थे।

लगभग 3 से 5 लाख कश्मीरी पंडितों को 1990 के दशक में घाटी छोड़नी पड़ी। वे जम्मू, दिल्ली और अन्य शहरों में शरणार्थी बनकर रहने को मजबूर हुए।

1990 से अब तक आतंकवाद के चार प्रमुख चरण क्या हैं ?

कश्मीर में आतंकवाद का इतिहास चार प्रमुख चरणों में बांटा जा सकता है...

1989-1990 (उभार का दौर): यह आतंकवाद का शुरुआती दौर था। JKLF और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों ने कश्मीरी पंडितों और सुरक्षाबलों को निशाना बनाया। मस्जिदों से धमकियां दी गईं, और पंडितों का पलायन शुरू हुआ।

1990-2000 (चरम आतंकवाद): इस दौरान बड़े हमले हुए, जैसे 1998 का वांदहामा नरसंहार और 2000 का अमरनाथ यात्रा हमला। आतंकी संगठनों को पाकिस्तान से समर्थन मिला।

2001-2010 (आतंकवाद में कमी): भारत की सख्त नीतियों और वैश्विक दबाव के कारण आतंकवाद में कमी आई। हालांकि, छिटपुट हमले जारी रहे।

2011-2025 (नया दौर): सोशल मीडिया और प्रॉक्सी संगठनों (जैसे TRF) के जरिए आतंकवाद ने नया रूप लिया। 2019 के पुलवामा हमले और 2025 के पहलगाम हमले ने दिखाया कि खतरा अभी खत्म नहीं हुआ।

क्या पहलगाम हमला हिंदुओं के पलायन का दूसरा चरण शुरू करेगा ?

पहलगाम हमला कश्मीर में हालात सामान्य होने के बाद एक बड़ा झटका है। 2019 में आर्टिकल 370 हटने के बाद कश्मीर में टूरिज्म और कारोबार बढ़ा था। 2024 में विधानसभा चुनावों के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार बनी, और घाटी में शांति की उम्मीद जगी। लेकिन इस हमले ने कई सवाल खड़े किए हैं।

आतंकियों का मकसद: जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व DGP एसपी वैद के मुताबिक, यह हमला टूरिज्म को ठप करने और हिंदू-मुस्लिम एकता को तोड़ने की साजिश है। आतंकियों ने हिंदुओं को निशाना बनाकर साफ संदेश दिया कि वे कश्मीर में हिंदुओं को नहीं चाहते।

हिंदुओं में डर: हमले के बाद कई पर्यटक घाटी छोड़कर जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पर्यटकों के पलायन पर दुख जताया और अतिरिक्त उड़ानों की व्यवस्था की।

कश्मीरी पंडितों का भविष्य: केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि कश्मीरी पंडितों के बिना कश्मीर अधूरा है। लेकिन इस हमले ने पंडितों की वापसी की उम्मीदों को झटका दिया है।

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी का मानना है कि यह हमला भारत को बदनाम करने और सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने की कोशिश है। अगर ऐसे हमले जारी रहे, तो कश्मीर में हिंदू पर्यटकों और कामगारों की संख्या कम हो सकती है। हालांकि, यह कहना मुश्किल है कि यह 1990 जैसा बड़े पैमाने पर पलायन होगा, क्योंकि आज सरकार और सेना की ताकत पहले से ज्यादा है।

पहलगाम आतंकी हमला न सिर्फ एक दुखद घटना है, बल्कि कश्मीर के भविष्य के लिए एक चेतावनी भी है। आतंकियों ने धर्म के आधार पर हत्याएं कर सांप्रदायिक तनाव को हवा दी है। यह हमला कश्मीर की शांति, टूरिज्म, और हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए खतरा है। सरकार ने सख्त कदम उठाने का वादा किया है, लेकिन सवाल यह है कि क्या कश्मीर फिर से 1990 जैसे हालात की ओर बढ़ रहा है? जवाब भविष्य के कदमों और सुरक्षा व्यवस्था पर निर्भर करता है।

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