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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
कुछ बॉस होते हैं जो अपना काम दूसरों पर डालकर पीछे हट जाते हैं और श्रेय लेने के लिए सबसे आगे आ जाते हैं। वहीं कुछ बॉस काम करने में सबसे आगे रहते हैं और श्रेय लेने कभी नहीं आते। ऐसे की हैं महान क्रांतिकारी वीर सुभाष चंद्र बोस। बोस वाकई ही सभी बॉस के बॉस थे। ऐसा क्यों आइए बताते हैं।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस को देश का सबसे बड़ा योद्धा कहा जाए तो कोई बड़ी अतिशयोक्ति नहीं होगी। सुभाष भारत की स्वतंत्रता के लिए एक मजबूत स्तंभ के रूप में सदा खड़े रहे। नेताजी को उनके साहस, दृढ़ संकल्प और असरदार रणनीतियों के लिए जाना जाता है। उन्होंने देशवासियों के बीच देशभक्ति और बलिदान की भावना को जगाया। सुभाष चंद्र बोस का योगदान केवल उनके द्वारा लड़ी गई लड़ाइयों तक सीमित नहीं था बल्कि उनका पूरा जीवन ही प्रेरणादायी रहा। सुभाष चंद्र बोस का जीवन हमें देश और समाज के प्रति निस्वार्थ रूप से कर्तव्य निभाने की सीख देता है। 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती हर वर्ष पराक्रम दिवस के रूप में मनाई जाती है। भारत सरकार द्वारा 2021 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती के मौके पर इसे पहली बार पराक्रम दिवस के रूप में मनाया गया।
सुभाष चंद्र बोस का जीवन
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस था, जो कि प्रसिद्ध वकील थे। उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद सुभाष ने भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा को पास किया। जब व्यक्ति को पढ़ने की आजादी न हो तब उसका इतनी प्रतिष्ठित परीक्षा को क्लियर करना बहुत बड़ी उपलब्धि थी। उन्होंने 1920 में प्रतिष्ठित भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया। हालांकि, नेताजी ने लोगों पर अत्याचार करने वाली ब्रिटिश सरकार के लिए काम करने की जगह देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना चुना।
आजाद हिंद फौज की स्थापना
नेताजी 1938 और 1939 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता बने। उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। सुभाष चंद्र बोस ने 1943 में जापान की मदद से "आजाद हिंद फौज" की स्थापना की। इस फौज का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष कर के देश को आजाद करवाना था। सुभाष इसके चलते किसी भी हद तक युद्ध करने को तैयार थे। उन्होंने "दिल्ली चलो" का नारा देकर लाखों भारतीयों को आजादी के संघर्ष के लिए प्रेरित किया। नेताजी के सशक्त व्यक्तित्व के कारण उन्हें जर्मनी और जापान जैसे देशों का समर्थन भी हासिल हुआ था। उन्होंने जर्मनी में भारतीय युद्ध बंदियों के साथ आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की और ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रचार किया।
रहस्यमय तरीके से हुए गायब
महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुभाष चंद्र बोस बड़े रहस्यमय व्यक्ति थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का निधन आज भी रहस्य बना हुआ है। कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 को ताइवान में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई, जो उस समय जापान के कब्जे में था। हालांकि उनकी मौत को लेकर कई और थ्योरी और विवाद हैं। उनकी मृत्यु की पुष्टि आज तक स्पष्ट रूप से नहीं हो पाई है। घायल या मृत बोस की कोई तस्वीर नहीं ली गई और न ही मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किया गया। इन्हीं वजहों से आईएनए ने यह मानने से इनकार कर दिया कि उनका निधन हो गया। बोस के कई समर्थकों ने उनके निधन के समाचार और परिस्थितियों, दोनों पर विश्वास करने से इनकार कर दिया। इसे साजिश बताते हुए कहा गया कि बोस के निधन के कुछ घंटों के भीतर कोई विमान दुर्घटना नहीं हुई थी। नेताजी के बारे में कुछ मिथक आज भी कायम हैं। बोस के चीफ ऑफ स्टाफ कर्नल हबीब उर रहमान, जो उस दुर्भाग्यपूर्ण उड़ान में उनके साथ थे, बच गए। उन्होंने एक दशक बाद बोस के निधन पर गठित एक जांच आयोग में गवाही दी। कहा जाता है कि बोस की अस्थियां टोक्यो के रेंकोजी मंदिर में रखी हुई हैं। 1940 के बाद से, जब वह कलकत्ता (कोलकाता) में हाउस अरेस्ट से बच गए थे तो उनके ठिकाने के बारे में अफवाहें बढ़ीं। 1941 में जब वह जर्मनी में दिखाई दिए, तो उनके और उनकी व्यस्तताओं के बारे में तरह-तरह की अटकलें रहीं। उनको लेकर अटकलों और रहस्यों का सिलसिला विमान हादसे के बाद भी जारी रहा। विमान हादसे के बाद भी लंबे समय तक उनके जिंदा रहने की अफवाहें रह-रहकर उड़ती रहीं।
ये है कॉन्सपिरेसी थ्योरीज
कुछ लोगों का मानना था कि विमान घटना में सुभाष चंद्र बोस की मृत्य नहीं हुई थी। एक थ्योरी की माने तो गुमनामी बाबा जिन्हें भगवानजी या "फैजाबाद के संत" के नाम से भी जाना जाता था, वे लापता नेताजी ही हैं, जो पहचान छुपा कर रहे थे।
एक कॉन्सपिरेसी थ्योरी तो यह कहती है कि सुभाष चंद्र बोस काफी लंबे समय तक जीवित रहे। साथ ही 1966 में ताशकंद में भारतीय प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री से मुलाकात की बात भी कही जाती है।
नहीं खुला राज
जैसा की शुरुआत में बताया था की कुछ बॉस अपना काम पूरा करके बिना श्रेय लिए, बस चलते जाते हैं। ऐसा ही सुभाष चंद्र बोस ने भी किया। अगर बोस भारत की आजादी के वक्त जीवित भी होते, तो भी वो कभी भारत की आजादी में अपने योगदान का गुणगान नहीं करते और न ही कोई श्रेय मांगते। इसका कारण हैं कि बोस सचमुच एक अच्छे बॉस, एक अच्छे लीडर थे, और इन सब से जरूरी एक सच्चे देशभक्त थे।