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Uniform Civil Code: उत्तरांखड में सभी धर्मों का एक कानून, यूसीसी लागू होने से हुए ये बदलाव

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू होने से सभी धर्मों के लिए विवाह, तलाक और उत्तराधिकार से संबंधित कानून एक समान हो गए हैं। सभी धर्मों को यूसीसी का पालन करना होगा।

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Dhiraj Dhillon
समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता Photograph: (Google)

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देहरादून, वाईबीएन नेटवर्क।

उत्तराखंड समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने वाला पहला राज्य बन गया है, इसी के साथ राज्य में सभी धर्मों के लिए विवाह, तलाक और उत्तराधिकार से संबंधित कानून एक समान हो गए हैं। सभी धर्मों को समान नागरिक संहिता का पालन करना होगा। कुछ धर्मों में विवाह और उत्तराधिकार के मामले में दिए गए विशेष अधिकार समाप्त हो गए हैं। अब सभी सभी को यूसीसी का पालन करना होगा। यूसीसी लागू होने के साथ ही एक से अधिक शादी जैसे विशेषाधिकार अब उत्तराखंड में समाप्त हो गए हैं।

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बेटी और बेट के अधिकार बराबर होंगे

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू होने का उत्तराधिकार कानून पर यह बड़ा असर पड़ेगा कि इस राज्य में रहने वाले सभी धर्मों के बेटे और बेटियों को समान अधिकार होंगे। उत्तराधिकार में वे बराबर के हकदार होंगे। बेटी के मुकाबले बेटे को अधिक अधिकार वाली बात अब उत्तराखंड में गुजरे जमाने की बात हो गई है। सभी धर्मों के मानने वालों पर सभी कानून बिना धर्म और लिंग में भेद किए लागू होंगे। न्याय प्रणाली भी समान रूप से फैसले लेगी।

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इन देशों में पहले से लागू है यूसीसी

बेशक यूसीसी लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य है लेकिन समान नागरिक संहिता कई देशों में लागू है। उत्तराखंड में यूसीसी लागू करने के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इन देशों को जिक्र भी किया। उन्होंने कहा कि अमेरिका, आयरलैंड, मिश्र, तुर्किए, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मले‌शिया, इंडोनेशिया, संयुक्त अरब अमीरात, इराक और कुवैत में यूसीसी पहले से लागू है।

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यूसीसी लागू होने से हुए बदलाव जानिए

अब उत्तराखंड में किसी भी धर्म संप्रदाय की बेटी का विवाह 18 साल की आयु से पहले अवैध माना जाएगा और ऐसे मामले में कानून अपना काम करेगा। हर संपद्राय के लिए लड़के की शादी की आयु अब कम से कम 21 साल होगी। पैत्रक संपत्ति में बेटियों को बराबर का हक मिलेगा। राज्य उत्तराधिकार में बेटी और बेटा एकसमान होंगे। पति- पत्नी के लिए तलाक के आधार और अधिकार एक समान होंगे। यानि इस मामले में भी कोई लिंग भेद नहीं होगा, पत्नी भी तलाक की उतनी अधिकारी होगी जितना पति। कोई विवाह रद्द ‌होने की स्थिति में भी बच्चों के अधिकार प्रभावित नहीं होंगे।

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