नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
दुनियाभर के किसान फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं। इससे पैदावार तो बढ़ जाती है, लेकिन इससे पॉलीनेटर (परागण) की संख्या में बहुत कमी आती है जो पर्यावरण के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है। ईकोसिस्टम पर किए एक शोध में पता चला है कि उर्वरकों के प्रयोग से पॉलीनेटर (परागण) की संख्या आधी हो जाती है। फर्टिलाइजर फूलों की सेहत को भी बिगाड़ रहा है।
शोध में किया दावा
ससेक्स विश्वविद्यालय और रोथमस्टेड रिसर्च के शोध में बताया है कि खेती में नाइट्रोजन पोटेशियम और फास्फोरस के प्रयोग से फूलों की संख्या में पांच गुना तक कमी आई है और पॉलीनेटर की संख्या आधी रह गई। शोध में यह भी बताया गया कि इससे मधुमक्खियां सबसे अधिक प्रभावित होती हैं । जिन क्षेत्रों में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं हुआ, वहां पर मधुमक्खियों की संख्या नौ गुना तक अधिक पाई गई। उर्वरक के प्रयोग से पॉलीनेटर की संख्या में गिरावट आती है और इससे फूलों और कीड़ों पर बुरा असर पड़ता है।
खेती में कीटनाशकों के प्रयोग से बेकार की घास और फूलों की मात्रा कम हो जाती है। आमतौर पर यह माना जाता है कि फूलों की अधिक संख्या होने से पॉलीनेटर की संख्या भी अधिक हो जाती है। ब्रिटेन में प्रति हेक्टेयर लगभग 100 किलोग्राम कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है जिससे 50 फीसदी तक पॉलीनेटर की संख्या कम हो जाती है।
फसल पर पड़ता है बुरा असर
दरअसल अधिक फूलों और पॉलीनेटर के लिए कम उपजाऊ भूमि की आवश्यकता होती है। इनकी वजह से खेती की पैदावार पर बुरा असर पड़ता है। इसलिए किसान अच्छी फसल के लिए उर्वरकों का उपयोग खाद के रूप में करते हैं। कुछ अध्ययनों में यह भी दावा किया है कि किसानों को यूरिया खाद के बजाय प्राक्रतिक खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। यूरिया खाद के अधिक इस्तेमाल वाली फसल सेहत बुरा असर करती है
- पॉलीनेटर- पॉलीनेटर (परागण) जो एक फूल से दूसरे फूल में पॉलीनेट करते है अर्थात फूल- पौधों में प्रजनन की क्रिया को पूरा करवाने में सहायक होते हैं। मधुमक्ख्यिां, तितलियां, भंवरे, ततैया आदि जीव पॉलीनेटर करने का ही काम करते हैं। परागण, पौधों के नर भाग से मादा के मादा भाग में पराग को पहुंचाने की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया से पौधे प्रजनन करते हैं। परागण के बाद, बीज बनते हैं जो नए पौधे में विकसित हो सकते हैं।
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