नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
भारत ब्रटिश डोमीनियन से 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ था और एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। 200 वर्षों तक चले ब्रिटिश शासन का अंत आज ही के दिन हुआ था। लेकिन आज़ादी के बावजूद भी भारत अगले 2 साल तक अंग्रजो के बनाए हुए कानूनों को ही मान रहा था। ऐसा केवल इसलिए था, क्योंकि 26 जनवरी 1950 को भारत को अपना अपना खुद का बनाया हुआ संविधान मिला था।
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भारत का संविधान, जिसे विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान माना जाता है। 29 अगस्त 1947 को संविधान निर्माण की इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया के तहत, प्रारूप समिति (Drafting Committee) का गठन किया गया था। इस समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर थे और अन्य 6 सदस्यों का चयन उनके कानूनी, प्रशासनिक और सामाजिक अनुभव के आधार पर किया गया था।
प्रारूप समिति (Drafting Committee) के सदस्य और उनकी भूमिका
प्रारूप समिति (Drafting Committee) में कुल 7 सदस्य थे, जिन्हें उनके कानूनी ज्ञान, सामाजिक दृष्टिकोण और प्रशासनिक अनुभव के आधार पर चुना गया।
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डॉ. भीमराव अंबेडकर (अध्यक्ष): डॉ. अंबेडकर को "भारतीय संविधान के जनक" के रूप में जाना जाता है। वे एक प्रख्यात विधिवेत्ता, समाज सुधारक और दलित अधिकारों के समर्थक भी थे। कोलंबिया और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से शिक्षा प्राप्त अंबेडकर ने भारतीय समाज में समानता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल किए। उनकी नेतृत्व क्षमता और गहरी संवैधानिक समझ के कारण उन्हें अध्यक्ष बनाया गया।
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एन. गोपालस्वामी अय्यंगार: वे कश्मीर के पूर्व दीवान (प्रधानमंत्री) और एक अनुभवी प्रशासक थे। उनकी विशेषज्ञता प्रशासनिक ढांचे और कार्यकारी शक्तियों को संतुलित करने में थी। भारतीय संविधान में संघीय ढांचे को स्पष्ट करने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही।
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अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर: वे मद्रास हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील और लीगल एक्सपर्ट थे। उनकी गहरी कानूनी समझ ने संविधान को तकनीकी मजबूती दी। विशेष रूप से न्यायपालिका की स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों को संरक्षित करने में उन्होंने योगदान दिया।
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के.एम. मुंशी: मुंशी जी एक स्वतंत्रता सेनानी, साहित्यकार, और कानूनविद थे। उनकी पृष्ठभूमि में भारतीय संस्कृति और परंपराओं का गहन ज्ञान था। उन्होंने "मौलिक कर्तव्यों" और भारतीय संविधान में सांस्कृतिक मूल्यों को स्थान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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सैयद मोहम्मद सादुल्ला: असम के मुख्यमंत्री और एक अनुभवी प्रशासक, सादुल्ला ने अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा पर जोर दिया। उनका योगदान धार्मिक स्वतंत्रता और सांप्रदायिक सौहार्द सुनिश्चित करने में अहम रहा।
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टी.टी. कृष्णमाचारी: वे एक वित्तीय विशेषज्ञ (financial expert) और अनुभवी प्रशासक थे। संविधान में वित्तीय प्रबंधन, राजस्व वितरण, और संघीय आर्थिक ढांचे को तैयार करने में उनकी भूमिका उल्लेखनीय रही।
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डी.पी. खेतान: खेतान एक प्रसिद्ध वकील थे, जिनकी विशेषज्ञता भूमि कानून(land law) और कराधान(taxation) में थी। उनका योगदान विशेष रूप से भूमि सुधार और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने में रहा।
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प्रारूप समिति की कार्यशैली
आपको बता दें कि समिति ने 2 साल, 11 महीने और 18 दिन तक काम किया और 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियों के साथ संविधान का अंतिम मसौदा(Draft) तैयार किया। प्रारूप समिति ने विभिन्न समितियों से सुझाव लिए और इसे भारतीय समाज की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर तैयार किया।
इस समिति का योगदान ऐतिहासिक था। यह न केवल भारत के लोकतंत्र की नींव बनी, बल्कि यह विश्व में सबसे विस्तृत और परिपक्व संविधानों में से एक का निर्माण करने में सफल रही।
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